पहलगाम हमले को लेकर आम सहमति ज़रूरी
पहलगाम की बर्बर आतंकी घटना ने भारत की आत्मा पर सीधा हमला किया है। इसमें पाकिस्तान की स्पष्ट भूमिका को देखते हुए देश की एक सौ चालीस करोड़ जनता चाहती है कि अब पाकिस्तान को सबक सिखाना ज़रूरी हो गया है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया है और पाकिस्तान के खिलाफ कठोर एक्शन लेते हुए सिंधु जल संधि को रोकने जैसे पांच कदम उठाये हैं। दोनों ही देशों के बीच युद्ध की स्थिति बनी है। यह पहली बार देखने को मिला है कि इस घटना को लेकर कश्मीर सहित समूचा देश एक दिखाई दे रहा है। ऐसे क्रूर, आतंकी एवं अमानवीय हमले के वक्त में पूरा देश दुख और गुस्से की मन:स्थिति से गुजर रहा है, जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का एक सशक्त संदेश दिया है। सभी राजनीतिक दल, जाति, वर्ग, धर्म के लोग पाकिस्तान को करारा जबाव देने के लिये मोदी सरकार के हर निर्णय में सहयोगी होने का संकल्प व्यक्त किया है। बावजूद इसके कुछ नेताओं के ओछे, बेतुके बयान भी सामने आए हैं, जिनको सुनकर इन नेताओं के मानसिक दिवालियापन, ओछेपन एवं घटिया राजनीतिक सोच पर क्रोध भी आता है एवं तरस भी आता है। निश्चित ही ये बयान जहां अंधविरोध की घोर नकारात्मक एवं संकीर्ण राजनीति को दर्शाते हैं, वहीं कुछ वोट बैंक की सस्ती राजनीति को उजागर करते हैं। भाजपा नेताओं को भी यह ध्यान रखना होगा कि उनकी ओर से ऐसा कुछ न कहा-किया जाए, जिससे यह लगे कि वे पहलगाम की घटना का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। जब राष्ट्र संकट एवं जटिल दौर में हो, किसी का राजनीतिक हित देशहित से बड़ा नहीं हो सकता।
अनर्गल, बेतुके एवं राष्ट्र-विरोधी बयानों ने एक बार फिर कुछ नेताओं एवं दलों की घटिया सोच को बेनकाब किया है। तभी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पहलगाम की बर्बर आतंकी घटना पर अपने नेताओं को यह निर्देश दिया है कि वे इस हमले पर पार्टी लाइन के हिसाब से ही बोलें। ऐसे निर्देश देना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि उसके कई बड़े नेता और यहां तक कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी बेलगाम होकर यह कह गए कि हम युद्ध के पक्ष में नहीं। वहीं के एक मंत्री एवं नेता ने तो कहा कि आतंकियों के पास इतना समय कहां होता है कि वे किसी को मारने से पहले उसका धर्म पूछें। इसी तरह का बयान महाराष्ट्र के एक विधायक ने भी दिया।
भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने अपने विवादित बयान में कहा कि इस घटना से किसे फायदा हो रहा है और कौन हिंदू-मुस्लिम कर रहा है, इसका जवाब हमला करने वाले के पास ही है। टिकैत ने जोर देकर कहा कि असली चोर पाकिस्तान में नहीं बल्कि भारत में ही मौजूद है। पाकिस्तान के लिये पानी रोकने के निर्णय पर उनका यह कहना है कि पानी पर सभी जीव-जंतुओं का अधिकार है, यह सबको मिलना चाहिए। ऐसा कहकर उन्होंने भारत-विरोधी विचार ही दिया है। रॉबर्ट वाड्रा के पहलगाम हमले पर विचार भले ही चौतरफा आलोचना के बाद बदल गए हो लेकिन उन्होंने भी इस आतंकवादी हमले के लिए मोदी सरकार और हिंदुत्व को जिम्मेदार ठहराया था।
