ईडी के मुम्बई दफ्तर में किसकी फाइलें जलीं ?

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मुम्बई वाले दफ्तर में पिछले सप्ताह लगी आग में कई फाइलें जल कर खाक होने की खबर है। ईडी दफ्तर में लगी आग का मुद्दा ज्यादा चर्चा में इसलिए है क्योंकि इस दफ्तर में सत्तापक्ष और विपक्ष के कई नेताओं के मुकद्दमों से जुड़ी फाइलें हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा चर्चा इस बात की है कि गुजरात के भगौड़े हीरा कारोबारियों मेहुल चोकसी और नीरव मोदी की फाइलें भी मुम्बई के बालार्ड एस्टेट ईडी दफ्तर में ही हैं। गौरतलब है कि मेहुल चोकसी को पिछले दिनों बेल्जियम में गिरफ्तार किया गया है और उसे भारत लाने की कोशिश जारी बताया जा रहा है। मेहुल चोकसी और नीरव मोदी के अलावा महाराष्ट्र सरकार में शामिल अजित पवार की एनसीपी के नेता छगन भुजबल की फाइल भी ईडी के मुम्बई दफ्तर में ही है और शरद पवार की पार्टी के दिग्गज नेता अनिल देशमुख की फाइल भी वहां है। हालांकि उम्मीद जताई जा रही है कि ज़रूरी और संवेदनशील मामलों की फाइलें बची होंगी या उन फाइलों की सॉफ्ट कॉपी कम्प्यूटर में सुरक्षित होंगी, लेकिन कम्प्यूटर आदि भी जलने की खबर है। जानकारों का कहना है कि जो मामले अदालत में होते हैं, उनसे संबंधित दस्तावेजों की असल कॉपी अदालत में जमा होती है और ईडी कार्यालय में उनकी फोटोकॉपी रहती हैं। अगर ऐसा है तो इसका मतलब है कि लोगों की चिंता करने की ज़रुरत नहीं है। 
अपना घर ठीक कर रही है न्यायपालिका
राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्यों के विधेयकों पर एक निश्चित समय सीमा में फैसला करने का आदेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सरकार ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है, लेकिन उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा के कई सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट पर शाब्दिक हमला करते हुए उसे अपनी हद में रहने की नसीहत दी। असल में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल के खिलाफ  दायर राज्य सरकार की एक याचिका पर दिया था। इस फैसले की आलोचना में भाजपा के ‘इकोसिस्टम’ की ओर से कहा गया कि अदालतों में जज फैसलों को महीनों-सालों तक सुरक्षित रख लेते हैं। इस दौरान एक खबर आई कि झारखंड हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के बाद जज ने तीन साल से फैसला सुरक्षित रख हुआ है और वहां के वकील  यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लाए। यह मामला आजीवन कारावास की सज़ा प्राप्त चार कैदियों का है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल तक फैसला सुरक्षित रखने को नागरिकों के जीवन के अधिकार और उनके मौलिक अधिकार का हनन बताते हुए फटकार लगाई और मामला अपने पास मंगा लिया है। इतना ही नहीं, झारखंड हाईकोर्ट में जितने भी फैसले दो महीने से ज्यादा समय से सुरक्षित हैं, उनकी भी पूरी सूची सुप्रीम कोर्ट ने मांगी है।
भाजपा समर्थकों की निराशा
जाति गणना के फैसले के बाद भाजपा के पूरे इकोसिस्टम को मानो सांप सूंघ गया है। पूरा सोशल मीडिया भाजपा समर्थकों के निराशाजनक पोस्टों से भरा हुआ है। पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद से भाजपा समर्थक दावा कर रहे थे कि पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी कार्रवाई होगी, जैसी पहले कभी नहीं हुई। कोई बलोचिस्तान बनाने की बात कर रहा था, कोई पीओके छीन लेने का दावा कर रहा था, कोई जनरल आसिम मुनीर को, तो कोई हाफिज सईद को मार डालने का दावा कर रहा था। हमले के बाद से भाजपा समर्थकों में गुस्सा था कि धर्म पूछ कर हत्या हुई है तो अब जाति का मुद्दा अपने आप पर्दे के पीछे चला गया, लेकिन अचानक मोदी सरकार ने जाति गणना की घोषणआ कर दी। भाजपा