जौहड़ों एवं तालाबों के पुनर्जीवन की योजना

पंजाब में तालाबों और जौहड़ों की साफ-सफाई और उनमें वर्षा आदि का पानी सहेज कर रखने हेतु सरकार द्वारा किये जाते यत्नों के सदका प्रदेश में भूमिगत पानी के गिरते स्तर की दशा में सुधार होने की आशा बंधती है। प्रदेश में घोषित एवं प्रमाणित रूप से जौहड़ों एवं तालाबों की संख्या 15 हज़ार से अधिक है। इनमें से अधिकतर तालाब और जौहड़ (जिन्हें स्थानीय भाषा में छप्पड़ भी कहा जाता है) ग्रामीण इलाकों में हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में छोटे-बड़े तालाब अतीत में मौजूद रहे हैं। तथापि, आज की स्थिति में इनकी संख्या नगण्य जैसी है। फिर भी कहीं-कहीं प्रदेश के शहरों में आज भी जर्जर हालत में ये तालाब मौजूद हैं। आवश्यकता इनकी इस स्थिति को सुधारने अथवा इनका काया-कल्प करने की है। संभवत: इसी आवश्यकता के दृष्टिगत पंजाब की सरकार ने प्रदेश में कुल 15 हज़ार से अधिक तालाबों और जौहड़ों की हालत को सुधारने हेतु एक व्यापक योजना बनाई है। इस योजना हेतु प्राथमिक चरण पर 4573 करोड़ रुपये की राशि जारी भी कर दी गई है। इस योजना के अन्तर्गत इन तालाबों एवं जौहड़ों की दशा और दिशा को सुधारने हेतु थापर-सीचेवाल मॉडल का इस्तेमाल किया जाएगा। सरकार की मंशा इस कार्य को आगामी मौनसून के आगमन से पूर्व तक निपटा लेने की है हालांकि मौनसून के मौसम में अभी दो-अढ़ाई महीने पड़े हैं। 
सरकार की मंशा इस आधार पर भी समझ आती है, कि सम्बद्ध मंत्री ने मुख्यमंत्री के निर्देश पर विगत दिनों अनेक ज़िलों के कई गांवों का दौरा करते हुए अधिकारियों को सरकार की इस योजना के अनुरूप कार्य तेज़ किये जाने का आह्वान किया। यह भी पता चला है कि इस योजना के तहत उन ग्रामीण जौहड़ों की ओर अधिक ध्यान दिया जाएगा जो लम्बी अवधि से सरकार, पंचायतों और जन-साधारण की उपेक्षा का शिकार होते रहे हैं। विकास की आड़ में प्रदेश के ग्रामीण और खास तौर पर शहरी इलाकों में अधिकतर तालाबों पर अवैध कब्ज़े कर लिये गये। यहां तक कि तालाबों की ज़मीनों का अन्य कार्यों के लिए उपयोग किया जाने लगा। इस कारण प्रदेश के बड़े शहरों में अधिकतर तालाब अस्तित्व-हीन हो कर रह गये। ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्राय: स्थिति ऐसी ही पाई गई है। वहां भी अनेक जौहड़ों को आवासीय क्षेत्रों में बदल दिया गया अथवा वहां छोटी-मोटी फसलें बो दी गईं। इस कारण स्थिति धीरे-धीरे यह होते चली गई कि धरती के नीचे से पानी की निकासी जितनी बड़ी मात्रा में होती गई, भू-जल की आपूर्ति उसी गति से कदापि नहीं हुई।
अब सरकार ने थापर-सीचेवाल माडल के तहत जिस प्रकार की योजना तैयार की है, उसके अनुसार एक ओर जहां तालाबों और जौहड़ों की गाद यथासंभव बाहर निकाली जाएगी, वहीं इनमें बारिश के पानी को डालने और फिर उसे कृषि-योग्य अथवा-पशुओं के पीने हेतु स्वच्छ बनाये रखने की भरसक व्यवस्था की जाएगी। इस हेतु वांछित मशीनरी और अन्य सामग्री भी उपलब्ध कराई जाएगी। तालाबों और जौहड़ों में गाद की निकासी से उनका धरती से सम्पर्क बढ़ेगा जिससे भूमिगत पानी का स्तर बढ़ने की सम्भावनाएं उपजने लगेंगी। धीरे-धीरे भूमिगत पानी का स्तर ऊंचा उठना भी शुरू हो जाएगा। इससे प्रदेश में भूमिगत पानी की स्वच्छता एवं शुद्धता में भी सुधार होगा और नदी-नालों के पानी की साफ-सफाई की सम्भावनाएं भी बढ़ेंगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थायी बाढ़ की आशंकाएं भी कम होने लगेंगी। प्राय: यह होता आया है कि बारिश के मौसम में ग्रामीण जौहड़ बहुत जल्दी लबालब भर जाते हैं जिनका पानी आस-पास के निचले इलाकों के घरों की दहलीज तक पहुंच जाता है। नि:संदेह जौहड़ों की गाद निकलने से उनके पानी भरने की सामर्थ्य बढ़ेगी जिससे इस अस्थायी बाढ़ का खतरा टलेगा। सरकार के दावे के अनुसार बहुत-से गांवों में साफ-सफाई का यह कार्य शुरू भी हो चुका है और बहुत शीघ्र इसके सार्थक परिणाम सामने भी आने लगेंगे।
पंजाब इस समय भूमिगत पानी के रसातल की ओर बढ़ते स्तर के मामले में गम्भीर संकट के दौर में से गुजर रहा है। पानी के संचय वाले लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकार गांवों में ट्रीटमैंट प्लांट भी मुहैया करायेगी। कृषि एवं भूमि-विशेषज्ञों ने इस संकट से पार पाने के लिए कई तरह के सुझाव एवं प्रस्ताव दिये हैं। इनमें से ही एक ग्रामीण जौहड़ों एवं शहरी तालाबों को पुनर्जीवित किये जाने संबंधी भी है। सरकार की मौजूदा योजना भी संभवत: इसी तथ्य से प्रेरित प्रतीत होती है। अत: हम समझते हैं कि इस प्रकार की किसी योजना पर जितनी शीघ्र अमल होगा, उतना ही पंजाब की सेहत और पंजाबियों के हित में बेहतर होगा।

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