राष्ट्रीय हितों पर चोट करने और देश की एकजुटता को प्रभावित करने वाले ये बयान यही नहीं बताते कि राजनीतिक कटुता के चलते नेतागण संवेदनशील मामलों में भी बोलते समय अपने विवेक का परित्याग कर देते हैं, बल्कि यह भी इंगित करते हैं कि उन्हें राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर भी पार्टी लाइन की कोई परवाह नहीं रहती। उनके लिये पार्टी देश से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि जिन भी दलों के नेता पहलगाम की घटना पर अनर्गल बयान दे रहे हैं और जिसके चलते सर्वदलीय बैठक में बनी सहमति आहत हई, उन पर लगाम लगे। पहलगाम आतंकी हमला पहला मौका है, जब विपक्ष ‘किसी भी जवाबी कार्रवाई’ के लिए मोदी सरकार के साथ खड़ा दिख रहा है। उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक के सुबूत मांगने वाले विपक्ष के रुख में यह बड़ा बदलाव है। सबसे बड़े लोकतंत्र की राजनीति के लिए यह निश्चय ही सकारात्मक संकेत भी है।
संसदीय लोकतंत्र में सरकार बहुमत से बनती है, लेकिन सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों की भूमिकाएं महत्वपूर्ण रहती हैं। बेशक पहलगाम में सुरक्षा चूक पर जवाब मांगने का राजनीतिक अधिकार विपक्ष को है, क्योंकि चूक तो हुई ही है, लेकिन सहमति के लिए संवाद और समन्वय की प्रक्रिया जारी रहनी ज़रूरी है। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति देश के लिए होनी चाहिए, देश की कीमत पर नहीं। अलग-अलग दलों से होने तथा कई मुद्दों पर नीतिगत मतभेदों के बावजूद प्रधानमंत्री नरसिंह राव, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने परस्पर सम्मान भाव वाले रिश्तों से संवाद, सौहार्द, समझ तथा समन्वय की जो मिसाल पेश की, वह दलगत राजनीति में वर्तमान सन्दर्भों में मार्गदर्शक बन सकती है। एक-दूसरे को देशविरोधी मानने की मानसिकता से मुक्त होना होगा और परस्पर कटुता के बजाय सम्मान का भाव जगाना होगा। अपेक्षा की जाती है कि अपनी-अपनी राजनीतिक विचारधारा पर अडिग रहते हुए भी वे राष्ट्रहित के मुद्दों पर सहमति के साथ आगे बढ़ें, कायम रहे राजनीतिक सहमति ताकि देश चुनौतियों एवं संकटों का सामना प्रभावी एवं सफलतापूर्वक कर सके।
विडम्बना यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे लाचार हुए पाकिस्तान के सत्ताधीशों ने स्वीकार किया कि वे पिछले तीस साल से आतंक की फसल सींच रहे थे। भारत ने पूरी दुनिया को मुंबई के भीषण हमले, संसद पर हुए हमले तथा पुलवामा से लेकर उड़ी तक की आतंकवादी घटनाओं में पाक की संलिप्तता के मजबूत सबूत बार-बार दिए। अब दुनिया भी स्वीकारने लगी है कि पाकिस्तान आतंक की प्रयोगशाला है। उसकी इस नर्सरी एवं आतंक की खेती का उद्देश्य भारत की तबाही ही है। भारत को कभी तो जबाव देना ही था। अब भारत ने कमर कसी है तो पाकिस्तान परमाणु बम से हमले की धमकी, सिंधु नदी को रक्त से भरने तथा कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण जैसी गीदड़ धमकियों पर उतर आया है। अब तो भारत के राजनीतिक दलों, नेताओं एवं संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों को पाकिस्तान के प्रति अपनी सोच को बदलना चाहिए। देश में आगे भी ऐसा सद्भाव बना रहे, यह देखना सभी समुदायों की जिम्मेदारी है। लेकिन इससे बड़ी जिम्मेदारी राजनीतिक दलों एवं नेताओं की है कि वे बेतुके बयानों से स्वार्थ की राजनीति का त्याग करें।