यही है पाकिस्तान को गहरी चोट देने का समय

पहलगाम के बैसरन घास के मैदान में हज़ारों लोग एकत्र हुए, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी थे, सैयद आदिल हुसैन शाह को अंतिम विदाई देने के लिए। घोड़ा चालक आदिल ने एक आतंकी की राइफल छीनने की कोशिश की थी ताकि पर्यटकों की जान बचाई जा सके। वह ख़ुद भी 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए वीभत्स आतंकी हमले में 25 अन्यों के साथ अपनी जान गंवा बैठा। स्थानीय लोगों ने इस हमले को शर्मनाक बताते हुए कहा कि हमलावरों से उनका कोई लेना देना नहीं है। ‘कश्मीरियत की हत्या’ के विरोध में 23 अप्रैल, 2025 को घाटी बंद रही। जम्मू-कश्मीर में यह नया अध्याय है। इससे पहले अलगाववादी सरकार के विरुद्ध बंद का आयोजन किया करते थे। अब स्थानीय जनता आतंकियों व अलगाववादियों के खिलाफ  एकजुट होकर खड़ी हो गई है। 
इसलिए पाकिस्तान का यह आरोप बेतुका व निराधार है कि भारतीय पर्यटकों के नरसंहार से उसका ‘कुछ लेना देना नहीं’ है और यह भारत की ‘हिन्दुत्ववादी हुकूमत’ के खिलाफ ‘स्वदेशी विद्रोह’ है। प्रारम्भिक जांच में शक की सारी सुईयां पाकिस्तान की ओर ही इशारा कर रही हैं। जिन पांच से सात आतंकियों ने इस घटना को अंजाम देने का दुस्साहस किया, उन सबको पाकिस्तान में ही ट्रेनिंग दी गई थी। अनुमान यह है कि इनकी मदद दो स्थानीय आतंकियों ने की और उन्हें भी पाकिस्तान में ही ट्रेनिंग प्राप्त हुई। प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के इन संदिग्धों के स्केच जारी किये गये हैं और इन पर ईनाम भी घोषित किया गया है। एक मृत पर्यटक की पत्नी ने बिजबेहरा के आदिल थोकर उर्फ आदिल गुरी की पहचान की है। अधिकारियों का मानना है कि थोकर 2018 में सीमा पार चला गया था, जहां उसने लश्कर के साथ ट्रेनिंग ली। वह भारत लौटा और उसने इस हमले को अंजाम दिया। हमले से पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर, जो अमरीकी सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ओसामा बिन लादेन जैसे ही आतंकी हैं, के भाषण से भी यही संकेत मिलते हैं कि पहलगाम हमले में पाकिस्तान का हाथ है। 
बहरहाल, इस हमले के जवाब में भारत अनेक हाइब्रिड एक्शंस के माध्यम से आतंक-प्रायोजित करने वाले अपने पड़ोसी के लिए स्थितियां कठिन कर सकता है। कहने का अर्थ यह है भारत डिप्लोमेसी के ज़रिये पाकिस्तान के सैन्य-आतंकी काम्प्लेक्स को दबा सकता है। फिलहाल के लिए नई दिल्ली ने 1960 के सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया है, पाकिस्तान के साथ डिप्लोमेटिक संबंधों को डाउनग्रेड कर दिया है, जिसमें सैन्य अटैचियों का निष्कासन भी शामिल है। नई दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग में जो रक्षा, सेना, नौसेना व वायु सलाहकार हैं, उन्हें अवांछित व्यक्ति घोषित कर दिया गया है। भारत ने भी इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग से अपने रक्षा, सेना, नौसेना व वायु सलाहकारों को वापस बुला लिया है। दोनों देशों के दूतावासों में वर्तमान में 55-55 व्यक्ति थे, जिन्हें घटाकर 30-30 तक लाया जायेगा। ये फैसले 23 अप्रैल, 2025 को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) की बैठक में लिए गये। इनके अतिरिक्त यह भी फैसले लिए गये हैं कि अटारी पर इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट को तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया जाये। अब सार्क वीज़ा छूट योजना (एसवीईएस) के तहत पाकिस्तानी नागरिक भारत की यात्रा पर नहीं आ सकेंगे और अतीत में जो ऐसा कोई वीज़ा जारी किया गया है, वह रद्द माना जायेगा। जो पाकिस्तान के नागरिक वैध कागज़ात के साथ भारत आये हुए हैं, वह एक मई तक वापस लौट सकते हैं। केंद्र सरकार के अनुसार यह पाबंदियां उस समय तक रहेंगी जब तक पाकिस्तान अपनी धरती पर आतंक की मदद करना बंद नहीं कर देता।   
