प्रकाश सिंह बादल को स्मरण करते हुए

पुण्यतिथि पर विशेष

देश के कद्दावर नेता व दरवेश शख्सियत स. प्रकाश सिंह बादल को बिछड़े हुए लगभग तीन वर्ष का समय व्यतीत हो गया है, परन्तु करोड़ों पंजाबियों के दिल में आज भी उनकी अविस्मरणीय यादें समाई हुई हैं।
वह एक ऐसे सागर हैं, जिसकी स्तह के नीचे लाखों भूकम्प आए, लाखों त़ूफान आए, परन्तु उनका मन शांत रहा-एक ऐसा अडोल वृक्ष, जिसके सिर पर प्रतिदिन त़ूफान मंडराते रहे, बिजली गिरती रही, परन्तु उन्होंने उनका जवाब गर्म हवा के साथ देने से हमेशा इन्कार किया, अपितु इसके विपरीत शीतल हवा बिखेरी और कीचड़ के बदले सिर्फ नम्रता, मिठास के फूल बांटे, जिसने कड़े से कड़े विरोधी के प्रति भी बड़पन और क्षमा वाला व्यवहार अपनाने को प्राथमिकता दी। स. प्रकाश सिंह बादल के राजनीतिक फैसलों के संबंध में उनके विरोधी और आलोचक लाखों बातें कर सकते हैं और आज भी करते होंगे-उन्हें पूरा अधिकार भी है, परन्तु उनके विरोधियों और आलोचकों में कोई एक भी उनकी निजी शख्सियत की निरन्तर फैलती महक से तो इन्कार नहीं कर सकता और न ही उनके एहसास से वंचित रहा होगा।
बहुत कुछ लिखने का समय आएगा, बहुत कुछ लिखा जाएगा एक ऐसे इन्सान के सार्वजनिक या राजनीतिक जीवन संबंधी, जिसका अ़फसाना आज़ादी के बाद खालसा पंथ और पंजाब के इतिहास की ही गाथा है। विशेष रूप से अर्ध-पचासवें के बाद पंजाब के समूचे घटनाक्रम में कुछ भी ऐसा नहीं, जिस पर बादल साहिब की शख्सियत की गहन छाप दिखाई न देती हो। बात चाहे पंजाबी प्रदेश के लिए शुरू किए अकाली संघर्ष की हो या देश में आपात्काल के दौरान इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध मोर्चे की या पंजाब पर सिख कौम की मांगें मनवाने के लिए छिड़े धर्म युद्ध मोर्चे की, कोई पड़ाव ऐसा नहीं जहां सरदार बादल अग्रणी पंक्ति में खड़े होकर गिरफ्तारियां देते और अत्याचार का सामना करते दिखाई नहीं दिए। 
बतौर मुख्यमंत्री, यदि बात प्रदेश में पढ़ाई-लिखाई के लिए विद्या की क्रांति लाने की हो, तो वह कभी मॉडल स्कूल और कभी मैरीटोरियस स्कूलों का जाल बिछाते दिखाई देते हैं और कभी विश्व स्तर पर संस्थान जैसे इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस मैनेजमैंट और कभी आई.आई.टी. और कभी आई.आई.एम. लाते दिखाई देते हैं। वह स्वास्थ्य क्षेत्र को अत्याधुनिक बना कर कैंसर जैसी नामुराद बीमारियों के विरुद्ध लड़ाई छेड़ते और प्रत्येक के लिए लाखों का मुफ्त उपचार सुनिश्चित करते और कहीं हैल्थ सिटी बनाते, कहीं ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साईंस और कहीं डाक्टर होमी भाबा इंस्टीच्यूट लेकर दिखाई देते हैं। उद्योग की बात चलती है तो प्रदेश की अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक इकाई, 25 हज़ार करोड़ की श्री गुरु गोबिंद सिंह रिफाइनरी भी वही लेकर आते हैं, दो अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और तीन घरेलू हवाई अड्डे भी प्रदेश को वह ही लेकर देते हैं।
किसानों के लिए कभी ऋण माफ करते हैं, कभी ट्रैक्टर को जट्ट की बैलगाड़ी बताकर टैक्स मुक्त करते हैं, बिजली-पानी मुफ्त देते हैं और आपदाओं में घिरे किसान की फसल की खरीद के लिए फोक्ल प्वाइंट और ग्रामीण सड़कों का जाल बिछाते हैं- सब कुछ की संख्या बताना सम्भव ही नहीं है। आज प्रदेश में विश्व स्तर की सड़कों का जाल बिछा हुआ दिखाई दे रहा है। ये सब कुछ उनकी सरकार के दौरान हुआ, यह सभी जानते हैं।
