समर्पण की भावना

अपने सीमित साधनों से देश जिस कद्र महामारी का मुकाबला कर रहा है, वह स्वयं में हिम्मत बंधाने वाली बात है। इससे हौसला और बढ़ता है। जिस कद्र देश भर में समाजसेवी संस्थाओं ने ज़रूरतमंदों की सहायता करने का कदम उठाया है, जिस तरह अपनी क्षमता के अनुसार लोगों ने राहत कार्यों के लिए आर्थिक सहायता दी है, उससे समाज में पैदा हुई दृढ़ता का पता चलता है। केन्द्र सरकार से लेकर राज्यों तक और निचले स्तर तक प्रशासक दिन-रात राहत कार्यों में जुटे दिखाई देते हैं। प्रत्येक स्तर पर डाक्टरी सहायता के लिए टीमें पूरी तरह सक्रिय दिखाई देती हैं। इसलिए उनमें से अधिकतर ने अपने मन से डर को भी त्याग दिया प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित की गई तीन सप्ताह की तालाबंदी के संबंध में कई स्थानों पर नकारात्मक समाचार अवश्य मिले परन्तु अधिकतर लोगों द्वारा पूर्ण समर्थन दिया गया। भारत एक बेहद बड़ी जनसंख्या वाला विकासशील देश है। इसकी समस्याएं बड़ी और पेचीदा हैं, अधिकतर लोगों को रोजी-रोटी की चिन्ता है। इसलिए इस तालाबंदी के दौरान प्रतिदिन कमाने वाले मज़दूर वर्ग के लिए बड़ी समस्याएं पैदा हुई हैं, जिनसे निपट सकना स्वयं में बेहद मुश्किल कार्य है। ऐसा सभी राज्य सरकारों के पूर्ण सहयोग और समर्पण की भावना के बिना होना मुश्किल है। अगामी दिनों में इस समस्या ने क्या रूप धारण करना है। इसके बारे में विश्वास से कुछ नहीं कहा जा सकता। जिस तरह इस बीमारी के मामले बढ़ने शुरू हुए हैं, इसने प्रत्येक स्तर पर एक बड़ी चिन्ता पैदा कर दी है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कान्फ्रैंसिंग द्वारा विस्तृत बातचीत की है। क्योंकि इस बीमारी के लिए अभी कोई ठोस दवाई या इलाज सामने नहीं आया। इस समय बड़े प्रयास इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए किए जा रहे हैं। ऐसी भावना ही प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ सांझी की है। उन्होंने कहा है इस बात पर जोर दिया जाना आवश्यक है कि बड़े स्तर पर लोगों के टैस्ट किए जाएं, उनकी पहचान की जाए तथा उनको एक निश्चित समय के लिए एकांतवास में रखा जाए। इसके साथ ही बड़े स्तर पर इसके इलाज में सहायक हो सकती प्राथमिक दवाईयां तैयार भी की जानी ज़रूरी हैं और इससे निपटने के लिए चिकित्सा साजो-सामान का होना भी ज़रूरी है और इसको पूर्ण करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी कर्मियों के साथ-साथ बड़े स्तर पर समाजसेवियों की भी ज़रूरत है ताकि इसके विरुद्ध बड़े स्तर पर जंग लड़ी जा सके। इसलिए सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं को भी विश्वास में लिया जाना और उनको प्रेरित करना ज़रूरी है ताकि इस समय के दौरान किसी भी हाल में छोटे और बड़े इकट्ठ न हों, धार्मिक समारोह भी न किए जाएं, धार्मिक स्थानों पर लोगों की उपस्थिति संकेतिक ही होनी चाहिए। दिल्ली में निजामूदीन में तबलीगी ज़मात द्वारा 1 मार्च से 15 मार्च तक किए गए लम्बे समारोह के कारण जो संकट पैदा हुआ, उससे इस समय पूरा-पूरा सबक लेने की ज़रूरत है। इस समारोह ने एक तरह से देश भर में त्राहि मचा दी है। इस समारोह में शामिल होने के लिए बहुत सारे विदेशी टूरिस्ट वीज़ा लेकर भारत आए थे ताकि वह लम्बे समय तक भारत में रह सकें। इस समारोह में शामिल हुए इंडोनेशिया से आए मौलाना की तेलंगाना राज्य में रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद लगभग सभी राज्यों में फैले विदेशियों और तबलीगी मरकज़ के समारोहों में शामिल हुए अन्य हज़ारों व्यक्तियों की पहचान और अब तक उनमें से इस बीमारी के ग्रस्त हुए लोगों का पता लगाने के लिए एक बड़ी मुहिम छेड़ने की जरूरत है। अच्छा यही होगा कि तबलीगी समारोह में हिस्सा ले चुके लोग स्वयं ही सामने आ कर डाक्टरी जांच करवाएं। परन्तु ऐसे लोगों के सामने न आने से बीमारी के प्रसार को संभाल सकना बेहद कठिन कार्य होगा। इस घटना ने इस चल रहे संताप को और भी गम्भीर कर दिया है। इससे सरकार और समाज के सहयोग से ही निपटा जा सकता है। ऐसी सफलता आपसी सहयोग और प्रतिबद्धता से ही की जानी संभव हो सकती है।