चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लिए भी संकोच नहीं कर रहे उच्च् शिक्षित युवा

अब इसका शिक्षा व्यवस्था को ही दोष दिया जाए या बढ़ती बेरोज़गारी या फिर सरकारी नौकरी का मोह माना जाये कि राजस्थान के सरकारी दफ्तरों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पदों में भर्ती के लिए मांगे गये आवेदन में 20 अप्रैल तक 23 लाख 65 हज़ार से अधिक आवेदन प्राप्त हो चुके थे। मज़े की बात यह है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 53,749 पदों के लिए आवेदन के लिए निर्धारित योग्यता दसवीं पास है, लेकिन इस दसवीं पास के पद के लिए आवेदन करने वालों में पीएच. डी, ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट ही नहीं तकनीकी शिक्षा प्राप्त बी.टेक और बीएड जैसी डिग्री रखने वाले भी शामिल हैं। 
इसका मतलब यह हुआ कि आईएएस, आईपीएस, आरएएस, प्रोफेसर, शिक्षक या प्रदेशों की सिविल सर्विस व अन्य इसी तरह के उच्च पदों की योग्यता को पूरी करने वाले युवक रोज़मर्रा की भाषा में कहें तो चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करने में किसी तरह का संकोच नहीं कर रहे हैं। यह हालात हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था को सवालों के घेरों में खड़ा कर देती हैं। आखिर हमारी व्यवस्था जा कहां रही है। इससे यह भी साफ  हो जाता है कि यदि उच्च शिक्षा प्राप्त भी चयनित नहीं होते हैं तो सवाल यह उठेगा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले भी चपरासी की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सके। वहीं किसी कारण से शिक्षा पूरी नहीं कर सकने वाले युवक दसवीं की परीक्षा ही पास कर सके हैं और चपरासी के पद के लिए योग्य हैं तो उच्च शिक्षितों, अनुभवियों के सामने उनके लिए तो चयन की संभावना लगभग शून्य की समझी जानी चाहिए। यदि समान योग्यता वाले आवेदन इतनी बड़ी संख्या में होते तो एक अनार सौ बीमार वाली बात तो हो जाती, परन्तु फिर यही कहा जाता कि रोज़गार के अवसर कम हैं, परन्तु उच्च अध्ययन प्राप्त युवाओं का चपरासी के पद के लिए आवेदन करना हमारी केवल शिक्षा व्यवस्था ही नहीं, अपितु पूरी व्यवस्था पर ही सवाल खड़े कर रहा है। आखिर ऐसा क्या कारण है कि युवाआें को योग्यता के आधार पर नौकरी नहीं मिल पा रही?
इससे यह तो साफ हो जाता है कि कहीं न कहीं पूरी व्यवस्था में ही कमी है। एक और तो सातवें वेतन आयोग के बाद से युवाओं में सरकारी नौकरी का मोह बढ़ा है। फिर रही सही कसर हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने पूरी कर दी है। चुनावों में केवल सरकारी नौकरी का ही वादा किया जाता है। आज़ादी के बाद निजी क्षेत्र ने काफी विस्तार किया है। एक समय ऐसा भी रहा है कि जब युवाओं का रूझान निजी क्षेत्र की ओर था। निजी क्षेत्र में वेतन-भत्तों के साथ ही सुविधाओं का भी विस्तार था। आज भी निजी क्षेत्र की अनेक संस्थाओं में अच्छा पैकेज और सुविधाएं मिलती हैं। युवाओं को विदेश जाने तक के अवसर मिलते हैं। मेडीक्लेम व अन्य सुविधाएं भी आम है। हां, कारगुज़ारी और टारगेट की बात अवश्य होती है। सरकारी नौकरी के पीछे भागने का कारण एक तो सर्विस को लेकर किसी तरह का तनाव नहीं होना है। यूं कहा जा सकता है कि सरकारी नौकरी सुरक्षित होती है और बोझ कम होता है। 
सवाल यह उठता है कि बी.टेक करने वाले को इंजीनियरिंग का काम नहीं मिलता है तो फिर उसकी पढ़ाई का मतलब ही क्या रह जाता है? सवाल यह है कि जिस तरह से निजी क्षेत्र में नए-नए इंजीनियरिंग कालेज, एमबीए कालेज खोले गये और उनमें शिक्षकों की स्थिति, शैक्षणिक स्तर और गुणवत्ता पर ध्यान ही नहीं दिया गया, तो केवल डिग्री से क्या होने वाला है। समस्या इतनी साधारण नहीं है जितना इसे समझा जा रहा है। यह बढ़ती बेरोज़गारी की समस्या नहीं है, अपितु कहीं न कहीं हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का ही दोष है। यह समूची व्यवस्था के सामने चुनौती है और इसका समाधान खोजना बहुत ज़रूरी है। 
 

-मो. 94142-40049

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