दोगली नीति का पछतावा
आतंकवादियों द्वारा कश्मीर के पहलगाम के निकट किए गए रक्तिम हमले के बाद पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अकेला पड़ता दिखाई दे रहा है, अब वहां की सरकार द्वारा जिस तरह का व्यवहार अपनाया जा रहा है, उससे प्रतीत होता है कि जैसे वह हाशिये की ओर धकेल दिया गया हो, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शऱीफ ने तो एक बार फिर यह कह दिया है कि इस हमले में उनका कोई हाथ नहीं है और वह इसकी आज़ाद जांच करवाने के लिए तैयार हैं, परन्तु इस मोर्चे पर जो कुछ भी हो रहा है, उससे भारत तो क्या दुनिया का कोई भी देश अनजान नहीं है।
पाकिस्तान भारत को लगातार गहरी चोट पहुंचाता रहा है। इसकी अनेकानेक उदाहरणें सामने हैं। उसके ऐसे घटनाक्रमों के कारण ही दोनों देशों में अनेक युद्ध हुए हैं, परन्तु फिर भी पाकिस्तान की सेना ने लगातार आतंकवादियों को प्रशिक्षित करके भारत के विरुद्ध परोक्ष लड़ाई जारी रखी है। अब सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने विगत दिवस भारत के विरुद्ध जो ज़हरीला भाषण दिया था, उससे ही यह ज़ाहिर हो जाता है कि अभी भी सेना का एजेंडा पहले वाला ही है। विगत लगभग चार दशकों से पाकिस्तान की धरती से हथियारबंद आतंकवादी भारत में खून बहाते आ रहे हैं, यदि पिछले कुछ ऐसे घटनाक्रमों की बात की जाए तो वर्ष 2000 में कश्मीर के चिटीसिंहपुरा में आतंकवादियों ने सिखों का नरसंहार किया था। वर्ष 2001 में नई दिल्ली में देश की संसद पर हमला किया गया था। वर्ष 2002 में कालूचक्क पर हमला और वर्ष 2008 में मुम्बई पर हमला, वर्ष 2020 में उरी में और इससे एक वर्ष पहले 2019 में पुलवामा में भी सुरक्षा बलों पर हमला किया गया था। इन घटनाओं में सैकड़ों ही भारतीय शहीद हुए थे। चाहे इस संबंध में पूरे तथ्य भी सामने आते रहे हैं परन्तु पाकिस्तान इनके बावजूद भी इन्कार करता आ रहा है। मुम्बई हमले के संबंध में भारत ने उस समय पाकिस्तान को लगभग 20 विस्तारपूर्वक डोज़ीयर भी भेजे थे, परन्तु उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगी थी। मुम्बई हमले में लश्कर के प्रशिक्षित आतंकवादी अजमल कसाब जीवित काबू आ गया था, जिस कारण पाकिस्तान की इस योजना का पूरा विस्तार सामने आ गया था। अजमल कसाब पाकिस्तानी पंजाब के फरीदकोट नामक गांव से संबंधित था। इसी तरह तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज़ शऱीफ ने वर्ष 2018 में स्पष्ट रूप से यह प्रश्न उठाया था कि उसके देश ने मुम्बई में इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए आतंकवादी क्यों भेजे थे? वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के बाद भी नवाज़ शऱीफ ने उस समय के सैन्य प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ को इसके लिए आरोपी ठहराया था। पाकिस्तान का दोगला चरित्र इससे भी देखा जा सकता है कि एक तरफ तो पाकिस्तान अमरीका के साथ सहयोग और दोस्ती का दम भरता रहा, दूसरी तरफ उसने अमरीकी हमले के आरोपी ओसामा-बिन-लादेन को लम्बी अवधि तक रावलपिंडी के सैन्य केन्द्र के निकट एबटाबाद में छुपाये रखा, जिसे लम्बी तलाश के बाद हमला करके अमरीकी सुरक्षा बलों ने मार दिया था। इस घटना के बाद पाकिस्तान का झूठ उजागर हो गया था। अब बौखलाहट में आकर उसके रक्षा मंत्री ख्वाज़ा आस़िफ ने स्वयं ही मान लिया है कि पाकिस्तान अमरीका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिम देशों के लिए पिछले तीन दशकों से इस ‘गंदे धंधे’ में पड़ा रहा है और वहां हर तरह के आतंकवादियों को शरण दी जाती रही है। ख्वाज़ा आस़िफ ने यह भी कहा है कि यदि पाकिस्तान ने ऐसी नीति न धारण की होती तो उसका ट्रैक रिकार्ड कुछ बेहतर होता। यह हमारी सबसे बड़ी गलती थी, जिसका खामियाज़ा देश को भुगतना पड़ा है।
नि:संदेह पाकिस्तान द्वारा दशकों से धारण की गई दोहरी नीति और आतंकवादी संगठनों के पक्ष-पोषण ने इस देश को जहां खोखला कर दिया है, वहीं इसके पोषित किए गए ज्यादातर आतंकवादी संगठन अब इसके भी विपरीत हो गए हैं। इसीलिए आज यह देश जिस चौराहे पर आ खड़ा हुआ है, वहां अपना रास्ता तलाश करना, उसके लिए बेहद कठिन हो गया है। उसके सिर पर मुश्किलों का भार निश्चित रूप में बढ़ता जा रहा है, जिस कारण इसके भविष्य पर प्रश्न-चिन्ह लगा हुआ दिखाई देता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द