महत्त्वपूर्ण है वेंस की यात्रा

अमरीका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. वेंस अपनी चार दिवसीय यात्रा के लिए भारत में हैं। इस दौरान उन्होंने जहां अहमदाबाद में अक्षरधाम मंदिर के परिवार सहित दर्शन किए हैं, वहीं भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए भी बातचीत की। दोनों देशों के मध्य लम्बी अवधि से व्यापारिक आदान-प्रदान के गहन संबंध बने रहे हैं परन्तु वेंस की यात्रा के दौरान व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को छुआ गया है। इनमें ऊर्जा, टैक्नालोजी, रक्षा के साथ-साथ पहले ही कई क्षेत्रों में चल रही योजनाओं पर भी प्रमुखता से विचार किया गया है। अमरीकी उप-राष्ट्रपति की इस यात्रा को इसलिए भी विशेष दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा है, क्योंकि वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापार संबंधी नई अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों ने विश्व भर में भारी घमासान पैदा कर दिया है। इससे एक तरह से टैरिफ युद्ध छिड़ गया है।
राष्ट्रपति ट्रम्प इस बात के लिए बज़िद प्रतीत होते हैं कि वह दूसरे देशों के साथ आपसी आदान-प्रदान में व्यापारिक टैक्सों को संतुलित रखेंगे। ऐसा वह ‘अमरीका फर्स्ट’ की अपने द्वारा अपनाई गई नीति के तहत कर रहे हैं। इस नीति के कारण विशेष रूप से उनके चीन के साथ संबंध अधिक बिगड़े दिखाई देते हैं। एक तरह से दोनों देशों का इस मोर्चे पर युद्ध छिड़ा दिखाई दे रहा है। इस घमासान में चीन को भी अपनी नीतियां बदलने के लिए विवश होना पड़ रहा है। जिन दर्जन देशों के साथ उसने सीमाओं और समुद्री सीमाओं को लेकर अनावश्यक लड़ाई छेड़ रखी है, उसको अब उन देशों के साथ पुन: सुखद संबंध बनाने की नीति अपनानी पड़ रही है। अपनी मंडी के उत्पाद को इन देशों में भेजने के लिए उन्होंने नए समझौते करने की नीति अपनाई है। भारत ने ट्रम्प की समान टैरिफ लाने की नीति के विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया तो ज़रूर व्यक्त की है परन्तु दोनों देशों के व्यापार को नई दिशा और रूप देने के लिए उन्होंने टकराव के स्थान पर द्विपक्षीय बातचीत की नीति को प्राथमिकता दी है। इस संबंध में भारत से संबंधित अधिकारियों और मंत्रियों ने अमरीका का भी दौरा किया है।
भारत में भी प्रत्येक स्तर पर यह विचार-विमर्श किया जा रहा है कि अमरीका द्वारा अपनाई जाने वाली ऐसी नीति के संबंध में व्यापारिक संतुलन बनाने के लिए अपनी व्यापारिक नीतियों में किस तरह के बदलाव किए जाएं। लगातार अमरीका के साथ चल रही ऐसी बातचीत से यह सम्भावना ज़रूर बनी दिखाई दे रही है कि दोनों देश किसी न किसी तरह व्यापार में संतुलन बनाने में सफल हो जाएंगे। इसी  कवायद के चलते अमरीकी उप-राष्ट्रपति की इस यात्रा का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। जिस तरह अमरीका में ही ट्रम्प की ऐसी नीतियों का भारी विरोध शुरू हो गया है, जिस तरह यूरोपीयन यूनियन के लम्बी अवधि से अमरीका के साथ चल रहे देशों ने इस नीति के संबंध में कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उससे भी ट्रम्प प्रशासन को अपनी नई नीतियों पर पुन: विचार करने की ज़रूरत महसूस होने लगी है। इसी कारण ट्रम्प ने अभी अपनी नीति पर क्रियान्वयन  को कुछ समय तक रोक कर रखा हुआ है। चाहे वह इस नीति से अमरीका को और मज़बूत बनाने के इच्छुक रहे हैं परन्तु विश्व भर का उत्पादन अमरीका में आने से या अमरीकी टैरिफ से महंगे मूल्य पर आने से वहां महंगाई के बढ़ने की सम्भावना बन गई है। इस कारण अमरीका विश्व में अलग-थलग पड़ने की ओर भी बढ़ता दिखाई दे रहा है।
उम्मीद है कि भारत जैसे बड़े देश, जिसके साथ दशकों से अमरीका के व्यापारिक संबंध चले आ रहे हैं, उनसे वह संबंध बिगाड़ने को प्राथमिकता नहीं देंगे। विशेष रूप से उस समय जब उनका चीन जैसे बड़े देश के साथ प्रत्यक्ष टकराव बना दिखाई दे रहा है। इसी संबंध में वेंस की यह यात्रा दोनों देशों के पहले से चले आ रहे व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों को कायम रखने में कितनी सीमा तक सहायक होती है, यह तो अभी देखना शेष होगा, परन्तु इस यात्रा के ऐसे सुखद प्रभावों से इन्कार नहीं किया जा सकता, जो दोनों के लिए निकट भविष्य में लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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