पहली बार कश्मीरी खुल कर आतंकवाद के विरुद्ध सामने आए
आज का कालम लिखना शुरू करते समय साहिब श्री गुरु नानक देव जी की बाणी की वे पंक्तियां बार-बार याद आ रही हैं, जिनका उन्होंने बाबर द्वारा भारत पर किये गये हमले के दौरान हुए नरसंहार की पीड़ा को महसूस करते हुए परमपिता परमात्मा को दिये एक उपालम्भ के रूप में उच्चारण किया था :
एती मार पयी कुरलाणे तैं की दर्द न आया।
(आसा म. 1, अंग : 360)
अब जो कुछ जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में घटित हुआ है, जिस तरह का नरसंहार वहां किया गया है, नि:संदेह वह कोई पहली घटना या हमला नहीं है। इतिहास में इससे भी बड़े हत्याकांड हुए हैं, परन्तु यह ताज़ा हमला सभ्य विश्व के माथे पर एक और बदनुमा दाग है, जिसकी जितनी निंदा की जाए, वह कम है। इस घटना ने पूरे भारत को भावुकता तथा पीड़ा के एहसास में बहा दिया है। विश्व भर में इसकी निंदा हो रही है, परन्तु इस पीड़ा, ़गम तथा गुस्से के बावजूद हमें इस बात की ओर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि इस बे-इन्तिहा ज़ुल्म के बावजूद इस बीच हिन्दू-मुस्लिम करने वाली साम्प्रदायिकता शक्तियां कहीं न कहीं हारते हुए दिखाई दे रही हैं। यह पहली बार है कि जब जम्मू तथा कश्मीर में इस बर्बर हत्याकांड के खिलाफ मस्जिदों से घोषणाएं की गई हैं, जब घाटी की बहुसंख्यक आबादी इसके खिलाफ खुल कर सामने आई है, जब मुसलमानों तथा अन्यों ने मिल कर ‘हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई-सभी भारतीय भाई भाई’ के नारे लगाए हैं। उल्लेखनीय है कि पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए इस हत्याकांड में निर्दोष हिन्दुओं की जान बचाने का यत्न करता एक मुसलमान युवक आदिल हुसैन शाह भी गोली खाकर शहीद हो गया। यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर के मुसलमान ऐसे हमले के खिलाफ खुल कर बोले हैं। आदिल बेचारा 9 सदस्यों के परिवार में अकेला कमाने वाला था। भारत सरकार का फज़र् है कि उसका उचित सम्मान करे और उसके परिवार को बड़ी आर्थिक सहायता एवं नौकरी दे, परन्तु अफसोस है कि हमारा मुख्य मीडिया इन सकारात्मक समाचारों को उभारने की जगह हिन्दू-मुसलमान/हिन्दू-मुसलमान करने को ही प्राथमिकता दे रहा है। किसी मुख्य मीडिया ने नज़ाकत अली की बहादुरी तथा इन्सानियत को सलाम करना अपना फज़र् नहीं समझा, जिसने 4 हिन्दू परिवारों के 11 सदस्यों को इस आतंकवादी हमले के दौरान बचाया।
इस बीच जम्मू-कश्मीर की आल पार्टी सिख तालमेल कमेटी (ए.पी.एस.सी.सी.) के चेयरमैन जगमोहन सिंह रैणा के बयान को भी दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता, जिसमें उन्होंने इस घटना की निंदा करने के अतिरिक्त इसकी गहन जांच करने की मांग करते हुए 20 मार्च, 2000 में जम्मू-कश्मीर के ही चिट्ठी सिंघापुरा की घटना जिसमें 35 सिख मारे गए थे, की इस घटना से तुलना की है कि उस समय भी अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्ंिलटन भारत आए हुए थे। अब भी अमरीकी उप-राष्ट्रपति जे.डी. वेंस भारत में हैं। उस समय भी सिर्फ पुरुष मारे गए थे, अब भी सिर्फ पुरुष ही मारे गए हैं। उन्होंने अन्य कई समानताओं का ज़िक्र भी किया है। उनकी मांग बहुत उचित लगती है कि इस घटना की जांच को किसी तर्कपूर्ण निष्कर्ष तक पहुंचाया जाए। उन्होंने कहा कि चिट्ठी सिंघापुरा का हत्याकांड था अब पहलगाम के हत्याकांड दोनों ही लक्षित हत्याएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक आम कश्मीरी कभी किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। वास्तव में यह घटना बहुत ही ़गमज़दा करने वाली है, जो किसी का भी हृदय द्रवित करने को मजबूर कर सकती है।
दिल ही तो है न संग-ओ-़िखश्त
दर्द से भर न आये क्यूं
रोएंगे हम हज़ार बार
कोई हमें सताए क्यूं।
-मिज़र्ा ़गालिब
भारत के शुरुआती कदम
और तो कौन है जो मुझ को तसल्ली देता,
हाथ रख देती हैं
दिल पर तेरी बातें अक्सर।
-जां निसार अ़ख्तर
