विश्व में अनूठा है जोधपुर का घंटाघर

यूं तो हर बड़े शहर में घंटाघर दिखाई देता है जिससे राहगीरों को समय पता लग जाता है प्राचीन काल में घंटाघर की जो अहमियत होती थी वह आज नहीं रह गयी और घंटाघर शहरों के बीच मूक साक्षी बनकर रह गए है। राजस्थान के दूसर बड़े ऐतिहासिक शहर जोधपुर का घंटाघर आम शहरों के घंटाघर से न केवल अलग है बल्कि यह विश्व का अनूठा घंटाघर है जिसका निर्माण जोधपुर के तत्कालीन शासकों के समय कराया गया था।
जोधपुर के महाराजा मालदेव के पश्चात् नगर का व्यवस्थित विस्तार इस सदी के प्रारम्भ में महाराजा सरदार सिंह की देखरेख में हुआ था। शहर के बीचोबीच महाराजा ने चौकोर बाज़ार का निर्माण कराया जिसे सरदार मार्किट के नाम से पहचान मिली। यहीं पर सौ फीट ऊंचे घंटाघर का भी निर्माण गिरदीकोट में सन् 1910 से 99 वें वर्ष पूर्व करवाया गया। 
जोधपुर के घंटाघर की घड़ी को अन्य शहरों के घंटाघर से अलग बनाए रखने के लिए महाराजा ने लंदन की कंपनी ‘लुण्ड एण्ड ब्लोवली से सम्पर्क साध कर सौ फुट लम्बी मीनार पर एक ऐसी घड़ी बनाने के लिए कहा जो विश्व में दूसरी न हो इंग्लैंड की इस विख्यात घड़ी कम्पनी को ऐसी घड़ी बनाने के लिए महाराजा ने एक लाख रूपये दिये और साथ ही एक लाख रूपये केवल इसलिए और दिए कि इस जैसी घड़ी पूरी दुनिया में एक मात्र होने का गौरव अर्जित कर सके। घंटाघर की इस घड़ी की कई विशेषताएं है इसके चारों डायल भीतर से एक ही मशीन के विभिन्न यांत्रिक पुर्जो से जुड़े हुए हैं यही घड़ी फनर से नहीं चलती है। इसे चलाने हेतु तीन मोटे तारों से अलग-अलग ठोस लोहे के तीन वेट लटके हुए है ये तीनों वेट ज्यों-ज्यो घड़ी चलती है त्यों-त्यों नीचे की ओर सिरकते जाते है एक सप्ताह में ये वेट पूरी तरह नीचे आ जाते है तब प्रति शुक्रवार इसमें चाबी भरी जाती है। चाबी का वजन 10 किलोग्राम हैं चाबी भरने पर तीनो वेट ऊपर चल जाते है तीनाें वेट में से एक चौथाई घंटे यानि 15 मिनट का है जिसका वजन 2 क्विंटल है दूसरा वेट आधे घंटे का जिसका वजन 1 क्विंटल है तो तीसरे वेट का भार एक घंटे का है जिसका वजन संवा क्विंटल है। 
इस घड़ी में प्रत्येक 15 मिनट पर 2 टंकोर आधा घंटे पर 5 टंकोरे, पौन घंटे पर 6 टंकोरे एवं एक घंटा पूरा होने पर 8 टंकोरे तेज आवाज के साथ बजते है। इसके बाद समय बताने के लिए उतने ही घंटे के टंकोरे बजने लगते हैं। इन टंकोरो की विशेषता यह है कि इनमें से हर घंटे के टंकारों की आवाज़ अलग-अलग तरह की होती है।  घड़ी के यांत्रिक कक्ष में जाने के लिए लोहे की सीढ़ियां बनी हुई हैं जहां घड़ी लगी हुई है, वहां विशालकाय कांटा सात धातु से निर्मित दो घंटे मोटे दो गर्डरों में लटके हुए है। इन घंटों पर लगने वाले हथौड़े पांच-पांच किलो के है इन घंटों के ऊपर जोन वारनर एंड संस, लदंन 1911 अंकित है। जब कभी घड़ी खराब हो जाती थी तो पूर्व में लंदन से ही इंजिनियर आकर इसे ठीक करते थे। बाद में 1968 में जब यह घड़ी खराब हो गई तब कई इंजिनियराें ने बाहर से आकर इसे ठीक करना चाहा लेकिन वे इसे ठीक न कर सके, अंत में एक माह घड़ी बंद रहने के पश्चात् जोधपुर के ही एक मिस्त्री अल्लानूर ने ठीक कर दी थी तब उस जमाने में उन्हें 400 रूपया मेहनताना दिया गया था। काफी अर्से से ये ही मिस्त्री इस घड़ी को ठीक करते रहे है। 
विश्व की इस अनूठी बिगबेन के बनने के बाद महाराजा सरदार सिंह ने घड़ी व इसमें लगे पुर्जो की डाई को कंपनी से कहकर तुड़वा दिया था ताकि इस जैसी दूसरी घड़ी न बन सके। जोधपुर के घंटाघर की यह घड़ी अपनी दूर-दूर तक विभिन्न आवाज़ों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। (सुमन सागर)

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