घाटी में पैदा हुई नई चेतना

पहलगाम के रक्तिम और भयानक घटनाक्रम के बाद जहां देश और पूरी दुनिया में शोक की लहर उठी है, वहीं जम्मू-कश्मीर में भी जन-साधारण ने इस दर्द को महसूस किया है। घाटी में 35 वर्ष से गड़बड़ वाले हालात बने रहे हैं। साढ़े तीन दशकों में इस सुन्दर घाटी ने लगातार मानवीय खून बहता देखा है। यहां से बड़ी संख्या में लोगों को पलायन करने के लिए भी विवश होना पड़ा है। आज भी जम्मू-कश्मीर से देश के अन्य हिस्सों में कश्मीरी पंडित पलायन करते आ रहे हैं। कश्मीरी पंडित निराशा में घूमते दिखाई दे रहे हैं। कभी यह भी मंज़र दिखाई देता था कि जब लश्कर-ए-तैयबा या अन्य किसी आतंकवादी संगठन का बड़ा-छोटा कमांडर मारा जाता था तो घाटी में भारी संख्या में लोग रोष स्वरूप गलियों-बाज़ारों में आ जाते थे। घाटी ने कई वर्षों तक पत्थरबाज़ी की घटनाओं को भी देखा है।
विगत कुछ वर्षों से यहां के हालात बदले हुए दिखाई देने लगे हैं। पिछले 4-5 वर्षों से यहां भारी संख्या में देश भर से पर्यटक आने लगे हैं। एक आंकड़े के अनुसार पिछले वर्ष लगभग 30 लाख पर्यटकों ने कश्मीर घाटी का दौरा किया, जिस कारण घाटी में जीवन पुन: धड़कने लगा था। यहां के ज्यादातर लोगों के लिए रोज़गार के बड़े साधन पैदा हुए थे। केन्द्र तथा यहां की निर्वाचित उमर अब्दुल्ला की सरकार ने भी यहां नई योजनाओं को लागू करने की तत्परता दिखाई है। एक तरह से घाटी पुन: से चहकने लगी थी और लोगों के दिल में नई उमंगें पैदा हुई थीं, परन्तु पहलगाम की घटना के बाद यहां एकाएक सब कुछ बदल गया प्रतीत होता है। यह पहली बार हुआ है कि कश्मीर घाटी पूर्ण रूप से बंद रही हो। लोग अपने तौर पर गलियों, बाज़ारों और सड़कों पर निकले। बारामुल्ला, अनंतनाग और शोपियां जहां कभी आतंकवादियों का पूरा प्रभाव रहा था, में रोष स्वरूप बड़े प्रदर्शन किए गए। उमर अब्दुल्ला ने इस घटनाक्रम पर यह कहा था कि पर्यटकों को वापस जाते देख कर उनका दिल रोता है।
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने श्रीनगर में भारी संख्या में शामिल हुए लोगों के रोष प्रदर्शन का नेतृत्व किया। छोटे-छोटे दुकानदारों और होटल वालों ने इस घटनाक्रम पर बड़ा दु:ख व्यक्त किया। हुर्रियत कान्फ्रैंस के चेयरमैन मीर वाइस उमर फारूक ने प्रतिक्रिया स्वरूप यह कहा था कि जो बेगुनाहों को मारता है, वह समूची मानवता का हत्यारा है। इस दु:खद घटना के रोष में जम्मू-कश्मीर की सभी पार्टियों ने एक-स्वर होकर इसके विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया और इसमें कहा कि ऐसा कुछ कश्मीरियत और संयुक्त भारत की भावना पर हमला है। इस घटनाक्रम के दौरान एक घोड़े वाला सईद आदिल हुसैन शाह भी पर्यटकों को बचाते हुए इस हमले में शहीद हो गया था। इस संयुक्त प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि सभी पार्टियां इस अमानवीय कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा करती हैं और भारत की एकता, शांति और आपसी भाईचारे पर इसे बड़ा हमला करार देती हैं।
इस दु:खांत के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा हुई आपसी गम्भीर स्थिति का शीघ्र हल तो नहीं निकलेगा, परन्तु इसने घाटी के लोगों में नई-चेतना और देश के साथ खड़े होने की कश्मीरियत की भावना को बड़ी सीमा तक उजागर ज़रूर कर दिया है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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