शरीर के लिए अमृत समान है आंवला 

ऋषि च्यवन ने इसके योग से पुन: अपने यौवन को प्राप्त किया था जिससे उस योग को ‘च्वयनप्राश’ के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के त्रिदेव ’त्रिफला‘ का यह एक देव है जो जलन या दाह, नेत्ररोग, केशरोग, कामेन्द्रिय रोग, स्नायु रोग, मस्तिष्क रोग, अरूचि अजीर्ण, यकृत रोग, रक्तविकार, श्वास, खांसी आदि रोगों का संहार करता है। तो आइये निम्न छोटे से प्रयोगों से हम इसके गुणों से लाभ लें। जिनका आमाशय बिगड़ा हुआ है तो समझो कि सब कुछ बिगड़ गया है क्योंकि इससे ही खाया पिया पचता है और फिर हाड़ मांस, रक्त बनता है। इसे ठीक करने के लिए भोजन के बाद एक चम्मच आंवले का चूर्ण पानी से लेंगे तो कुछ दिनों में ही चमत्कार स्वयं ही देख लेंगे। अजीर्ण से जो परेशान हो चुके हैं, वे आंवले का चूर्ण एक चम्मच शहद या घी में चाट कर इससे निजात पा सकते हैं और अपनी जठराग्नि बढ़ाकर भोजन का आनंद ले सकते हैं। जिनको चाय की ज्यादा आदत पड़ चुकी हो और वे इसे मजबूरन कम नहीं कर सकते, वे तन्दुरूस्ती की चाय पीना शुरू कर सकते हैं जो उन्हें चाय का मजा तो देगी ही लेकिन उसके नुकसान नहीं। सूखे आंवलों को चायपत्ती की जगह उबालकर, दूध, चीनी डाल कर चाय जैसी बनाकर पिएं तो मुखड़ा सुन्दर-सलोना, शरीर में स्फूर्ति के साथ तंदुरूस्ती भी प्राप्त होगी। आजमाकर देख लें।किसी को जब बदन में जान नहीं है सा लगे, उठते हुए आंखों के आगे अंधेरा घिर आए, रक्त निचुड़-सा गया हो तब आंवले के चूर्ण को तेल में छानकर रख लें। एक चम्मच की मात्र में चूर्ण शहद में मिलाकर चाटें तो एक माह में ही ’कायाकल्प’ होता हुआ खुद देख लें।इसके अलावा कोई भी नियम पूर्वक आंवले का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में रोज ठण्डे पानी से सेवन करे तो दिमाग तेज होगा, नेत्र ज्योति बढ़ेगी, श्वास के रोग दूर होंगे, रक्त शुद्ध और उसका संचार ठीक होकर दिल मजबूत, जिगर तिल्ली का सुधार हो कर पाचन शक्ति सही होती है।

 (स्वास्थ्य दर्पण)