ओसामा-ब़गदादी जैसा हो सकता है आतंक के आ़काओं का हश्र

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुस्से और सक्रियता को देखते हुए देश का हर नागरिक इस बात को लेकर उत्सुक है कि आखिर पाक के विरुद्ध भारत की कठोरतम कार्यवाही क्या होगी? प्रधानमंत्री का यह वाक्य कि ‘हमले के दोषियों के खिलाफ हर भारतीय का खून खौल रहा है, से लगता है कि इस बार सर्जिकल स्ट्राइक से अलग कुछ ऐसा होने जा रहा है, जिससे पाकिस्तान किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाएगा’ पर सबके मन में सवाल यही है कि आखिर यह कार्यवाही क्या होगी? क्या यह इशारा आतंक के आकाओं के लिए ओसामा और ब़गदादी के जैसी मौत का है? पाकिस्तान द्वारा चीन और रूस को जांच में शामिल करने की बात भी इशारा कर रही है कि पाकिस्तान में कठोरतम कार्यवाही को लेकर डर अंदर तक घुस गया है। निर्दयता से भरे आतंकवादियों को जब पूरी दुनिया धिक्कार रही है, ठीक तभी पेंटागन के पूर्व अधिकारी तथा अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फैलो माइकल रूबिन ने यहां तक कहा है कि पाकिस्तान को आधिकारिक तौर पर आतंकवाद प्रयोजक देश घोषित किया जाए तथा पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर का ओसामा बिन लादेन जैसा अंत होना चाहिए। कहना नहीं होगा कि एक अमरीकी अधिकारी की यह टिप्पणी भारत को एक ऐसी दिशा दिखाती है जो पाकिस्तान और उसके समर्थकों के लिए खतरे की घंटी है। 
इज़रायली राजदूत रुवेन अजार ने भी ऐसा ही कुछ कहा है। उन्होंने आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए मजबूत अंतर्राष्ट्रीय समन्वय की ज़रूरत तथा आतंक के उकसावे से निपटने के प्रयासों की भी ज़रूरत जताई है। कहना होगा कि इस टिप्पणी में भी पर्याप्त इशारा छिपा है कि इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ सभी राष्ट्र एक हो जाएं। इन सबसे ऊपर अमरीकी नेशनल इंटेलीजेंस चीफ तुलसी गबार्ड का वह बयान जिसमें उन्होंने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले के गुनहगारों की खोज में हम भारत की मदद करेंगे, सीधा सा इशारा है कि अमरीका टैरिफ वार की तरह आतंक के खिलाफ लड़ाई में भी अब भारत को मदद देने के लिए तत्पर है। पहलगाम में पर्यटकों को धर्म पूछकर और बेटी, पत्नी, परिवार के सामने निर्दयी तरीके से मारना इस्लामिक आतंकवाद की पराकाष्ठा है। आतंकवादियों ने जिस तरह से पर्यटकों के धर्म की पहचान की, वह अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी गुस्ताखी बन गई है। निर्दयी मुगल शासक औरंगजेब के शासन में भी कत्लेआम या दूसरी धार्मिक गतिविधियों में धर्म पहचान करने की इस तरह की कोई घटना इतिहास में नज़र नहीं आती। अब जब पहचान के लिए एक नया सूत्र इस्लामिक आतंकवाद के हाथ लग गया है, तब यह मामला पूरी दुनिया के लिए धर्म पहचान का एक ऐसा टूल बन जाएगा जिससे गैर इस्लाम को मानने वाले लोगों के साथ अत्यचार करना आसान हो जाएगा।
शायद यही कारण है कि अब पाकिस्तानी आतंकवादियों को खत्म करने के लिए ओसामा बिन लादेन की मौत वाली रणनीति पर जोर दिया जा रहा है। माइकल रूबिन का यह बयान इसलिए भी कुछ अधिक मायने रखता है, क्योंकि उन्होंने अमरीका के रक्षा सचिव के कार्यालय के लिए ईरान-इराक पर स्टाफ सलाहाकार के रूप में कार्य किया है और वह तालिबान के साथ भी समय बिता चुके हैं। वह अमरीकी नौसेना तथा मरीन इकाइयों को शिक्षित करने के मास्टर के रूप में भी जाने जाते हैं। अमरीका के एक समय के