सिंधु जल समझौता तथा इसके स्थगन के पाकिस्तान पर प्रभाव

पहलगाम की बेसरन घाटी में 22 अप्रैल को आतंकवादियों द्वारा 28 पर्यटकों को मारे जाने की घटना ने एक तरह से पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। विश्वभर में इस अमानवीय कृत्य की कड़ी आलोचना हो रही है। पहले ही भारत तथा पाकिस्तान के खराब चल रहे रिश्त इससे और बिगड़ने की अधिक शंका पैदा हो गई है।
भारत ने सही तौर पर इसके लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है। क्योंकि पिछले लम्बे समय से जम्मू-कश्मीर सहित भारत के अन्य हिस्सों में पाकिस्तान के शह प्राप्त आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए- तैयबा और हरकत-उल-अनसार पाकिस्तान की धरती से घुसपैठ करके हिंसक हमलों द्वारा दहशत फैलाते रहे हैं। इसी कारण अब भारत ने पाकिस्तान के साथ सख्ती से निपटने का बड़ा फैसला करते हुए कुछ सख्त कदम उठाने का ऐलान किया है, जिनमें सिंधु जल समझौता स्थगित करना, अटारी-वाघा संयुक्त सीमा को बंद करना, सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीज़े रद्द करके 48 घंटों में उनको देश से बाहर जाने का आदेश देना और इस्लामाबाद में भारत के दूतावास का स्टाफ घटाने और इसी प्रकार नई दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास का स्टाफ घटाने के लिए निर्देश जारी करना आदि शामिल हैं। इन सब कदमों में से भारत का जो कदम पाकिस्तान के लिए सबसे घातक साबित हो सकता है वह है— ‘सिंधु जल समझौता’ को रद्द करना। इससे पाकिस्तान की कृषि और बिजली उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। यहां तक कि देश को पीने वाले पानी की भी कमी का सामना करना पड़ सकता है। भारत द्वारा सिंधु जल समझौता रद्द करने की सूचना के साथ ही पाठकों में यह जानने की इच्छा पैदा हो गई है कि यह समझौता क्या है? कब हुआ था? और इसके पाकिस्तान पर कैसे प्रभाव पड़ सकता है? यहां इस संबंधी हम संक्षेप में चर्चा कर रहे हैं।
सिंधु जल समझौता
सिंधु जल समझौता देश की आज़ादी के बाद दोनों देशों की 9 साल की बातचीत के बाद 1960 में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के मध्य कराची में विश्व बैंक की उपस्थिति में हुआ था। इस समझौते में सिंधु दरिया प्रणाली के 6 दरियाओं के पानी की भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारा किया गया था। सिंधु दरिया प्रणाली अधीन 6 दरिया— सिंधु, जेहलम, चिनाब, सतलुज, रावी और ब्यास आते हैं। सिंधु, जेहलम और चिनाब का पानी समझौते अधीन पाकिस्तान और सतलुज ब्यास और रावी का पानी भारत को दिया गया था। सिधु दरिया प्रणाली के उक्त दरियाओं का 80 प्रतिशत पानी सिंधु, जेहलम और चिनाब में बहता है, जबकि सिर्फ 20 प्रतिशत पानी ही सतलुज, रावी और ब्यास में बहता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दरियाओं के कुल पानी का 80 प्रतिशत पाकिस्तान को दिया गया था और 20 प्रतिशत पानी ही भारत के हिस्से आया था। जैसे कि ऊपर लिखा गया है कि यह समझौता विश्व बैंक की उपस्थिति में हुआ था और इसके रख-रखाव के लिए सिंधु जल कमिशन बनाया गया था, जिसके अधीन दोनों देश दरियाओं के पानी के बहाव संबंधी एक-दूसरे को समय-समय पर जानकारी देते हैं। समझौते के अनुसार साल में एक बार सिंधु जल कमिशन की बैठक होना ज़रूरी है। यदि कोई विवाद पैदा होता है तो उसका निपटारा इस कमिशन में आपसी बातचीत द्वारा दोनों देश कर सकते हैं। यदि समझौता न हो तो विश्व बैंक तक पहुंच की जा सकती है और यदि फिर भी सहमति न बने तो विवाद अंतर्राष्ट्रीय अदालत में भी जा सकता है।
पाकिस्तान पर प्रभाव
भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का जो फैसला किया गया है, उसको पाकिस्तान के लिए इसलिए घातक कहा जा रहा है, क्योंकि पाकिस्तान की 80 प्रतिशत कृषि ज़मीन की सिंचाई सिंधु दरिया प्रणाली पर निर्भर है। पाकिस्तान को प्राप्त होते पानी का लगभग 93 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल होता है। खास तौर पर सिंधु और पंजाब की कृषि बड़े स्तर पर इस दरियाई पानी पर निर्भर रहती है। पाकिस्तान की आर्थिकता में कृषि का योगदान 23 प्रतिशत है और 68 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से कृषि पर निर्भर है। पाकिस्तान के प्रमुख शहर कराची, मुलतान और लाहौर अनेक पक्षों से सिंधु, जेहलम और चिनाब के पानी पर निर्भर करते हैं। पाकिस्तान के दो बड़े बिजली प्रोजैक्ट तरबेला और मंगला भी सिंधु के पानी के साथ चलते हैं। पाकिस्तान की आर्थिकता और पाकिस्तान की ज़रूरतों संबंधी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों का विचार है कि यदि भारत अमली रूप में पाकिस्तान को जाते सिंधु, जेहलम और चिनाब के पानी को रोक देता है तो पाकिस्तान के कृषि उत्पादन में बड़ी गिरावट आ जाएगी। वहां खाद्य सामग्री का संकट खड़ा हो जाएगा। पाकिस्तान की शहरी जल सप्लाई भी रुक जाएगी और देश में अशांति फैल सकती है। देश का बिजली उत्पादन ठप्प होने से शहरी इलाकों में अंधेरा छा जाएगा और उद्योग को चलाना मुश्किल हो जाएगा। 
बिजली संकट पैदा होने से अन्य अनेक पक्षों से भी पाकिस्तान का आम जन-जीवन प्रभावित हो सकता है। नि:संदेह यदि ऐसा होता है तो परमाणु हथियारों से लैस दोनों देशों के खराब हो रहे संबंध किसी भयानक युद्ध को जन्म दे सकते हैं। बेहतर यही होगा कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध आतंकवाद को पूरी तरह कंट्रोल करे और भारत के साथ अपने सभी विवाद बातचीत से सुलझाने के लिए आगे आए। दोनों देशों के करोड़ों आम लोगों की भी यही भावना है। लेकिन यह पाकिस्तान के अधिकारियों और वहां की सेना स्थापति ही है जो दीवार पर लिखी हुई इस इबारत को पढ़ने से लगातार इंकार कर रही है। इसी ने ही दोनों देशों के संबंधों को दशकों से बुरी स्थिति में धकेला हुआ है। यह आने वाला समय ही बताएगा कि पहलगाम में पर्यटकों पर किये गये हमले के बाद दोनों देशों के संबंध आगे क्या रुख अख्तियार करते हैं? 

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