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पहलगाम में खतरे की लाल रेखा पार कर दी गई है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा संतुलन को पुन:स्थापित करने और आतंकियों व उनके पाकिस्तानी आकाओं को स्पष्ट संदेश देने के लिए भारत को सुपर स्मार्ट तरीका अपनाना होगा। भारत के लिए बेहतरीन विकल्प हाइब्रिड स्ट्रेटेजी है, जो पाकिस्तान के लिए गंभीर व सख्त मुश्किलें खड़ी कर सकती है। इस संदर्भ में कुछ सुझाव इस तरह से हैं। एक, किसी भी किस्म की सैन्य सुरक्षा प्रतिक्रिया केवल आतंक के जनकों को टारगेट करे। इस समय इस्लामाबाद भारत के साथ विस्तृत टकराव चाहता है।
दूसरा यह कि पहलगाम हमला उस समय हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की यात्रा पर थे। हाल के वर्षों में रियाद ने कट्टरवाद व आतंक फंडिंग को समाप्त करने में काफी निवेश किया है। बावजूद इसके वह पाकिस्तान को आर्थिक मुसीबत से निरंतर निकालता रहता है, शायद ईरान के विरुद्ध बीमे के तौर पर। लेकिन अब समय आ गया है कि भारत उन रिश्तों को भुनाये जो उसने हाल के वर्षों में खाड़ी देशों के साथ विकसित किये हैं। अगर वह तेल के बाद अपने आधुनिक सपनों को साकार करना चाहते हैं तो उन्हें भारत की ज़रुरत है, पाकिस्तान की नहीं। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे में ज़बरदस्त संभावनाएं हैं। चीन के नेतृत्व वाली बीआरआई जो पाकिस्तान से गुज़रती है, वह इस गलियारे को खतरे के रूप में देखती है। इसलिए नई दिल्ली को चाहिए कि वह खाड़ी के देशों पर दबाव बनाये कि वह पाकिस्तान की आर्थिक मदद करना बंद करें, जो क्षेत्रीय सुरक्षा व विकास के लिए बाधा बन गया है। पहलगाम में आतंकी हमले का एक उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के पर्यटन उद्योग को बर्बाद करना भी था। पाकिस्तान को भी जब तक आर्थिक चोट नहीं लगेगी तब तक वह अपनी नापाक हरकतों से बाज़ नहीं आयेगा। 
आज चीन पाकिस्तान का हर मौसम का दोस्त और सबसे बड़ा मददगार बन गया है, लेकिन वाशिंगटन में डोनल्ड ट्रम्प के आने से बीजिंग नई दिल्ली के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहता है। इसलिए नई दिल्ली को बीजिंग के समक्ष पहली शर्त यह रखनी चाहिए कि वह इस्लामाबाद पर भारत-विरोधी तत्वों को नियंत्रित करने का दबाव बनाये। अगर बीजिंग यह काम कर देता है तो भी द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाया जा सकता है। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो हमें मालूम हो जायेगा कि बीजिंग कभी भी आतंक प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान का साथ नहीं छोड़ेगा। ट्रम्प पाकिस्तान के लिए दीप नहीं जलाते हैं। पिछली बार जब वह वाइट हाउस में थे तो उन्होंने पाकिस्तान को धन शोधन व आतंक फंडिंग के लिए एफ एटीएफ  की ग्रे सूची में डाल दिया था। पाकिस्तान इस सूची से 2022 में बाहर निकला। पहलगाम के बाद नई दिल्ली व वाशिंगटन को साथ काम करते हुए पाकिस्तान को फिर उसी सूची में डाल देना चाहिए। वाशिंगटन में अनेक कांग्रेस सदस्य व सेनेटर हैं, जो पाकिस्तान पर आतंक का समर्थन करने पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना चाहते हैं। नई दिल्ली को उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए। पाकिस्तान को गहरी चोट देने का समय आ गया है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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