खास रणनीतिकार अब आतंक पर खुलकर अपने विचार प्रकट कर रहे हैं और इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अब आतंक को समाप्त करने तथा आतंकियों को यह बताने के लिए कि जैसे के साथ तैसा होगा, अब ओसामा की मौत वाला रास्ता ही बचा है। धर्म पहचान कर मारने की रणनीति पहली बार सामने आयी है और इसके पीछे जिन मानसिक विकृत लोगों का हाथ रहा है, वे निश्चित तौर पर दूसरे धर्म के लोगों को भी अपना शिकार बनाने के लिए यही रणनीति अपनाएंगे। यह बात पूरे विश्व के लिए एक नई चिंता का कारण है। भारत ही नहीं, ईसाई समुदाय भी इस्लामिक आतंकवाद से हद तक परेशान है। 
भारत में पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक-सामाजिक प्रतिबंध लग चुके हैं। वहां की जीवन रेखा अर्थात सिंधु जल करार को समाप्त कर दिया गया है लेकिन भारतीय जनता के साथ ही दूसरे देश जो इस्लामिक कट्टरपंथ से परेशान हैं, वे भी भारत की ओर इस नज़र से देख रहे हैं कि वह किस तरह से बदला लेता है। हर कहीं यह आशा की जा रही है कि भारत तीसरी सर्जिकल स्ट्राइक कर सकता है? भारत समुद्र के रास्ते किसी प्लान पर काम कर रहा है। पीओके में हमला करके उसे भारत में मिलाएगा या फिर वह पाकिस्तान के बांग्लादेश बंटवारे जैसे किसी काम को अंजाम देगा। वैसे पाकिस्तान के लिए फिलहाल बलूचिस्तान ऐसा सिरदर्द है, जैसा अफगानिस्तान के सामने तालिबान था। अब जब पेंटागन पूर्व अधिकारी ने ओसामा वाला रास्ता दिखाया है तो कयास लगाए जा रहे हैं कि अमरीका इस मामले में कोई बड़ा कदम उठा सकता है। वैसे भी जब यह हमला हुआ था, तब अमरीका के उपराष्ट्रपति भारत में थे और उन्होंने न सिर्फ जयपुर में सुरक्षा कारणों से एक कार्यक्रम रद्द किया था, बल्कि जाते-जाते भारत के पक्ष में कई बातें ऐसी कह गए हैं जो पाकिस्तान की नींद बर्बाद कर देने के लिए काफी हैं। 
यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप प्रशासन ने पहले भी पाकिस्तान पर आतंकवाद के समर्थन के खिलाफ आर्थिक सहायता में कमी की है। अभी कुछ समय पहले ही अमरीका भारत को सैन्य समर्थन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर राज़ी हुआ था। ऐसे भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय, 1990 में आर्थिक सुधार के लिए, 2008 में मुंबई में आतंकी हमले के समय में भी सैन्य तथा दूसरी सहायता दे चुका है। अमरीकी नेशनल इंटेलिजेंस चीफ तुलसी गबार्ड ने तो खुलकर कह दिया है कि अमरीका भारत के साथ किसी भी तरह की मदद शेयर करने जा रहा है। जहां तक ओसामा बिन लादेन की बात है तो उसे अमरीका ने बराक ओबामा के कार्यकाल में मार गिराया था। अबू बकर अल बगदादी को भी सेना के स्पेशल आप्रेशन के माध्यम से मार दिया गया था। ये दोनों ही इस्लामिक कट्टरपंथी माने जाते थे। बगदादी तो आईएसआईएस का झंडाबरदार ही कहा जाता था। इन दोनों के अतिरिक्त अनवर अल अवलाकी जो अलकायदा का नेता था, अमरीकी ड्रोन हमले में, कासिम रिमी भी एक ड्रोन हमले में, अबू अल हसन अल हाशिमी अल कुरैशी जो आईएसआईएस का नेता था, वह सीरिया में एक ऑपरेशन में तथा अबू उमर अल शिशानी आईएसआईएस का सैन्य कमांडर अमरीकी हमले में मारा गया था। फिलहाल कहा कुछ भी जाए, दुनिया के संदेश और मिट्टी में मिलाने वाले बयानों का मंतव्य यह भी  हो सकता है कि आतंकियों का अंत भी ओसामा-बगदादी के अंत की श्रृंखला में आ जाए। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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