कुत्तों का आंतक

माना कि घरेलू पालतू कुत्ते वफादार स्वामीभक्त होते हैं। व़फादारी से प्रसिद्ध इनकी कहानियां पूरी दुनिया में पढ़ी-सुनी जाती हैं।। यह भी मानना पड़ेगा कि आवारा कुत्तों के आतंक से लोग आतंकित, भयग्रस्त, त्रस्त और संकटग्रस्त होते हैं। ‘प्यूपल अंगेस्ट क्रूएल्टी टू एनीमल्स’ संगठन की मेहरबानी से आवारा कुत्तों की गिनती में दिन दोगनी रात चौगुनी वृद्धि होती जा रही है।हम भी मानते हैं कि किसी भी जीव को मारना नहीं चाहिए। लेकिन जो आवारा घूमते कुत्ते लोगों को काटते हैं, उनकी बोटियां नोचते हैं, गांवों के बाहर मौजूद मवेशी-मसानों के खूंखार कुत्ते ज़िंदा इंसानों, बछड़े-बछड़ियों, कटड़े-कटड़ियों को नोच-नोच कर खा जाते हैं, उन कुत्तों पर तो नकेल कसी ही जानी चाहिए। पगलाए कुत्तों द्वारा काटने-नोचने पर अनेक लोगों को रैबीज़ की बीमारी होने का खतरा पैदा हो जाता है। कई गरीब लोग रैबीज़ से ग्रस्त होकर मौत के मुंह में चले जाते हैं क्योंकि सरकारी अस्पतालों में एंटी-रैबीज़ वैक्सीन के टीके लगते नहीं हैं और गरीब लोग महंगे दामों पर मोल लेकर ये टीके लगवा नहीं पाते। अब समय आ गया है कि हर जगह  ‘प्यूपल अंगेस्ट क्रूएल्टी टू हृयूमनस’ नामक संगठन भी कायम किए जाएं। सरकार और उसके प्रशासन के किसी भी आश्वासन पर हम लोग कब तक विश्वास करते रहेंगे?कुत्तों के आतंक से ग्रस्त व त्रस्त होने से कोई भी इलाका, जीवन का कोई भी क्षेत्र अब बच नहीं पाया है। भ्रष्टाचार का, लूट-खसोट, सांप्रदायिकता का, भ्रूण हत्या का, दहेज का कितनी ही तरह का आतंकवाद सब तरफ फैल चुका है। कहीं-कहीं पर सरकारी संरक्षण प्राप्त, राजनीतिक पोषित आतंकवाद निरीह व असहाय लोगों पर कहर बनकर टूटता है। आतंकवाद के प्रति हरेक का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है। जंगलों में रहने वाले जो आदिवासी अपने जंगल, प्राकृतिक सम्पदा, आबरू-इज्जत, घर, खेत, जायदाद, अपना अस्तित्व बचाने हेतु संघर्ष कर रहे हैं, आंदोलन कर रहे हैं, सरकार उसे नक्सलवाद तथा आतंकवाद कहती है। हां, यह बात सही है कि जो नक्सलवादी और आतंकवादी मासूम बच्चों, औरतों, बेकसूर लोगों की हत्या करते हैं, उन्हें सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए। जो स़फेदपोश, संभ्रांत लोग, पूंजीपति, भ्रष्टाचारी नेता व नौकरशाह महंगाई, भ्रष्टाचार, जमाखोरी, भाई-भतीजावाद का आतंक फैलाते हैं, यह सब तरह का आतंकवाद भी बहुत खतरनाक है। हमारी सोसायटी के लिए ‘सिविल सोसायटी’ के लोग अब सो गए क्या लंबी तानकर?सड़क-दुर्घटनाओं, रेल, समुद्री व हवाई जहाज़ों के हादसों का आतंकवाद भी अनेक ज़िंदगियों को रोज़ाना लील रहा है। हमारे शहर के लोग हर तरह के आतंक से भयग्रस्त रहते हैं। वे दिन में न तो अमन-चैन से चल-फिर सकते हैं और न ही रात में सो पाते हैं। यदि कोई कुत्ता बाहर गली में या किसी पड़ोसी के घर में भौंक रहा हो, तान पर तान दे रहा हो, तो कौन लंबी तानकर सो सकता है? तरह-तरह की नस्लों के पालतू कुत्तों, पोषित कुत्तों, संरक्षण, सुविधाएं प्राप्त कुत्तों के आतंक से भौं-भौं के तरानों से आम लोग पीड़ित, शोषित, आतंकित, परेशान हैं ही, अपितु तरह-तरह के आवारा, ‘लंपटों’, ‘लुटेरों,’ ‘चोरों’, ‘डाकुओं’ बदमाशों के आतंक से बहुत अधिक परेशान व दु:खी हैं। इन सब के काटने, नोचने, लूटने-खसोटने की क्रिया और ‘भौं-भौं’ की आवाज़ अमन-चैन से, बेफिक्री के साथ जीने नहीं देती। पता नहीं, कुत्तों के आतंक से कब निजात मिलेगी?

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