2002 के टकराव जैसी बन गई है वर्तमान स्थिति 

गत 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों द्वारा 26 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने पाक के खिलाफ कुछ कड़े कदम उठाए, जिसमें 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि को निलंबित करना भी शामिल है। उसके बाद पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को रद्द करे की घोषणा की। 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने अपने सैन्य प्रमुखों के साथ बैठक की और स्थिति से निपटने के लिए उन्हें पूरी छूट दे दी। उसी रात पाकिस्तान के सूचना मंत्री ने पत्रकारों से कहा कि पाकिस्तान को अपनी खुफिया रिपोर्टों के आधार पर आशंका है कि भारत 2-3 दिन में सैन्य हमला करेगा, और उस स्थिति में उनका देश पूरी तरह से तैयार है।
30 अप्रैल को स्थिति पूरी तरह बदल गयी, जब अमरीकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ दोनों को फोन करके दक्षिण एशिया में शांति और सुरक्षा बनाये रखने का आह्वान किया।
यदि रुबियो की टिप्पणियों का विश्लेषण किया जाये तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ सहयोग करने की अमरीका की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। हालांकि साथ ही हमले में शहबाज़ शरीफ सरकार की किसी भी संलिप्तता का उल्लेख किये बिना रुबियो ने विनम्रतापूर्वक तनाव कम करने की अपील करते हुए औपचारिक रुख अपनाया। गौरतलब है कि अमरीकी विदेश विभाग के बयान में यह उल्लेख किया गया था कि रुबियो और शरीफ दोनों ने हिंसा के जघन्य कृत्यों के लिए आतंकवादियों को जवाबदेह ठहराने की अपनी निरंतर प्रतिबद्धता की पुष्टि की। रुबियो भारत द्वारा आतंकियों का पता लगाने की अपनी कार्रवाई को आगे बढ़ाने के पक्ष में हैं, और वह चाहते हैं कि पाकिस्तान अपनी ओर से इस कार्य में पूरा सहयोग करे। रुबियो ने पहलगाम नरसंहार पर राष्ट्रपति ट्रम्प की भावनाओं को दृढ़ता से व्यक्त किया होगा। लेकिन साथ ही रुबियो ने कोई संकेत नहीं दिया कि शहबाज़ शरीफ सरकार का पहलगाम नरसंहार में शामिल आतंकवादियों के साथ सीधा संबंध है।
रुबियो की शरीफ के साथ बातचीत के बारे में अमरीकी विदेश विभाग द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि उन्होंने आतंकी हमले की निंदा करने की आवश्यकता के बारे में बात की। इसमें कहा गया कि दोनों नेताओं ने आतंकवादियों को उनकी जघन्य हिंसा के लिए जवाबदेह ठहराने की अपनी निरन्तर प्रतिबद्धता की पुष्टि की। इसमें कहा गया कि ‘सचिव ने इस अमानवीय हमले की जांच में पाकिस्तानी अधिकारियों से सहयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने पाकिस्तान को तनाव कम करने और दोनों देशों के बीच सीधे संचार को फिर से स्थापित करने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।’
पहलगाम नरसंहार के बाद का यह परिदृश्य जून 2002 में भारत-पाकिस्तान सैन्य गतिरोध से कई समानताएं रखता है, जब पश्चिमी देशों को जानकारी मिली कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान पर हमला करने का फैसला किया है। दिसम्बर 2001 में दिल्ली में भारतीय संसद पर पाक-प्रेरित आतंकवादी हमले और उसके बाद मई 2002 में जम्मू के कालूचक में एक और नरसंहार के बाद वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की सभी उम्मीदें खो दी थीं। भारतीय अभियान को ऑपरेशन पराक्रम नाम दिया गया था। भारत और पाकिस्तान दोनों ने नियंत्रण रेखा पर भारी संख्या में सैनिकों को तैनात किया और नौसेना तथा सेना की टुकड़ियां पूरी तरह से तैयार थीं।
लेकिन फिर अमरीका ने ज़ोरदार हस्तक्षेप किया। दक्षिण एशिया की देखरेख करने वाले अमरीकी विदेश विभाग के अधिकारी रॉबर्ट आर्मिटेज ने दिल्ली में घंटों बिताकर भारतीय पक्ष को युद्ध टालने के लिए मनाया और वायदा किया कि था विदेश मंत्री कॉलिनपॉवेल पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से पाकिस्तान के अंदर आतंकी शिविरों को हटाने और पाकिस्तानी धरती से सक्रिय आतंकवादियों के खिलाफ  कार्रवाई करने के बारे में बात कर रहे हैं। पॉवेल आखिरकार सफल हुए और युद्ध टल गया हालांकि प्रधानमंत्री वाजपेयी खुश नहीं थे। लेकिन साथ ही उन्हें पता था कि अमरीका को नाराज़ करके भारत के लिए पाकिस्तान के साथ युद्ध करना संभव नहीं था।
दिलचस्प बात यह है कि मैं जून 2002में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच एक अलग असाइनमेंट पर मास्को में था। जिस दिन मैं मास्को से दिल्ली लौट रहा थाए मैंने हवाई अड्डे पर पाया कि प्रधानमंत्री के तत्कालीन प्रधान सचिव ब्रजेश मिश्रा भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ दिल्ली के लिए एक ही उड़ान में सवार थे। मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि प्रधानमंत्री के पास कोई कार्यक्त्रम नहीं था।
मॉस्को में मिश्रा और वाजपेयी मध्य एशियाई राज्य के दौरे पर थे। मुझे एक अधिकारी ने बताया कि मिश्रा को प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और रूसी अधिकारियों से भारत-पाक गतिरोध पर नवीनतम स्थिति के बारे में बात करने के लिए भेजा था जो पूरे दक्षिण एशिया को प्रभावित करने वाले किसी भी भारतीय भू-राजनीतिक शतरंज चाल पर रूसी रुख के महत्व को दर्शाता है।  (संवाद)

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