भारत सरकार ने इस हमले को बहुत गम्भीरता से लिया है। बेशक इस बात पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि पहलगाम की बैसरन घाटी जहां दिन में हर समय पर्यटकों का बड़ा जमावड़ा रहता था, में सुरक्षाकर्मी क्यों तैनात नहीं थे, परन्तु भारत सरकार ने इस घठना के तुरंत बाद जो पांच कदम उठाए हैं, उनमें से सबसे सख्त कदम सिंधु जल समझौता रद्द करना है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में उरी हमले के समय भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कदम उठाने की धमकी देते हुए कहा था, ‘रक्त और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते’, परन्तु उस समय यह धमकी सिर्फ धमकी रही थी जबकि अब भारत ने यह संधि स्थगित करके एक बड़ा कदम उठाया है। इसे पाकिस्तान के लिए एक ‘जल बम’ माना जा रहा है। पाकिस्तान के अटार्नी जनरल तथा अन्य लोगों ने इसे एटमी हमले से भी खतरनाक करार दिया है। भारत तथा पाकिस्तान में कई युद्ध होने के बावजूद यह संधि बरकरार रही थी।
इस संधि के तहत साझे भारत की तीन पश्चिमी नदियां सिंध, झना (चिनाब) तथा जेहलम जिनका पानी लगभग 80 मिलियन एकड़ फुट है, पाकिस्तान के हिस्से आई हैं जबकि तीन पूर्वी नदियां सतलुज, रावी तथा ब्यास जिनमें लगभग 33 मिलियन फुट पानी बहता है, भारत के हिस्से आई थीं। उल्लेखनीय है कि इन तीन नदियों का पानी पाकिस्तान में पानी की 76 प्रतिशत ज़रूरतें पूरी करता है। फिर पाकिस्तान के तरबेला तथा मगंला बिजली डैम भी इनके सहारे ही चलते हैं। इसलिए यदि भारत अब संधि रद्द करने के बाद इन नदियों का पानी रोक देता है तो पाकिस्तान में हाहाकार मच जाएगा। पाकिस्तान रेगिस्तान में बदल जाएगा। लाखों लोग भुखमरी का शिकार हो जाएंगे। पाकिस्तान बर्बाद हो जाएगा, परन्तु यह तस्वीर का एक ही पक्ष है।
दूसरा पक्ष
परन्तु क्या संधि रद्द करने के बाद पानी का बहाव रोकने के लिए भारत के पास साधन हैं कि वह पानी रोक कर संग्रहित कर ले या अपने क्षेत्रों में इस्तेमाल कर लेगा? जवाब है नहीं, बिल्कुल नहीं। अपितु सच यह है कि कई बयानों के बावजूद हमारे हिस्से की तीन नदियों का काफी पानी अभी भी पाकिस्तान जा रहा है। हां, इस पानी को भारत एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है कि पहले जितनी क्षमता है, उतना पानी जमा कर लिया जाए और फिर अचानक पाकिस्तान की ओर छोड़ दिया जाए। यह पाकिस्तान की बर्बादी का बड़ा कारण बन सकता है। हमारे सामने है कि हमारे पानी छोड़े बिना ही मानसून की बहुतायत के कारण वर्ष 2010 की बाढ़ के कारण पाकिस्तान के 2000 लोगों की मौत हो गई थी तथा 2022 की बाढ़ में लाखों पाकिस्तानी बेघर हो गए थे।
परन्तु क्या क्रियात्मक रूप में यह भारत के लिए ऐसा सम्भव है? शायद नहीं, क्योंकि ऐसा करने से हमारे पड़ोसी देश चीन, नेपाल तथा बांग्लादेश भी हमें संदेह की नज़र से देखेंगे। दूसरी ओर चीन जो ब्रह्मपुत्र तथा सतलुज नदियों के मामले में हमें पर बैठा है, उसके सामने हमारी स्थिति भी वही है, जो पाकिस्तान की हमारे सामने है। यदि चीन पाकिस्तान की मदद के लिए यही रास्ता अपना लेता है तो फिर क्या होगा।
दूसरा, पाकिस्तान अपनी इस बर्बादी से बचने के लिए क्या रास्ता अपनाएगा, इसके संबंध में भी विचार करने की ज़रूरत है। फिर हम जो यू.एन.ओ. में सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के इच्छुक हैं, क्या इससे हमारी छवि ठीक रहेगी? परन्तु यदि भारत ने सचमुच पाकिस्तान को इन नदियों के पानी के इस्तेमाल पर रोक लगानी है तो एकमात्र रास्ता है कि भारत पानी सम्भालने और अपने क्षेत्रों में इस्तेमाल की व्यवस्था करे। नदियों को आपस में जोड़ने के ढांचे का निर्माण करे जिससे हमें अपनी कुल आय का बड़ा भाग कई वर्षों तक खर्च करना पड़ेगा। इसलिए स्पष्ट है कि नि:संदेह हमने यह समझौता रद्द कर दिया है परन्तु तात्कालिक रूप से पाकिस्तान को जाते पानी को रोकने के आधार बहुत कम दिखाई देते हैं। हां, इस समझौते को रद्द करना पाकिस्तान को उचित रास्ते पर लाने के लिए विवश करने के काम ज़रूर आ सकता है।
तसल्ली देने वाले तो तसल्ली देते रहते हैं
मगर वो क्या करे जिसका भरोसा टूट जाता है।
(हसीब सोज़)
विगत कुछ अवधि से भारतीय और पाकिस्तानी पंजाब के लोग, किसान, उद्योगपति और साहित्यकार एक दबाव बना रहे थे, कि दोनों देशों में व्यापार पुन: शुरू हो परन्तु इस घटनाक्रम ने इस सम्भावना को और दूर कर दिया है। इस स्थिति का भारत में यदि किसी को कोई नुकसान होगा तो वह सबसे अधिक पंजाब और पंजाबियों का ही होगा। यदि युद्ध होता है, तब भी।
इस हमले ने पंजाब की आर्थिकता को सुधारने के लिए पाकिस्तान के साथ पंजाब के रास्ते व्यापार खोलने की उम्मीद मौजूदा समय में दूर कर दी है। अब इसकी मांग करना भी कठिन बात प्रतीत होती है।
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
मो.92168-60000