सिंधु जल संधि के निलम्बन से टूटेगी पाक की कमर

कश्मीर के पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले के परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाते हुए पांच बड़े कूटनीतिक प्रहार कर दिए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण सिंधु जल संधि को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना है। यह एक ऐसी कूटनीतिक चाल है, जिससे पाकिस्तान को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ेगा। साथ ही पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द करने का आदेश दिया। अटारी-वाघा सीमा द्वार बंद कर दिया गया है। भारत ने पाकिस्तान से अपने सैन्य राजनयिकों को वापस बुला लिया है। नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में रक्षा, सैन्य, नौसेना और वायुसेना सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति घोषित किया है। इन्हें एक सप्ताह में भारत छोड़ना होगा। ये सभी निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई केंद्रीय कैबिनेट की सुरक्षा समिति (सीसीएस) की बैठक में लिए गए हैं। आतंकवादियों की शरणस्थली बने पाकिस्तान को यह कूटनीतिक सबक समय की ज़रूरत है।
पाकिस्तान ने आतंकी साज़िश रचकर कश्मीर के अवाम की इसी आर्थिक श्वास की नली को अवरुद्ध कर दिया है। अब भारत ने पलटवार करते हुए सिंघु की जलधार को अवरुद्ध करके ईंट का जबाव पत्थर से देने का काम किया है। यदि यह जवाब बहुत पहले दे दिया गया होता तो शायद पाक से निर्यात आतंक के कारण ऐसे हालात पनप ही नहीं पाते? 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल संधि में भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों का पानी बांटने का समझौता हुआ था। इस समझौते पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। इसके अंतर्गत पाकिस्तान से पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों ब्यास, रावी व सतलुज के जल को भारत के सुपुर्द किया गया था और पश्चिम की नदियों सिंध, चिनाब व झेलम के पानी का अधिकार पाक को दिया गया था। 
नदियों की ऊपरी धारा (भारत में बहने वाला पानी) के जल बंटवारे में उदारता की ऐसी अनूठी मिसाल दुनिया के किसी भी अन्य जल समझौते में देखने में नहीं आई है। इसीलिए अमरीकी सीनेट की विदेशी मामलों से संबंधित समिति ने 2011 में दावा किया था कि यह संधि दुनिया की सफलतम संधियों में से एक है। लेकिन यह संधि केवल इसलिए सफल रही है, क्योंकि भारत संधियों की शर्तों को निभाने के प्रति अब तक उदार एवं प्रतिबद्ध बना हुआ है जबकि जम्मू-कश्मीर को हर साल इस संधि के पालन में करीब 60 हज़ार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है। भारत की भूमि पर इन नदियों का अकूत जल भंडार होने के बावजूद इस संधि के कारण इस राज्य को पर्याप्त बिजली नहीं मिल पा रही है। पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई इन्हीं नदियों के जल से होती है। पाक के बड़े भू-भाग की 21 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या की जल की ज़रूरतें इन्हीं नदियों पर निर्भर हैं। यह संधि लंबे समय तक स्थगित रहती है तो पाकिस्तान में सूखे जैसे हालात बन सकते हैं।
दरअसल सिंधु संधि के तहत उत्तर से दक्षिण को बांटने वाली एक रेखा सुनिश्चित की गई है। इसके तहत सिंधु क्षेत्र में आने वाली तीन नदियां सिंधु, चिनाब और झेलम पूरी तरह पाकिस्तान को उपहार में दे दी गई हैं। इसके विपरीत भारतीय संप्रभुता क्षेत्र में आने वाली ब्यास, रावी व सतलुज नदियों के बचे हुए हिस्से में ही जल सीमित रह गया है। इस लिहाज से यह संधि दुनिया की ऐसी इकलौती अंतरदेशीय जल संधि है जिसमें सीमित संप्रभुता का सिद्धांत लागू होता है और संधि की असमान शर्तों के चलते ऊपरी जलधारा वाला देश नीचे की ओर प्रवाहित होने वाली जलधारा वाले देश पाकिस्तान के लिए अपने हितों की अनदेखी करता है। इतनी बेजोड़ और पाक हितकारी संधि होने के बावजूद पाक ने भारत की उदारता का उत्तर पूरे जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में आतंकी हमलों के रूप में तो दिया ही, अब इनका विस्तार भारतीय सेना व पुलिस के सुरक्षित ठिकानों तक भी किया हुआ है। अब पर्यटकों की हिंदू धार्मिक पहचान करके जो नरसंहार पहलगाम की बैसरन घाटी में किया गया है, वह यह जताने के लिए काफी है कि हमला धर्म के आधार पर किया गया है। 
दरअसल द्विपक्षीय वार्ता के बाद शिमला समझौते में स्पष्ट उल्लेख है कि पाकिस्तान अपनी ज़मीन से भारत के खिलाफ आतंकवाद को फैलाने की अनुमति नहीं देगा, किंतु पाकिस्तान इस समझौते के लागू होने के बाद से ही इसका खुला उल्लंघन कर रहा है। लिहाजा पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने के नजरिए से भारत को सिंधु जल संधि को ठुकरा कर पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की मांग लंबे समय से उठ रही थी। पुलवामा हमले के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों का पानी रोकने की बात कही थी। भारत ने अब इस मांग को अंजाम तक पहुंचा दिया है। तय है इस कूटनीतिक पहल से पाक की कमर टूट जाएगी। नदियों के प्रवाह को बाधित करना इसलिए भी अनुचित नहीं है,क्योंकि यह संधि भारत के अपने राज्य जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के लिए न केवल औद्योगिक व कृषि उत्पादन हेतु पानी के दोहन में बाधा बन रही है, बल्कि पेयजल के लिए नए संसाधन निर्माण में भी बाधा है। इस संधि के चलते यहां की जनता को पानी के उपयोग के मौलिक अधिकार से वंचित होना पड़ रहा था। हैरानी की बात यह भी है कि यहां सत्तारूढ़ रहने वाली सरकारों और अलगाववादी जमातों ने इस बुनियादी मुद्दे को उछालकर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कभी नहीं की। इसलिए आतंक का माकूल जवाब देने के लिए भारत सरकार की इस कूटनीतिक पहल का स्वागत होना चाहिए।
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