उमर अब्दुल्ला का दर्द

पहलगाम में घटित अमानवीय घटनाक्रम के कारण देश में व्यापक स्तर पर शोकमय माहौल बना हुआ है। इस घटना का दर्द लम्बी अवधि तक महसूस होता रहेगा। यह बड़ी घटना उस समय घटित हुई जब जम्मू-कश्मीर से भय और सहम के साये खत्म हो रहे थे। वर्ष 2019 में केन्द्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर में विशेषाधिकारों वाली धारा 370 खत्म करके इसे दो भागों में विभाजित करके केन्द्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। उसके बाद यह ज़रूर महसूस होने लगा था कि हालात बदल रहे हैं। प्रदेश के लोगों के मन में नया बदलाव आ रहा है। 6 महीने पहले यहां चुनाव करवाए गए थे, जिनमें भारी संख्या में लोगों ने भाग लिया था। प्राय: से चुनाव शांतिमय माहौल में ही हुए थे। इन चुनावों के बाद प्रदेश में प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टी नैशनल कान्फ्रैंस की सरकार का मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में गठन हुआ था।
इस सरकार के नेतृत्व में प्रदेश का माहौल बेहतर बनने लग पड़ा था। ज़िन्दगी एक तरह से पुन: महकने लग पड़ी थी। इसलिए इन सुन्दर घाटियों में देश  और विदेश से भारी संख्या में पुन: पर्यटक पहुंचने लगे थे। विगत वर्ष इनकी संख्या लगभग 30 लाख थी। इस वर्ष इस संख्या के और भी बढ़ जाने की सम्भावना थी। नई हवा के महकने से कश्मीरियों का जीवन भी पुन: धड़कने लगा था। केन्द्र और प्रदेश सरकार द्वारा भी यहां बड़ी राशि लगा कर बड़ी योजनाएं बना कर इसका दृश्य बदलने का यत्न भी किया जाने लगा था। पर्यटकों की संख्या उम्मीद से कहीं अधिक बढ़ने से पर्यटन की सम्भावनाएं बढ़ गई थीं। प्रदेश के जन-साधारण की आर्थिकता भी इस गतिविधि से मज़बूत होने लगी थी। इस क्षेत्र में बड़ी सम्भावनाएं पैदा हो रही थीं, परन्तु पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले की बेहद दु:खद घटना ने एकाएक पूरा माहौल ही बदल कर रख दिया है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसके बाद एकाएक पर्यटकों के घाटी से चले जाने  पर चिन्ता प्रकट की है। इसके साथ ही घाटी और प्रदेश के लोगों ने भी इस घटना के प्रति भारी संख्या में अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। विगत 3 दशकों के बाद निर्दोष पर्यटकों पर हुए घातक हमले के दु:ख से स्थानीय लोगों के मन में भी मानवता के लिए दर्द छलका उठा था। घाटी के गांवों और शहरों में लोग रोष प्रकट करते हुए गलियों-बाज़ारों में उतरे थे। उन स्थानों पर भी जहां आतंकवादियों का कभी बड़ा प्रभाव बना रहा था।
इसके साथ ही सभी पार्टियों और उनके नेताओं की ओर से भी बड़े-छोटे शहरों में रोष प्रदर्शन किए गए थे और हालात को पुन: खराब करने के लिए आतंकवादियों को जम कर कोसा गया था, जिन्होंने प्रदेश की पुन: ऊपर उठ रही आर्थिकता को नीचे गिराने का काम किया था। यहीं बस नहीं, श्रीनगर की सबसे बड़ी मस्जिद के साथ-साथ अन्य अनेक मस्जिदों में भी इस घटना पर दु:ख प्रकट करने के लिए मौन धारण किए गए थे। घाटी के लगभग सभी बड़े-छोटे राजनीतिक नेताओं ने सभाएं करके यह दु:ख सांझा किया था। पिछले दिन इस घटना के संबंध में बुलाए गए जम्मू-कश्मीर विधानसभा के एक दिवसीय अधिवेशन में सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों ने इस घटना के संबंध में अपने-अपने विचार प्रकट किए थे। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अपने सम्बोधन में बेहद भावुक दिखाई दिए। उन्होंने विधानसभा में अपना दर्द सभी के साथ साझा करते हुए यह कहा कि मेज़बान होने के कारण मैं पर्यटकों की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार था। इसे मैं पूर्ण रूप से नहीं निभा सका। बिछुड़ गए लोगों के पारिवारिक सदस्यों से मैं कैसे माफी मांगूं, इसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। विधानसभा के सदस्यों ने इस त्रासदी के दृष्टिगत देश और जम्मू-कश्मीर की साम्प्रदायिक सद्भावना और विकास गति को बिगड़ाने का यत्न करने वालों के मनसूबों को पूरी तरह पस्त करने के लिए अपनी वचनबद्धता पुन: प्रकट की।
इस दु:खद घटना ने एक बार तो समूचा माहौल ही बदल कर रख दिया है। उमर अब्दुल्ला ने घटित इस घटना पर कहा कि सभी ओर पैदा हुए भारी रोष ने यह उम्मीद जगाई है कि अब लोगों के सहयोग से आतंकवाद का अंत ज़रूर किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बैसरन घाटी की घटना के बाद देश में लोगों ने जिस तरह से सद्भावना वाला आपसी अनुशासन बनाया है, उससे आतंकवादियों के मनसूबों की बड़ी हार होगी। हम समझते हैं कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का छलका यह दर्द घाटी के लोगों के दर्द की तर्जुमानी करता है। ऐसी भावना से ही बिछुड़ी आत्माओं को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है और प्रदेश के माहौल को पुन: साज़गार बनाया जा सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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