भारत के पक्ष में होगा अमरीका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता
अमरीका द्वारा लगाये गये भारी आयात शुल्क से प्रभावित निर्यात-आधारित चीन बेचैन हो गया है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा चीन पर लगाये गये निषेधात्मक आयात शुल्क के बाद उसका नंबर 1 निर्यात गंतव्य, संयुक्त राज्य अमरीका, अचानक उसकी पहुंच से बाहर हो गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि चीन ने अपने खर्च पर अमरीका के साथ व्यापक आर्थिक समझौता करने की कोशिश करने वाले देशों के खिलाफ चेतावनी जारी की है जिससे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ते व्यापार युद्ध में उसकी बयानबाजी और तेज़ हो गयी है।
विशेष रूप से भारत, जो अमरीका के बाद चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार अधिशेष गंतव्य है, वर्तमान में एक नये व्यापार सौदे के लिए अमरीका के साथ बातचीत कर रहा है। 2024-25 में भारत का अमरीका को निर्यात और चीन से आयात अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के साथ चीन स्पष्ट रूप से इस बात से चिंतित है कि भारत का चीन से आयात अमरीका की ओर खिसक सकता है। अमरीका के साथ भारत का पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान 41.18 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष था जबकि चीन के साथ इसका व्यापार घाटा 99 अरब डॉलर से अधिक के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। अमरीका का भारत के कुल निर्यात में लगभग 19.78 प्रतिशत और कुल आयात में 6.29 प्रतिशत हिस्सा था। चीन भारत के लिए विदेशी मुद्रा निकासी का सबसे बड़ा जरिया साबित हुआ क्योंकि 2024-25 में चीन के साथ देश का व्यापार घाटा अब तक के उच्चतम स्तर 99.2 अरब डॉलर पर पहुंच गया। भारत ने पिछले वर्ष की तुलना में चीन के निर्यात में 17 प्रतिशत की वृद्धि देखी जबकि चीन ने भारत से अपने आयात को और कम कर दिया। पिछले वित्त वर्ष के दौरान चीन को भारत का निर्यात 14.5 प्रतिशत घटकर मात्र 14.25 अरब डॉलर रह गया जो पिछले वर्ष के 16.66 अरब डॉलर से कम है।
भारत अब नये व्यापार समझौते के लिए अमरीका के साथ बातचीत कर रहा है। चीन ने वाशिंगटन पर दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक को अपने कब्ज़े में लेने के लिए अपने आयात शुल्क तंत्र का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। बीजिंग चीन की कीमत पर कोई भी सौदा करने वाले किसी भी पक्ष का दृढ़ता से विरोध करेगा और दृढ़ और पारस्परिक तरीके से जवाबी कार्रवाई करेगाए। यह उसके वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा। माना जाता है कि ट्रम्प प्रशासन चीन के साथ व्यापार को रोकने के लिए अमरीका से शुल्क में कटौती या छूट की मांग करने वाले देशों पर दबाव डाल रहा है, जिसमें मौद्रिक प्रतिबंध लगाना भी शामिल है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने 2 अप्रैल को चीन को छोड़ कर दर्जनों देशों पर लगाये गये व्यापक टैरिफ को रोक दिया है, जिसमें दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को सबसे बड़े व्यापारिक आयात शुल्क के लिए चुना गया है। पिछले कुछ वर्षों में चीन से बढ़ते आयात ने अमरीका में घरेलू उद्योग और रोज़गार के विकास को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। अब अमरीका इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
चीनी वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, अमरीका ने तथाकथित समतुल्यता के बैनर तले सभी व्यापारिक साझेदारों पर टैरिफ का दुरुपयोग किया है, साथ ही सभी पक्षों को उनके साथ तथाकथित पारस्परिक टैरिफवार्ता शुरू करने के लिए मजबूर किया है।’ चीनी राष्ट्रपति शीजिनपिंग ने अमरीका को चीन के निर्यात घाटे को आंशिक रूप से कवर करने के इरादे से प्रमुख आसियान देशों में घूमना शुरू कर दिया। हालांकि, बहुत-से आसियान देश इस बात से सहमत नहीं हैं क्योंकि वे चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे से भी पीड़ित हैं।
वास्तव में आसियान चीन का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। पिछले साल आसियान को चीन का निर्यात 586.52 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया था जो पिछले वर्ष की तुलना में 12 प्रतिशत की वृद्धि है। इस वृद्धि के कारण कुछ आसियान देशों के लिए व्यापार घाटा बढ़ गया है और चीनी वस्तुओं के आने से स्थानीय उद्योगों और रोज़गार पर दबाव पड़ा है। चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे ने भारत जैसे प्रमुख आसियान देशों को परेशान कर रखा है। पिछले साल आसियान से चीनी आयात केवल 395.81अरब डॉलर रहा। चीन को आसियान के निर्यात में बमुश्किल दो प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी।ऐसी परिस्थितियों में बहुत कम देश चीन की इस धमकी को गंभीरता से लेने के लिए तैयार हैं कि अमरीका के साथ द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सौदे करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की जायेगी। जहां तक भारत का सवाल है, चीन के साथ देश का व्यापार घाटा बढ़ गया है। चीन से आयात भारत से उसे निर्यात से बहुत अधिक है। वह नेपाल का उपयोग करके सभी प्रकार के चीनी सामान को भारत में धकेल रहा है। अमरीका-चीन व्यापार संबंध अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गये हैं। ऐसे में इस बात की प्रबल चिंता है कि चीनी निर्यातक अमरीकी टैरिफ के कारण उत्पादन को भारत की ओर मोड़ रहे हैं और आगे भी डंपिंग का सहारा लेंगे।
सौभाग्य से भारत और अमरीका ने पहले ही द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चल रही वार्ता की शर्तों को अंतिम रूप दे दिया है जिसका उद्देश्य व्यापार संबंधों में संतुलन और पारस्परिकता लाना है। अमरीकी वित्त सचिव स्कॉट बेसेंट के अनुसार भारत ट्रम्प प्रशासन के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश हो सकता है। व्यापार समझौते से बाज़ार तक पहुंच बढ़ाने, टैरिफ कम करने और आपसी लाभ के लिए व्यापार घाटे को पाटने की उम्मीद है। (संवाद)