गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होने की सम्भावना

गेहूं की कटाई में अभी समय शेष है। यह अप्रैल में शुरू होगी। सब्ज़ इन्कलाब से पहले आम तौर पर गेहूं की कटाई बैसाखी (13 अप्रैल) से शुरू करने की प्रथा थी। फिर कम्बाइन हार्वेस्टर प्रचलित होने के कारण कटाई बैसाखी से पहले शुरू होने लग पड़ी। अधिकतर किसानों जिनमें से कुछ पी.ए.यू. द्वारा आयोजित किसान मेले में गत सप्ताह आए थे, ने बताया कि गेहूं की फसल बहुत आशाजनक है और बड़ी अच्छी हालत में खड़ी है। इस बार भरपूर फसल होने की सम्भावना है। आई.सी.ए.आर.-इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ले रिसर्च के निदेशक डा. ज्ञानइन्द्र सिंह के अनुसार गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होने की सम्भावना है, यदि मौसम अनुकूल रहा और कोई प्राकृतिक आपदा फसल को खराब न करे। उनके अनुसार भारत सरकार ने जो 114 मिलीयन टन का अनुमान लगाया था, उत्पादन उससे अधिक होने के आसार हैं। 
मार्च का दूसरा पखवाड़ा चल रहा है। रातें अभी भी ठंडी हैं, जो गेहूं के लिए लाभदायक हैं। जनवरी-फरवरी में जो अधिक ठंड पड़ी थी, उसने भी गेहूं की फसल को बहुत लाभ पहुंचाया। फिर किसानों द्वारा बिजाई भी समय पर की गई और समय के अनुसार उन्होंने योग्य किस्मों का चयन करके काश्त की। कृषि सामग्री पर्याप्त मात्रा में तथा समय पर उपलब्ध हुई। बीज भी किसानों को समय पर मिलता रहा। डी.ए.पी., यूरिया तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश, जो गेहूं के लिए क्रमश: 55 किलो,110 किलो तथा 20 किलो प्रति एकड़ पी.ए.यू. विशेषज्ञों द्वारा सिफारिश किये जाते हैं, वे किसानों को आसानी से समय पर उपलब्ध हुए। गुल्ली डंडा, जो कई ज़मीनों पर 40 प्रतिशत तक उत्पादन को प्रभावित करता है, इस वर्ष फसल में बहुत कम था। पीली कुंगी, जो गेहूं को आम तौर पर आ ही जाती है और नुकसान पहुंचाती है, वह भी इस वर्ष लगभग नाममात्र ही थी। फिर कीटनाशक एवं नदीननाशक भी किसानों को शुद्ध तथा समय पर मिलते रहे, जिससे फसल बीमारियों तथा कीड़े-मकौड़ों के हमलों से सुरक्षित रही। 
डा. ज्ञानइन्द्र सिंह के अनुसार संस्थान की ओर से विकसित डी.बी. डब्ल्यू-303, डी.बी. डब्ल्यू-187, डी.बी. डब्ल्यू-222, डी.बी. डब्ल्यू-327, डी.बी. डब्ल्यू-371, डी.बी. डब्ल्यू-370 तथा डी.बी. डब्ल्यू-372 किस्मों का व्यापक रकबे पर काश्त किया जाना उत्पादन बढ़ाने में सहायक हुआ। इन किस्मों का उत्पादन अधिक है और इनमें गर्मी को सहन करने की शक्ति है। किसानों ने इन किस्मों को बढ़-चढ़ कर अपनाया। एक अनुमान के अनुसार पी.ए.यू. द्वारा विकसित पी.बी. डब्ल्यू-826 किस्म के साथ इन किस्मों की काश्त 60 प्रतिशत से अधिक रकबे पर की गई है। डा. ज्ञानइन्द्र सिंह के अनुसार गेहूं का उत्पादन करने वाले मुख्य राज्यों पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में गेहूं की फसल अच्छा उत्पादन देने का संदेश दे रही है। पंजाब कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डा. जसवंत सिंह के अनुसार पंजाब में गेहूं की फसल की वर्तमान स्थिति से यह पता चलता है कि उत्पादन बढ़ेगा। इसमें 7-8 प्रतिशत की वृद्धि होगी। सही अनुमान तो फसल की कटाई के बाद लग सकेगा। किसानों ने पुरानी किस्मों, जो काश्त में थीं, को लगभग अलविदा कह दिया। उन किस्मों में पी.बी.डब्ल्यू-343, एच.डी.-2967 तथा एच.डी.-3086 आदि शामिल थीं। ये किस्में कई वर्ष बहुत बड़े रकबे पर काश्त की जाती रही हैं। 
20 मार्च को रखड़ा में आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई.-कोलैबोरेटिव आऊट स्टेशन रिसर्च सैंटर पर पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन द्वारा लगाए जा रहे बीज वितरण एवं किसान प्रशिक्षण शिविर में किसान गेहूं के प्रीमियम संस्थान-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्चीच्यूट द्वारा विकसित की नई किस्मों के खेत देख सकेंगे। इन किस्मों में एच.डी.-3406, जो एच.डी.-2967 का संशोधित रूप है और 70 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक सम्भावित उत्पादन देने तथा पकने को 145 दिन लेने वाली 10 नवम्बर से 20 नवम्बर के बीच बिजाई हेतु सिफारिश की गई किस्म शामिल है। दूसरी किस्म एच.डी.-3385 है, जो अगेती बिजाई के लिए है तथा 147 दिन में पकने वाली और 73 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक सम्भावित उत्पादन देने वाली किस्म है। तीसरी किस्म जो विकसित की गई है, वह एच.डी.-3386 है। यह पीली तथा भूरी कुंगी का मुकाबला करने की समर्था रखती है और इसमें पौष्टिक तत्वों की उच्च मात्रा है।