पाक को आर्थिक व सैन्य मदद देने वाले देशों से दो टूक बात हो

पहलगाम में जो हुआ वह मानवता के साथ कूरता और आतंकियों की नीचता, कायरता की पराकष्ठा थी। कश्मीर के भीरत और बाहर से देश विरोधी गतिविधिया लम्बे अरसे से चल रही हैं। भारत के भीरत बैठे कुछ लोग आतंकियों का समर्थक कर देश को खोखला करना चाहते कर रहे है। देश का ताज कश्मीर लम्बे अरसे से रक्तरंजित हो रहा है। यही वजह थी कि 1965 का भारत-पाक युद्ध हुआ था, जिसे कश्मीर का दूसरा युद्ध भी कहा जाता है। यह युद्ध जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए था और पाकिस्तान ने इसे शुरू किया था। उसने जम्मू और कश्मीर में ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत सैनिक घुसपैठ की थी। यह युद्ध 23 सितम्बर, 1965 को समाप्त हुआ जब दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर युद्ध-विराम की घोषणा की थी। 
भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ  कई जवाबी कदम उठाए हैं। इनमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना, अटारी-वाघा सीमा बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना आदि शामिल हैं। इसके अलावा देश के हर राज्य की सरकारों ने अवैध रूप से भारत में रहने वाले पाकिस्तानी और बाग्लादेशियों को खदेड़ना शुरू कर दिया है। सिंधु जल समझौते को स्थगित करने की घोषणा ने पाकिस्तान को सबसे ज्यादा चिंतित किया है। यह बहुत बड़ी घोषणा है और इसके परिणाम दूरगामी होंगे। इस बात को अब अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ऐसे हमलों को रोकने के लिए भारत कोई भी कड़ कदम उठा सकता है। दशकों से सीमा पार से प्रयोजित आतंकवाद को बंद करने की भारत की अपील को पाकिस्तान अनदेखा करता आया है। 
पहलगाम आतंकी हमले के बाद पर हुई सर्वदलीय बैठक में भारतीय राजनीति का वह रूप दिखा, जिसकी ज़रूरत थी। सभी दलों ने एक स्वर में सरकार से कहा कि आतंक को मुंहतोड़ देने और निर्णायक कार्रवाई के लिए जो भी ज़रूरी हो, किया जाए। इससे पहले जम्मू-कश्मीर, खासकर घाटी में जिस तरह से आम लोगों ने सड़कों पर निकलकर इस आतंकवादी हमले की निंदा की, वह पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट संदेश है। उरी में आतंकी हमले के बाद भारतीय प्रधानमंत्री  ने कहा था कि जल और खून एक साथ नहीं बह सकते। इस बार सरकार इसी पर आगे बढ़ी है। हालांकि इतना ही काफी नहीं है। पुलवामा और पहलगाम जैसी घटनाओं से बचने के लिए पूर्णत: निर्णायक कदम उठाने की ज़रूरत है। सभी को याद होगा कि भारत ने पुलवामा का जवाब बालाकोट से दिया था। वह अप्रत्याशित और साहसिक कदम था। हालांकि इसके बाद भी सीमा पार आतंकवाद खत्म नहीं हुआ। इसकी वजह है आतंकियों तक पहुंचने वाली वह सप्लाई चेन, जिसे पाकिस्तान चालू रखे हुए है। वह पिछले कुछ साल से गंभीर आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। उसकी गाड़ी आईएमएफ और कुछ सहयोगी देशों के कज़र् से किसी तरह चल रही है। इसके बाद भी वह आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग का जुगाड़ कर लेता है। भारत को इसी फंडिंग को खत्म करना होगा। ज्ञात हो कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता चीन है। वह अपने 81 प्रतिशत हथियार चीन से लेता है। दूसरे नंबर अमरीका है। इन्हीं हथियारों का इस्तेमाल फिर भारत के खिलाफ  किया जाता है। ऐसे में भारत को इस बारे में दोनों देशों के साथ स्पष्ट बात करनी चाहिए। 2019 का उदाहरण भी दुनिया के सामने है, जब अमरीकी रोक के बावजूद पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एफ -16 का इस्तेमाल किया था। दुनिया को यह बताने की ज़रूरत है कि पाकिस्तानी सेना को दिया गया कोई भी हथियार आतंकी कैंप में पहुंच सकता है। सभी जानते है कि अमरीका और भारत के करीबी रिश्ते हैं। 
दूसरी ओर चीन के साथ सीमा विवाद भले हो, लेकिन आर्थिक रिश्ते मज़बूत हैं। 2024 में दोनों के बीच 118 अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार हुआ और इसमें पलड़ा चीन की तरफ झुका हुआ है। अमरीका और चीन को भारत का बाज़ार चाहिए। भारत को अपनी इस मज़बूत आर्थिक हैसियत का फायदा उठाते हुए स्पष्ट कर देना चाहिए कि पाकिस्तान को अब और आर्थिक मदद नहीं मिलनी चाहिए। इसी तरह की बातचीत यूएई और सऊदी अरब के साथ भी होनी चाहिए, जहां से पाकिस्तान को आर्थिक मदद मिलती रहती है।
दरअसल  पाकिस्तान में आतंक के ढांचे को नेस्तनाबूद करने के लिए बड़ी सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत है। पाकिस्तान को एहसास होना चाहिए कि आतंक को संरक्षण देने की नीति उसे ही बर्बाद कर देगी। इसके बावजूद भारत सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के उपरान्त जिस तरह से पाकिस्तान के मंत्री बयानबाजी कर रहे हैं, वह इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान 1965 के युद्ध को भूल गया है, लेकिन अब आतंकवादी हमले की घटना के बाद केंद्र सरकार ने जिस तरह के कदम उठाए हैं, उससे साफ  हो गया कि भारत अब ऐसे हमलों को अब और बर्दाशत नहीं करेगा। भारत ने अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, चीन जैसे तमाम प्रमुख देशों के राजदूतों को घटना का पूरा ब्यौरा दिया है और इससे जुड़े तमाम साक्ष्य उनके साथ साझा किए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से यह बात दोहराई कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत ने राफेल और सुखोई-30 ने अभ्यास भी किया। भारत ने अब फ्रांस के साथ 64 हज़ार करोड़ के राफेल-एम विमानों का सौदा भी कर लिया है। पड़ोसी देश के छेड़े छद्म युद्ध से निपटने के लिए भारत को अपना रुख और कड़ा करना होगा। अब भारत को दो टूक बातचीत में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि जो देश पाकिस्तान को आर्थिक या सैन्य मदद देंगे, वे भारत का भरोसा खो देंगे।

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