आम लोगों की नियति

पिछले कुछ दिनों से भारत और पाकिस्तान के मध्य कड़ा तनाव बना हुआ है। ऐसा तनाव दोनों देशों में वर्ष 1947 में हुए देश विभाजन से ही शुरू हो गया था, जो अलग-अलग समय, अलग-अलग रूप धारण करता रहा। दोनों में कई युद्ध भी हुए, जो क्षेत्र के लिए विनाश का मंज़र बने। कई समझौते भी हुए, जिनके कारण लोगों में आपसी मेल-मिलाप की सम्भावनाएं भी उजागर होती रहीं, परन्तु पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को लगातार भारत के विरुद्ध उकसाने और भारत की धरती को रक्त-रंजित करने के कारण, दोनों देशों के मध्य बड़ी संख्या में आपसी सहयोग और सद्भावना को आगे बढ़ाने की इच्छा रखने वाले लोगों की उम्मीदों पर अक्सर पानी ही फिरता रहा। इन दशकों के दौरान जब कभी भी दोनों देशों के नागरिकों को आपस में मिलने का अवसर मिलता तो वह स्वयं को भाग्यशाली समझने लगते।
देश के विभाजन को किसी भी तरह स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कट्टरपंथी लोगों के नापाक इरादों के कारण यह विभाजन हुआ और जल्दबाज़ी में एक रेखा खींच दी गई, जिसे सीमा कहा जाने लगा। इस रेखा से धरती तो विभाजित हो गई परन्तु यह बड़ी संख्या में लोगों के मन को नहीं बांट सकी। आज भी उधर से इधर आए और इधर से उधर गए लोगों या परिवार में एक भावुक सांझ बनी दिखाई देती है, परन्तु पाकिस्तान की धरती पर विचरण कर रहे आतंकवादी संगठनों ने पाकिस्तान की सेना की सहायता से दोनों देशों के लोगों में ऩफरत पैदा करने के यत्न जारी रखे। उनके द्वारा जब-जब बड़े आतंक की खूनी घटना को अंजाम दिया जाता है तो  सूख रहे ज़ख्म पुन: हरे होते रहे हैं। ऐसी ही दु:खद घटना कश्मीर में पहलगाम के निकट घटित हुई, जिसने पुन: दोनों देशों में तनाव पैदा कर दिया। आतंकवादियों के इस रक्तिम हमले के बाद भारत सरकार ने कड़ा रवैया धारण करते हुए अब तक कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जो पाकिस्तान की सरकार, सेना और आतंकवादियों के लिए बड़ी चुनौती हैं।
इसी नीति के तहत भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को कुछ दिनों के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया, जिसने एक अद्भुत स्थिति को जन्म दिया है। विभाजन के समय ज्यादातर परिवारों के दोनों देशों में हर तरह के रिश्ते थे, जो आज भी किसी न किसी रूप में कायम हैं। चाहे दोनों ही सरकारें एक-दूसरे के नागरिकों को अपने-अपने देश में बसाने या उन्हें अपनी नागरिकता देने से इन्कार करती रही हैं, परन्तु आपसी मेल-मिलाप और रिश्तेदारियों का यह सिलसिला फिर भी बना रहा है। अब एकाएक देश छोड़ने के निर्देश से कम समय का वीजा लेने वालों को तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ा परन्तु लम्बे समय का वीजा लेकर आपसी पारिवारिक रिश्तों को मज़बूत  रखने की इच्छा रखने वाले परिवारों को मौजूदा बड़े संकट ने मुसीबत में डाल दिया है।
अटारी-वाघा सीमा पर जिस तरह दशकों से पारिवारिक रिश्ते बना कर बैठे लोगों को एकाएक नागरिकता न होने के कारण देश छोड़ने के आदेश मिले हैं, उसने बेहद दर्दनाक स्थिति पैदा की है। मां का अपने बच्चों से बिछड़ना, पत्नियों का पतियों को छोड़ जाना, बेसहारा बुजुर्गों को पराई हो चुकी धरती की ओर धकेल दिया जाना इस मानवीय दु:खांत को और भी गहरा करता है। आम लोगों के साथ ऐसा कुछ सदियों से होता रहा है, क्योंकि वे अक्सर सरकारों की नीतियों का शिकार बनते रहे हैं। पिछले 35 वर्ष से पाकिस्तान की सेना ने एक तरह से देश की बनती-टूटती सरकारों पर कब्ज़ा करके रखा है। समय-समय पर ज्यादातर राजनीतिक नेताओं की आपसी सहयोग की भावना को दर-किनार करके यह सेना भारत के विरुद्ध अपने एजेंडे पर ही चलती रही है, जिसका खमियाज़ा आज दोनों देशों के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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