बिहार चुनाव : निगाह अति पिछड़ी जातियों पर
इस समय देश भर की निगाहें बिहार चुनाव पर लगी हैं। चुनाव इस वर्ष के अंत में होने वाले हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। दूसरों पर लांछन लगाना और अपने गाल बजाने का काम पूरे उफान पर है। यात्राएं शुरू हो गई हैं। वह प्रदेश के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की हो या फिर कांग्रेस के लिए राहुल गांधी की हो। बड़ी कोशिश अति पिछड़ी जातियों को साधने की है। उनका जीवन स्तर कितना सुधरना है या क्या-क्या बदलाव आ सकते हैं इस बात से बेखबर वोट बैंक की तरह इस्तेमाल का दाव पूरी ताकत से खेला जा रहा है। कांग्रेस, भाजपा, यहां कि प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज (ई.बी.सी.) इसी मजबूत वर्ग पर निगाह लगाए बैठे हैं। चुनाव परिणामों को अपने पक्ष में लाने के लिए इसी वर्ग ने आज तक नितीश कुमार को अपनत्व देने में सबसे आगे रखा है। उनकी सरकार 2023 में करवाई गई जनगणना के अनुसार ई.बी.सी. बिहार की आबादी का छत्तीस प्रतिशत ठहरती है। तब से ही नितीश का वोट बैंक है जब से उन्होंने 113 अति पिछड़ी जातियों की एक विशेष श्रेणी बनाने के लिए मंडल ओ.बी.सी. ब्लाक को छिन्न-भिन्न किया था। इसके बाद नितीश ने टारगेटड कल्याणकारी योजनाओं और सामाजिक लाभ को इस वर्ग के लिए सुलभ बना दिया और अपनी तरफ खींच लिया। इस सबमें गिरावट की कोई छूट नहीं। असल में बिहार की राजनीति 2006 से ही नितीश कुमार द्वारा तैयार किए गए आधार पर खड़ी है, लेकिन अब इसमें सेंध लगाने की कोशिशें ज़ोर पर हैं। अक्तूबर-नवम्बर में होने वाले चुनाव जिसका परिचय साफ तौर पर देखने को मिल सकता है। यह बात भी देखने में आ रही है कि उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य गिर रहा है। पहले जैसी ऊर्जा नज़र नहीं आती, जिसका उल्लेख बार-बार लालू परिवार के लोग भी करने लगे हैं, परन्तु जब गिरावट की बात करते हैं तो भारतीय जनता पार्टी ने सी.एम. चेहरे के रूप में उनकी बात करना लगभग बंद कर दिया है। इतना ही नहीं, एन.डी.ए. खुले तौर पर उनके जनाधार पर कब्ज़ा करने की कोशिश में है। बिहार में हाल ही में जो कैबिनेट फेरबदल हुए हैं उस दर्पण में झांका जा सकता है। सात नये मंत्री शामिल किए गए हैं। नितीश कुमार ने भाजपा को अपनी स्थिति को जुनियर पार्टनर में बदलकर प्रमुख साझेदार बनाने की कोशिश प्रतिरोध नहीं किया है। विशेष ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि नए कैबिनेट सदस्यों में से चार नितीश कुमार के वोट बैंक का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से दो ई.बी.सी. समूहों से हैं और दो नितीश कुमार के अपने कुर्मी कोइरी समुदाय से हैं। भाजपा के अलावा कांग्रेस भी इसमें घुसपैठ की कोशिश में है और ई.बी.सी., गैर पासवान दलितों और मुसलमानों का सामाजिक गठबंधन बनाने की कोशिश में हैं। राहुल गांधी इन समुदायों के साथ रैलियां और बैठकों के लिए बिहार में पहले ही तीन बार यात्रा कर चुके हैं। कांग्रेस ने कुछ दिन पहले ही नये प्रदेशाध्यक्ष राजेश राय को नियुक्त किया है जोकि रविदास समाज से आते हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में नितीश कुमार और लालू यादव ने भाजपा के खिलाफ एक ताकतवर गठजोड़ बना कर मंडल ताकतों को फिर से खड़ा कर दिया था।
अब क्या ई.बी.सी. वर्ग अपना कोई फैसला कर सकता है कि उन्हें किसे अपना समझ कर मतदान करना है। कौन उन्हें सिर्फ सपने दिखा रहा है और वक्त आने पर कुछ नहीं करने वाला। किस पार्टी का या किस नेता को वे विश्वसनीय मान रहे हैं। इस पर अभी से निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता। मंच सज चुका है विभिन्न साज बजने लगे हैं। सुनने वाले ही तय करेंगे कि कौन मन का मीत बनेगा।