श्रम के महत्व को दर्शाता मज़दूर दिवस

मजदूर दिवस मजदूरों के महत्व को दर्शाने का एक महत्वपूर्ण उत्सव है। भारत सहित दुनिया के बहुत से देशों में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों की भलाई के लिए काम करने व मजदूरों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना होता है। मगर ऐसा हो नहीं पाया है। भारत में 90 प्रतिशत मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं जिनको सभी सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं। देश में श्रमिक वर्ग की संख्या संगठित व असंगठित क्षेत्र में 50 करोड़ से ज्यादा है। भारत में एक मई का दिवस सबसे पहले चेन्नई में एक मई 1923 को मद्रास दिवस के तौर पर मनाना शुरू किया गया था। इसकी शुरुआत भारती मजदूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार ने शुरू की थी। भारत में मद्रास के हाईकोर्ट सामने एक बड़ा प्रदर्शन किया और एक संकल्प के पास करके यह सहमति बनाई गई कि इस दिवस को भारत में भी कामगार दिवस के तौर पर मनाया जाये और इस दिन छुट्टी का ऐलान किया जाये। वर्तमान में भारत समेत लगभग 80 देशों में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। 
मजदूर दिवस दुनिया के सभी कामगारों, श्रमिकों को समर्पित होता है। इस बार की अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2025 में वर्ल्ड डे फॉर सेफ्टी एंड हेल्थ एट वर्क की थीम है। स्वास्थ्य और सुरक्षा में क्रांति, कार्यस्थल पर एआई और डिजिटलाइजेशन की भूमिका। इसका मतलब है कि आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, वर्चुअल रियलिटी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी नई तकनीकों का इस्तेमाल कार्यस्थल को और ज्यादा सुरक्षित और सेहतमंद बनाने में किया जाएगा। स्मार्ट हेलमेट्स, सेफ्टी सेंसर, ऑटोमेटेड मॉनिटरिंग सिस्टम ये सब भविष्य की सुरक्षा के अहम हिस्से बनेंगे। यह थीम हमें इस बात के लिए तैयार करती है कि हम तकनीक का सही इस्तेमाल करते हुए कर्मचारियों की भलाई सुनिश्चित कर सकें। 
किसी भी राष्ट्र की प्रगति करने का प्रमुख भार मजदूर वर्ग के कंधों पर ही होता है। मजदूर वर्ग की कड़ी मेहनत के बल पर ही राष्ट्र तरक्की करता है लेकिन भारत का श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है। मज़दूर दिवस को लेकर श्रमिक तबके में अब कोई खास उत्साह नहीं रह गया है। बढ़ती महंगाई और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने भी मजदूरों के उत्साह का कम कर दिया है। अब मजदूर दिवस इनके लिए सिर्फ कागजी रस्म बनकर रह गया है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है। उद्योगपति खुद को मालिक समझने की बजाय अपने-आप को ट्रस्टी समझे। मगर ऐसा होता नहीं है। मालिक आज भी मालिक बने हुये हैं। मजदूर सिर्फ मजबूर होकर रह गया है। इसी कारण भारत में मजदूरों की स्थिति बेहतर नहीं है। मजदूर एक ऐसा शब्द है जिसके बोलने में ही मजबूरी झलकती है। सबसे अधिक मेहनत करने वाला मजदूर आज भी सबसे अधिक बदहाल स्थिति में है। दुनिया में एक भी ऐसा देश नहीं है जहां मजदूरों की स्थिति में सुधार हो पाया है। दुनिया के सभी देशों की सरकार मजदूरों के हित के लिए बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करती हैं मगर जब उनकी भलाई के लिए कुछ करने का समय आता है तो सभी पीछे हट जाती है। इसीलिए मजदूरों की स्थिति में सुधार नहीं हो पाता है। 
बड़े शहरों में झोंपड़ पट्टी बस्तियों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। जहां रहने वाले लोगों को कैसी विषम परिस्थितियों का सामना करता है। इसको देखने की न तो सरकार को फुर्सत है ना हीं किसी राजनीतिक दलों के नेताओं को। झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले मजदूरों को शौचालय जाने के लिए भी घंटों लाइनों में खड़ा रहना पड़ता है। झोपड़ पट्टी बस्तियों में ना रोशनी की सुविधा रहती है। ना पीने को साफ पानी मिलता है और ना ही स्वच्छ वातावरण। उनसे 12-12 घंटे लगातार काम करवाया जाता है। घंटो धूप में खडे रहकर बड़ी-बड़ी कोठियां बनाने वाले मजदूरों को एक छप्पर तक नसीब नही हो पाता है। देश के कारखानो में काम करने वाले मजदूरों पर हर वक्त इस बात की तलवार लटकती रहती है कि ना जाने कब मालिक उनकी छटनी कर काम से हटा दे। कारखानों में कार्यरत मजदूरों से निर्धारित समय से अधिक काम लिया जाता है। विरोध करने पर काम से हटाने की धमकी दी जाती है। मजबूरी में मजदूर कारखाने के मालिक की शर्तों पर काम करने को मजबूर होता है। कारखानो में श्रम विभाग के मापदंडो के अनुसार किसी भी तरह की कोई सुविधायें नहीं दी जाती है।
मजदूर दिवस सिर्फ एक अवकाश का दिन न होकर श्रमिकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने का दिन है। हमारे देश का मजदूर दिन प्रतिदिन और अधिक गरीब होता जा रहा है। दिन रात रोजी-रोटी के जुगाड़ में जद्दोजहद करने वाले मजदूर को तो दो जून की रोटी मिल जाए तो मानों सब कुछ मिल गया। आज़ादी के इतने सालों में भले ही देश में बहुत कुछ बदल गया होगा लेकिन मजदूरों के हालात तो आज भी नहीं बदले हैं तो फिर श्रमिक वर्ग किस लिये मजदूर दिवस मनायेगा।
 

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