चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में गवई होंगे अगले मुख्य न्यायाधीश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल जो विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, उस पर राष्ट्रपति को तीन माह की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए और आवश्यकता पड़े तो वह इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट से भी सुझाव ले सकते हैं। इस टिप्पणी के बाद से ही सुप्रीम कोर्ट की चौतरफा आलोचना हो रही है, जिसे करने में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पेश-पेश हैं, जबकि यह उनके संवैधानिक पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है, लेकिन न्यायपालिका पर अपने हमले को जारी रखते हुए उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में एक बार फिर कहा कि ‘संविधान का कंटेंट क्या होगा इसके अल्टीमेट मास्टर्स चुने हुए प्रतिनिधि हैं। संविधान में संसद से ऊपर किसी अन्य प्राधिकरण की कल्पना नहीं है’। सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं कहा है कि उस पर एग्जीक्यूटिव के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने के आरोप लग रहे हैं। दिलचस्प यह है कि जिस खंडपीठ ने यह बात कही उसमें न्यायाधीश बी.आर. गवई भी शामिल थे, जो 13 मई, 2025 को मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना के अवकाश ग्रहण करने के बाद भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश होंगे।
न्यायाधीश भूषण रामकृष्णा (बी.आर.) गवई ऐसे समय में भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद भार संभालेंगे जब न्यायपालिका पर अपने कार्य क्षेत्र से बाहर निकलने की आलोचना हो रही है और भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, लेकिन न्यायाधीश गवई उन व्यक्तियों में से हैं जो बेतुकी आलोचनाओं व आरोपों की परवाह किये बिना ईमानदारी व निष्ठा से अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करते रहते हैं। इस साल मार्च में वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की टीम के साथ मणिपुर गये थे ताकि लम्बी देशज हिंसा के पीड़ितों से व्यक्तिगत तौर पर उनकी स्थिति मालूम कर सकें। इस टीम ने राहत सामग्री वितरित करते हुए घंटों मेडिकल कैंपों में बिताये और लीगल ऐड कैंप लांच किये, जिन्हें नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी ने आयोजित किया था। इस यात्रा के दौरान एक विशेष घटना ऐसी हुई जो न्यायाधीश गवई के हृदय को स्पर्श कर गई। एक महिला आगे आयी और उसने मुस्कुराते हुए न्यायाधीशों का अभिवादन इस संदेश से किया- ‘वेलकम टू योर होम’ (आपका आपके घर में स्वागत है)। न्यायाधीश गवई ने कहा कि न्यायाधीशों पर अक्सर जनता व आलोचक यह कहकर व्यंग्य बाण चलाते हैं कि न्यायाधीश अपने शीशमहलों में रहते हैं, उनसे बाहर नहीं निकलते। लेकिन मणिपुर वह शांति व सद्भाव के दूत बनकर गये थे। स्वागत के चंद शब्दों में सदियों की शिक्षा पल भर में दे दी। न्यायाधीश गवई का जन्म महाराष्ट्र के एक ऐसे परिवार में हुआ था जो सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष में लगा हुआ था। उन्होंने डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की शिक्षाओं और संविधान के सिद्धांतों से प्रेरणा ली।
न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन के बाद न्यायाधीश गवई भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायधीश होंगे। उनके अनुसार संविधान गठित करते समय सबसे तगड़ी बहसों में यह बहस शामिल थी कि क्या केंद्र व राज्यों के बीच सत्ता का असंतुलन है। एक पक्ष का मानना था कि केंद्र को अधिक शक्ति दी जा रही है, जबकि दूसरे पक्ष का विचार था कि पॉवर का पलड़ा राज्यों की तरफ अधिक झुक रहा है। न्यायाधीश गवई के अनुसार डॉ. अम्बेडकर ने संविधान में एकता के संदेश की ओर इशारा करते हुए दोनों पक्षों को उत्तर दिया। न्यायाधीश गवई 23 नवम्बर, 2025 को अपने रिटायरमेंट तक भारत के मुख्य न्यायाधीश बने रहेंगे, यानी उनका कार्यकाल छह माह से कुछ अधिक का होगा। इस पद के लिए उनकी सिफारिश ऐसे समय हुई है जब न्यायपालिका पर अपने कार्यक्षेत्र से बाहर निकलने की आलोचना हो रही है, भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और यह भी पारदर्शिता का अभाव है। तमिलनाडु के राज्यपाल केस में अदालत की आलोचना इस बात को लेकर हुई कि उसने राष्ट्रपति को परमादेश जारी किया कि वह विधेयक पारित करने में निर्धारित समय अवधि का पालन करें। फिर दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के अधिकारिक निवास पर तथाकथित अध-जले नोटों के बंडल मिले। इस मामले में जांच कमेटी की रिपोर्ट अभी आनी शेष है। हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट इस बात से परेशान है कि महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से निरन्तर टिप्पणी आ रही हैं।
न्यायाधीश गवई सख्ती के साथ अपनी अदालत का संचालन करते हैं। वह कोई लाग लपेट नहीं करते, सीधी और साफ बात एकदम बोल देते हैं, भले ही सामने कोई वरिष्ठ वकील ही क्यों न हो। खुली अदालत में जब वह आदेश का इमला देते हैं तो कोई वकील बीच में टोकाटाकी की हिम्मत नहीं करता क्योंकि उसे खरी-खरी सुननी पड़ सकती हैं। बहरहाल, पिछले पांच साल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहते हुए न्यायाधीश गवई अनेक ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें शामिल हैं संविधान के अनुच्छेद 370 का रद्द किया जाना और चुनावी बांड पर विराम लगाना। राज्यों को यह अधिकार देते हुए कि वह अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियां बना सकते हैं, न्यायाधीश गवई ने कहा कि अब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति से ‘मलाईदार परत’ को आरक्षण लाभ से निकालने का समय आ गया है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की हाल की सुनवाइयों में यह देखने को मिला है कि जिन मामलों पर वह निगाह रहती है उनमें सख्ती के साथ, बिना देरी किये, आदेशों को अन्य दिन के लिए स्थगित न करके, त्वरित निर्णय लिए जाते हैं। इनमें से कुछ फैसले कठिन भी रहे हैं, जिनमें ‘बुलडोज़र संस्कृति’ पर विराम लगाना भी शामिल है। ‘इमारत को ध्वस्त करते बुलडोज़र के भयावह नज़ारे’ की तुलना नियमरहित उस काले युग से की गई जब जिसकी लाठी उसकी भैंस हुआ करती थी। जुलाई 2023 में शनिवार की रात को तो न्यायाधीश एक सांस्कृतिक कार्यक्रम से सीधे अदालत पहुंचे ताकि एक्टिविस्ट तीस्ता शीतलवाड़ को तुरंत आत्मसमर्पण से सुरक्षित रखा जा सके। न्यायाधीश गवई अपने कार्यकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण फैसला दे सकते हैं—स्पीकर की शक्तियों के संदर्भ में। दल-बदल कानून के तहत विधायकों की अयोग्यता की मांग कर रही याचिकाओं पर स्पीकर राजनीतिक पक्षपात के कारण बैठ जाते हैं, विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है और अक्सर कोई फैसला नहीं आता। न्यायाधीश गवई अदालत में कह चुके हैं कि स्पीकर को फैसला समय सीमा के भीतर लेना चाहिए, जोकि निर्धारित की जाये।
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