अमरीकी उप-राष्ट्र्रपति की भारत यात्रा एक अच्छा संकेत

अमरीकी उप-राष्ट्रपति जे.डी. वेंस की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों में एक सूक्ष्म बदलाव का संकेत देती है। ट्रम्प के टैरिफ  युद्ध को लेकर वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल के बीच इस चार दिवसीय यात्रा में एक निजी छाप भी है। वेंस को एक उग्र और थोड़े कठोर व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, लेकिन एक दूसरा पक्ष भी है, उनका परिवार। उनकी पत्नी उषा भारतीय मूल की वकील हैं, जिन्हें अपने तेलुगू वंश पर गर्व है। उषा के माध्यम से वेंस भारतीय संस्कृति और इतिहास से बहुत परिचित हैं। 
महत्वपूर्ण बात यह कि अमरीकी उप-राष्ट्रपति ने सोमवार को अपने पहले कार्यक्रमों में से एक दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर का दौरा किया, जिसके दौरान वेंस परिवार के बच्चों ने भारतीय वेशभूषा पहनी थी और गले में माला पहन रखी थी। यह दूसरे परिवार के भारत के साथ व्यक्तिगत और सांस्कृतिक जुड़ाव को रेखांकित करता है, जिसे प्रदर्शित करने के लिए वह काफी आगे तक गये।
दूसरा, भारत अमरीका के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस देश को एशिया और समग्र भू-राजनीति में चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक ढाल के रूप में देखा जाता है। अमरीका चीन को आर्थिक रूप से और साथ ही अमरीकियों के मन में वैश्विक रणनीतिक संतुलन में अपना कट्टर प्रतिद्वंद्वी मानता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग वर्तमान में दक्षिण पूर्व एशिया के विस्तारित दौरे पर हैं ताकि ऐसे देशों का एक नेटवर्क बनाया जा सके जो अमरीका के साथ टकराव में चीन के साथ खड़े हो सकें। अभी तक दक्षिण पूर्व एशियाई देश अमरीका के लगभग ग्राहक देश थे।
अब चीन विशाल चीनी बाज़ारों में आकर्षक आवास और सड़कों एवं पुलों के निर्माण के लिए सहयोग के साथ उन्हें अमरीका से दूर करने की कोशिश कर रहा है। चीन इन देशों को अमरीका से कहीं अधिक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। इस अर्थ में चीन अमरीका को एशिया के साथ-साथ अन्य जगहों पर अपने पुराने मित्रों और सहयोगियों से अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है।
ट्रम्प के मनमाने टैरिफ  और धमकियों के बाद अमरीका पहले से ही वैश्विक मंच पर प्रमुख खिलाड़ियों से अलग-थलग पड़ गया है। ट्रम्प ने चीन के साथ-साथ यूरोपीय संघ को भी गहरी चोट पहुंचाई है, जो आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण ब्लॉक है। साथ ही रणनीतिक, कूटनीति और भू-राजनीति के मामले में भी यूरोपीय संघ को धक्का लगा है। दुनिया ट्रम्प के घमंड और अमरीकी श्रेष्ठता के पैंतरों से नाराज़ है।
ट्रम्प के मौजूदा दौर में वेंस बेहद महत्वपूर्ण हैं और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की के साथ अमरीकी दूरदर्शी डोनाल्ड ट्रम्प की बैठक के दौरान उनकी भूमिका देखी गयी। वेंस डोनाल्ड ट्रम्प के कान हैं, भले ही ट्रम्प हमेशा अपने हिसाब से काम करते हैं। हाल ही में इटली की प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान उनके साथ बैठक में वेंस प्रमुखता से बैठे थे।
इस प्रकार भारत को अब इस बात का लाभ मिला है कि वेंस इस कठिन समय में भारत के दृष्टिकोण को सुनेंगे, जब अमरीका ने टैरिफ  की बौछार के साथ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के खिलाफ आभासी युद्ध शुरू कर दिया है। भारत को तथाकथित पारस्परिक टैरिफ  का भी सामना करना पड़ा है, जिसे अब अस्थायी रूप से नब्बे दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया है।
यदि भारत अमरीकी टीम को पूर्ण पैमाने पर व्यापार युद्ध के बजाय अमरीका के साथ एक उचित व्यापार सौदा करने की अपनी वास्तविक इच्छा से अवगत कराने में सक्षम है, तो यह भारत-अमरीका संबंधों के लिए नयी खिड़कियां खोलेगा। भारत ने टैरिफ  पर शुरुआती बातचीत पहले ही शुरू कर दी है और कुछ हालिया रियायतें बदलाव की दिशा की ओर इशारा करती हैं।
यह दुनिया के दो प्रमुख खिलाड़ियों—चीन और यूरोपीय संघ के रुख के बिल्कुल विपरीत है। लेकिन कोई गलत फहमी न पालें, क्योंकि जैसे ही ट्रम्प उनमें से किसी के साथ कुछ सौदे करने में सक्षम होंगे, उनके महत्व के कारण वह उस पर कूद पड़ेंगे। वह इन खिलाड़ियों पर अपनी जीत के साथ आगे बढ़ेंगे और दुनिया को दिखायेंगे कि वह कितने महान सौदा-निर्माता हैं।
अब तो और भी ज़्यादा, क्योंकि एक तेज़ डील मेकर के रूप में उनकी छवि और यूक्रेन युद्ध को एक दिन में समाप्त करने की उनकी क्षमता के बारे में उनके सब दावे उजागर हो चुके हैं। उन्होंने रूसी ताकतवर नेता पुतिन से वार्ता की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और पुतिन ने अपनी चतुर कुटनीति से उन्हें अपने पक्ष में कर लिया। ट्रम्प को एक मध्यस्थ और एक कर्ता के रूप में अपनी विश्वसनीयता को बहाल करने की सख्त ज़रूरत है। भारत जैसे बड़े देश के साथ व्यापार समझौता उनके लिए एक तरह का पंख साबित हो सकता है।
यह अब भारत के लिए अमरीका के साथ एक अनुकूल सौदा की तलाश करने का एक शानदार अवसर है, जिसका मुद्रीकरण किया जाना चाहिए, इससे पहले कि डोनाल्ड ट्रम्प की मजबूरियां दूसरों की ओर मुड़ जाएं। भारत को राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए सही कदम उठाने होंगे। (संवाद)

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