पानी पर राजनीति

भाखड़ा-ब्यास प्रबंधकीय बोर्ड द्वारा पंजाब और हरियाणा के बीच पानी के विभाजन संबंधी किए गए एक फैसले को लेकर इस बार जो विवाद पैदा हुआ है, वह इस क्षेत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। विगत लम्बी अवधि से बोर्ड के प्रबन्ध में राज्यों के बीच पानी के विभाजन को लेकर उठते विवाद समुचित ढंग से निपटाए जाते रहे हैं। इस बार उठे इस विवाद का स्वर इतना ऊंचा क्यों हुआ और यह मामला इतना जटिल किस तरह हुआ, सभी संबंधित पक्षों को इस संबंध में सोचने की ज़रूरत है। पहली बात तो यह है कि बोर्ड को हरियाणा को उसके हिस्से से अधिक पानी देने संबंधी जल्दबाज़ी में फैसला लेने की ज़रूरत नहीं थी, पंजाब के पानी की ज़रूरतों को भी महत्त्व दिया जाना चाहिए और इस संबंध में आम सहमति बनाने के लिए कुछ और समय लिया जा सकता था। फिर उसने जिस तरह अपने फैसले को लागू करने के लिए दो अधिकारियों को बदला, वह भी बेहद आपत्तिजनक बात है।
दूसरी तरफ राजनीतिक दलों द्वारा भी राजनीतिक खेल खेला जा रहा है। पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने बोर्ड के फैसले विरुद्ध पूरी तत्परता दिखाते हुए धरने लगाने शुरू कर दिए। मुख्यमंत्री द्वारा नंगल का दौरा किया गया और एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा नंगल  बांध के पानी के रैगुलेटर केन्द्र को ताला लगा कर वहां पुलिस का पहरा बिठा दिया गया। इसने एक ऐसी अजीब स्थिति पैदा कर दी, जो पहले कभी नहीं हुई थी। दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी की सरकार थी, वह अक्सर हरियाणा की पानी की मांग के प्रति नरम रवैया धारण करती रही थी। अब दिल्ली और हरियाणा में भाजपा की सरकार है, इसलिए इस मामले को अधिक तूल दिया गया प्रतीत होता है। भाखड़ा-ब्यास प्रबन्धकीय बोर्ड द्वारा प्रत्येक वर्ष पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच पानी का विभाजन निश्चित कोटे के आधार पर किया जाता है, इस बोर्ड के एक चेयरमैन और 2 स्थायी सदस्य हैं। 2 विशेष इनवाइटी हैं, बोर्ड का चेयरमैन केन्द्र सरकार का होता है। सदस्यों में एक पंजाब और एक हरियाणा से होता है। बोर्ड पानी की स्थिति के दृष्टिगत राज्यों की ज़रूरतों का अनुमान लगा कर पानी का विभाजन करता है। इस बार हरियाणा का यह कहना था कि प्रदेश में पीने वाले पानी की भारी कमी हो गई है, जिसके लिए उसे निर्धारित मात्रा से ज्यादा पानी दिया जाए परन्तु पंजाब सरकार द्वारा यह बात न माने जाने के बाद बोर्ड के सदस्यों की संख्या को आधार बना कर स्वयं हरियाणा को 8500 क्यूसिक पानी देने का फैसला कर दिया गया, जबकि पंजाब का पक्ष यह था कि वह हरियाणा को पीने के लिए मानवीय आधार पर 4000 क्यूसिक पानी पहले ही दे रहा है, जबकि हरियाणा अपने कोटे का पूरा पानी मार्च तक में ही ले चुका है। पानी के विभाजन संबंधी पैदा हुआ यह विवाद अभी थम रहा प्रतीत नहीं  हो रहा। पंजाब सरकार ने इस संबंध में सर्वदलीय बैठक की है। दिल्ली में गृह मंत्रालय ने भी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान के सिंचाई सचिवों के साथ बैठक की है और केन्द्र ने पंजाब की असहमति को दर-किनार करते हुए हरियाणा को 4500 क्यूसिक  और पानी देने का फैसला कर दिया है। उधर पंजाब द्वारा पहले ही विधानसभा का विशेष सत्र बुला लिया गया है। उधर हरियाणा के मुख्यमंत्री यह मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं। उन्होंने हरियाणा की राजनीतिक पार्टियों की भी बैठक बुला ली है। विवाद बेहद बढ़ता जा रहा है।
जहां तक पानी के समुचित इस्तेमाल का संबंध है, हम समझते हैं कि विगत लम्बी अवधि से दोनों ही राज्य सरकारों ने भूमिगत पानी का जमकर दुरुपयोग किया है, जिससे पानी का यह स्रोत सूखने की कगार पर आ गया है, परन्तु अभी तक भी दोनों ही राज्य इसके प्रति लापरवाही दिखाते हुए, इस स्रोत को पूरी तरह खत्म करने पर आमादा हैं। कृषि, उद्योग, कस्बों, शहरों में अभिप्राय प्रत्येक क्षेत्र में पानी के इस्तेमाल के प्रति बड़ी लापरवाही अपनाई जा रही है। स्थानीय सरकारें इसमें किसी तरह का कोई अनुशासन लाने या इस संबंध में कड़े कानून बनाने में असफल रही हैं। आगामी समय में नदियों पर निर्भरता बढ़ने से किसी न किसी तरह यह संकट सामने आता रहेगा और इसे बर्दाश्त करना सरकारों और लोगों की विवशता होगी।
आज यहां पानी की बचत करने के लिए नई से नई तकनीकों की खोज करने की ज़रूरत है, वहीं वर्षा और अन्य स्रोतों के पानी को हर स्थिति में सम्भालने  की भी ज़रूरत है। हम राजनीतिक पार्टियों को यह अपील करते हैं कि वे इस मामले पर आपसी मुकाबलेबाज़ी में न पड़ें। राज्य सरकारें मिल-बैठ कर भ्रातृत्व भाव से और न्याय-संगत ढंग से इसे हल करने के लिए गम्भीर होकर यत्न करें। देश पहले ही एक बड़ी चुनौती से गुज़र रहा है। उसके दृष्टिगत पहले की तरह ही एक-दूसरे की पानी की ज़रूरतों को मुख्य रखते हुए विवाद को बढ़ाये बिना राज्य सरकारों को इस मामले को शीघ्र हल करने के लिए यत्नशील होने की ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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