उनके संबंध में दो या तीन भावुक परन्तु अहम बातों का ज़िक्र ज़रूरी है-
जून 1984 में भारतीय सेना को हमलावर बनाकर श्री हरिमंदिर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा गया, जिसने ऐसे ज़ख्म छोड़े, जिनमें अभी भी रिसाव हो रहा है। स. बादल ने ज़बरदस्त स्टैंट लेकर उसी भारतीय सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को खालसा पंथ के जन्म अस्थान श्री आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ के विरसे आगे लाकर नतमस्तक किया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि ऐसा हो भी सकता है, क्योंकि सेनाओं के प्रमुख कभी भी किसी राजनीतिक या धार्मिक समारोहों में नहीं जाते। परन्तु बादल साहब ने प्रधानमंत्री को ज़ोर देकर इसलिए राज़ी कर दिखाया—अवसर था खालसा पंथ के 300वें साजना दिवस का। उसी दौरान खालसा विरासती काम्पलैक्स बना, जो एक आधुनिक अजूबा है। इससे पहले तथा इसके बाद, खालसा पंथ की विरासत को सम्भालने के लिए जो भी प्रयास हुए तथा यादगारें बनीं दिखाई दे रही हैं, वे सब सरदार बादल द्वारा ही निर्मित की गई हैं।
 इस संदर्भ में जंग-ए-आज़ादी यादगार करतारपुर भी उनकी बहुत बड़ी देन है, जिसमें पंजाबियों द्वारा आज़ादी दिवस में डाले गए बेमिसाल योगदान का इतिहास सम्भाला गया है। इसी प्रकार अन्य धर्मों का सम्मान करने के लिए राम तीर्थ मंदिर, दुर्ग्याणा मंदिर, गुरु रविदास यादगार खुरालगढ़, जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, यह सब सिर्फ और सिर्फ वह ही करके दिखा सके। 
एक अहम बात और 
सरदार बादल तथा जत्थेदार टोहरा के रिश्ते बारे कुछ ऐसे लोगों द्वारा भांति-भांति की बातें सुनने को मिलती रहती हैं, जो कि इन दोनों में से किसी की भी मानसिकता के समकक्ष नहीं। टोहरा साहब अनेक बार सरदार बादल द्वारा ही नामज़द होकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान बनते रहे चाहे कुछ आलोचक इस प्रक्रिया को ‘लिफाफा कल्चर’ बताते रहे। अंतिम बार भी टोहरा साहब अपने इसी राजनीतिक भाई की अध्यक्षता में शिरोमणि कमेटी प्रधान बन कर इस दुनिया से रुखसत हुए। 
बतौर परिपक्व राजनीतिज्ञ स. बादल ने 1997 से पहले खालसा पंथ की रक्त-रंजित हुई रूह को पुन: बलवान किया और पंजाब की बिखरी हुई मानसिकता को दोबारा साझीवालता की माला में पिरोया तथा यहां अमन व भाईचारक साझ के गीत पुन: गूंजे। यह सरदार बादल ही नहीं थे जो कांग्रेस पार्टी के खिलाफ एक अहम चुनाव के बिल्कुल शिखर पर भी यह कर सकते थे कि जब प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी बीमार हो गए तथा उनका आप्रेशन होना था, तो उनके सफल अप्रेशन तथा स्वस्थ्य के लिए उन्होंने अखंड पाठ साहिब का पाठ करवाया तथा वह भी श्री हरिमंदिर साहिब में। यह बात समाज के प्रति पीड़ा वाली है कि अपने राजनीतिक विरोधी के लिए यह सम्मान तथा संवेदनशीलता दिखा सकने वाला ऐसा संत राजनीतिज्ञ अपने विरोधियों के अंधे दुष्प्रचार का शिकार हुआ। परन्तु पंजाब में शांति तथा भाईचारक साझ के रंगले गीत हमेशा उनकी सर्वसाझी सोच के स्वर का समर्थन करते रहेंगे और इतिहास उन्हें हमेशा एक ऐसे दानिशवर राजनीतिज्ञ के रूप में याद करेगा, जिसने राजनीतिक हालात के कारण पैदा हुई दूरियों को कम करके पंजाब के लोगों में भाईचारक साझ को पुन: जीवित किया। इन शब्दों से ही हम उन्हें अपनी श्रद्धा के फूल भेंट करते हैं। 
 

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