जीवन जीने से बहिष्कृत लोग
यहां काम से प्रचार का महत्त्व अधिक हो गया है। उपलब्धि से अधिक सफलता की घोषणा का। राजनीति में रहना है तो पहले तीसमार खां का जयघोष करना सीखो, और फिर जल्द से जल्द अपना जयघोष करवा के तीस मार खां को पछड़ाना सीखो। तीस मार खां बने रहना किसी का जन्म-सिद्ध अधिकार नहीं, जबकि परिवारवादी तो यही चाहते हैं कि अगर आज, किसी तरह साम दाम दण्ड भेद से वे तीस मार खां बन गए हैं, तो उनके नाती-पोते भी यही उपाधि धारण किए रहें।
परन्तु इसके लिए कथनी और करनी में अन्तर होना आवश्यक है। गाली परिवारवाद को दो, लेकिन अपने बेटे और पोते का भविष्य संवारने के बाद। कोई आलोचक इस विसंगति के बारे में पूछ बैठे तो उसका मुंह बंद करने के लिए अपनी वंशावली में असाधारण क्षमता का बखान व विश्वास काफी है। अपने आपको बचाने के लिए अपवाद हो सकने का सिद्धांत तैयार-बर-तैयार खड़ा है।
यह तो हो गई परिवारवाद के प्रतिबंध से बच निकलने की बात। जहां तक जनता की सेवा से नेतागिरी करने का संबंध है, जनाब, आजकल वे सेवा नहीं, शासन करते हैं। यहां जन-कल्याणकारी जन-अनुकम्पा बांटी जाती है। न्यायपालिका देश को रियायतों भरी रेवड़ियां न बांटने की बात कहती है। रेवड़ियों पर अब जन-कल्याण का मुलम्मा लगा दिया गया। इसलिए आम के आम और गुठलियों के दाम हो जाते हैं। गुठलियां अवश्य बांटो, लेकिन अपना पराया देख कर। जो अपने हैं, उनका अंधा-काना भी कबूल और दृष्टिवान अगर कोई है, और अपना नहीं, तो उसकी पहचान नहीं करनी है।
वैसे इस देश में नेतागण चाहे देश के लोगों के हमदर्द, हमराज और मेहरबान कहलाते हैं, लेकिन केवल चुनाव के दिनों में। तब उन्हें वोटरों की घिसी हुई चौखट की पहचान भी भलीभांति हो जाती है। अपनी जाति अपने धर्म के लोग ही उपकार योग्य हैं। पचहत्तर वर्ष से धर्म-निरपेक्ष घोषित जेश की यही प्राथमिकता बन गई है। उन्हीं की दहलीज़ पहचानो और उनके गलत कामों को सही करवा देने का वायदा करो, वोट तुम्हें गठरों में पड़ जाएंगे। जीत गए तो चुनाव करवाने वाली मशीनों का जय-जयकार, हार गए तो इन मशीनों में दोष ही दोष। ‘चुनाव मशीन से नहीं, बैलेट से करवाओ’ का नारा उठाओ।
यह जीतना भी एक भ्रम से पैदा होता है। लोगों में अपने आप को उनका अनन्य सेवक होने का भ्रम पैदा करो, या उनके गलत काम सही करवाने वाला। जितना अधिक गलत लोगों का समर्थन बटोर सको, उतना ही अपनी विजय निश्चित जानो। जनता के लिए अपना सब कुछ लुटा सकने की भावना रखने वाले तो अपनी ज़मानत जब्त करवाते नज़र आते हैं। अपनी लीपापोती में माहिर, हर दिन नई क्रांति या नया अभियान शुरू कर सकने वाला राजनीति में लम्बी पारी और जनता के पहाड़ पर अपनी पक्की कुर्सी जमाता नज़र आता है।
बन्धु, यह तो पूरे का पूरा कुर्सी का खेल है। इसके लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अभियान शुरू करने की घोषणा तुम्हारा नित्य कर्म होना चाहिए। इससे निबटना तुम्हारी दक्षता। ऐ बयान धर्मी नेताओ यह न देखना कि तुम्हारे पिछले घोषित क्रांति अभियान का क्या हश्र हुआ? लगता है इसके तो मील पत्थर भी उठा कर लोग ले गए। हां तुम्हारी नई क्रांति की घोषणा से दिग-दिगन्त अवश्य गूंजते रहे हैं। जैसे नया कोट पहनने पर लोग पुराने कोट को भूल जाते हैं, उसी तरह क्रांति का नया नामकरण होते ही लोग पुरानी उद्घोषणा भूल जाते हैं, क्योंकि पौन सदी से इस नित्य के क्रांति घोषक युग में लोग तो वहां के वहां ही खड़े हैं। क्रांति घोषणाएं होती हैं, और उनके कान के पास से सर्रा कर निकल जाती है। यहां बासी कढ़ी में कभी उबाल नहीं आता। हां, उसी का रंग बदल-बदल कर उसके पुलाव हो जाने की घोषणा होती रहती है।
देश के लिए ऐसा पुलाव पके कि जिसमें अमीर और अमीर हो गए, और गरीब आदमी फटीचर, तो ऐसी सफलता से प्रतियोगिता करने वाले देश में उत्सव न मने तो भला कोई बात है? देखते ही देखते देश उत्सवधर्मी हो गया, जहां हर अधूरेपन को मिथ्या आंकड़ों से झुठला कर एक नया उत्सव मनाया जाता है?
उत्सव मना लो कि हम दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश हो गए, लेकिन यह न बताना कि सबसे अधिक बेकारों वाला देश भी हम हैं। हमारी विकास दर दुनिया में सबसे अधिक है, लेकिन यह न बताना कि हमने इसे औसत का सिद्धांत लगा कर निकाला है वरना आज भी देश की तीन चौथाई आबादी भूख से बिलबिला रही है।
भूख से बिलबिलाती है तभी तो हम अस्सी करोड़ लोगों में रियायती गेहूं बांटने का रिकार्ड बना चुके हैं, और शायद अनन्त काल तक इस रिकार्ड पर जमने का हमारा इरादा है। ऐसा परोपकारी प्रशासन कोई और है जो देश में किसी भी व्यक्ति को भूख से न मरने देने की गारंटी देता है, लेकिन रोज़गार देने की गारंटी नहीं देता? यहां तो मारूं घुटना फूटे, आंख वाली स्थिति है। इसीलिए तो बरसों से अमीरों के इस देश में बसने वाले गरीबों की संख्या बढ़ती जाती है, और उन्हें बेहतर जीवन नहीं बल्कि तप और उपवास का जीवन जीने का संदेश देती है। भरी हुई सम्पदा से लथपथ किरोड़ी मल अपनी बहुमंज़िला इमारत से इस सफलता को देख कर गद्गद्। इन्हें यह भी कभी नज़र नहीं आता कि फुटपाथों का अतिक्रमण भी फड़ी बाज़ार ने कर लिया और वे हताश खड़े हैं।