समर्थकों की समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें? सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थक तंज़ कस रहे हैं कि विपक्ष में रह कर कांग्रेस अपनी सरकार चला रही है। जाति गणना को देश तोड़ने वाला मुद्दा बता कर कांग्रेस को दोष दिया जा रहा है कि वह विपक्ष में रह कर भी देश तोड़ने का एजेंडा लागू करवा  रही है। ऐसे ही सोशल मीडिया में कई लोग कह रहे हैं कि पहले धर्म पूछ कर मारा गया और अब जाति पूछ कर मारा जाएगा। कई भाजपा समर्थकों को लग रहा था कि कुछ भी हो जाए आरएसएस जाति गणना नहीं कराने देगा। अब उनका गुस्सा आरएसएस पर भी निकल रहा है। आरएसएस की सौ साल की सक्रियता की उपलब्धि जाति गणना को बताया जा रहा है।
भक्त पत्रकारों की बेचैनी
जाति आधारित जनगणना कराने के सरकार के फैसले से सिर्फ  भाजपा के नेता और समर्थक ही हैरान नहीं हुए, बल्कि सरकार हितैशी पत्रकार वर्ग भी बेचैन हुआ कि उनकी सरकार ने यह क्या कर दिया। ऐसे सब पत्रकार भाजपा नेताओं से भी आगे बढ़ कर दावा कर रहे थे कि मोदी के रहते कभी भी जाति गणना नहीं हो सकती, क्योंकि मोदी समाज को बांटने वाला फैसला नहीं कर सकते। उन्होंने भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री मोदी की ओर से बढ़-चढ़ कर दावा किया था कि विपक्ष देश बांटने की साज़िश कर रहा है और भाजपा, संघ, सरकार मिल कर देश बचा रहे हैं। वे जाति गणना की बात करने वाले राहुल गांधी को अर्बन नक्सल बता रहे थे। इसीलिए जब सरकार ने जाति गणना कराने का फैसला किया तो सबसे ज्यादा परेशानी ऐसे पत्रकारों को ही हुई। उन्होंने जिस अंदाज़ मे जाति गणना नहीं कराने का समर्थन किया था, अब उससे आगे बढ़ कर जाति गणना के फैसले का समर्थन कर रहे हैं। अब वे सरकार के फैसले को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताते हुए कह रहे हैं कि मोदी ने तो कांग्रेस और विपक्ष का एजेंडा ही छीन लिया। एक पत्रकार ने खोज करके बताया कि अब मुस्लिम समुदाय की जातियों की भी गिनती होगी और तब पता चलेगा कि उनमें कितना विभाजन है। ऐसे ही बचकाना तर्कों से मोदी के फैसले को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताने का तमाशा चल रहा है।
भाजपा को हिंदी का मुद्दा छोड़ना पड़ा
लगता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने और हिंदी अनिवार्य करने का मुद्दा अब ठंडे बस्ते में चला गया है। अब कहीं इस बात की चर्चा नहीं हो रही है और न विवाद की कोई खबर आ रही है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार के बीच हिंदी को लेकर छिड़ी जंग को देख कर लग रहा था कि हिंदी का मुद्दा ही अगले साल तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा होगा, लेकिन अचानक यह मुद्दा ठंडा पड़ गया। तमिलनाडु में इस मुद्दे के ठंडा पड़ने का एक कारण तो यह है कि भाजपा ने अन्ना डीएमके से तालमेल का ऐलान किया है और अन्ना डीएमके को भी हिंदी को लेकर आपत्ति है। बताया जा रहा है कि अन्ना डीएमके और दूसरी सहयोगी पीएमके ने हिंदी के मुद्दे को पीछे करने का दबाव डाला, लेकिन उसके साथ ही एक घटनाक्रम महाराष्ट्र में हुआ, जिसके बाद भाजपा का पीछे हटना तय हो गया। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कक्षा पांच तक हिंदी अनिवार्य करने के फैसले की घोषणा कर दी तो उसका भारी विरोध शुरू हुआ। विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ सरकार में शामिल दोनों घटक दलों शिव सेना और एनसीपी ने भी इसका विरोध किया। इस विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। जब एक भाजपा शासित राज्य ने हिंदी अनिवार्य करने का फैसला वापिस लिया है तो ज़ाहिर है कि भाजपा दूसरे राज्यों में इसे अनिवार्य बनाने का दबाव नहीं डाल सकती है।

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