" कोरोना वायरस के टीके की तलाश " निकट भविष्य में सफलता की आशा

कोरोना महामारी के चलते विश्व भर के विकसित देशों में इस पर काबू पाने के लिए प्रभावशाली टीके का आविष्कार करने के लिए बड़े यत्न किए जा रहे हैं। अब  तक भिन्न-भिन्न देशों में इसे तैयार करने के लिए अरबों रुपये खर्च भी किए जा चुके हैं। भारत में भी इस वर्ष के शुरू में इस बीमारी की शुरुआत एवं मार्च के महीने में विश्व भर को प्रभावित कर देने के बाद ऐसी किसी औषधि का आविष्कार किया जा रहा था। अब इस संबंध में एक अच्छी ़खबर मिली है। हैदराबाद की औषधियां बनाने वाली कम्पनी ‘भारत बॉयोटैक ने’ पुणे की नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ बॉयोलाजी के साथ मिल कर कोवैक्सीन नामक टीका तैयार कर लिया है, जिसका पहला परीक्षण सफल रहा है। स्वास्थ्य विभाग ने इसका इन्सानों पर परीक्षण करने की इजाज़त भी दे दी है। इसी महीने में यह कार्य शुरू कर दिया जाएगा। भयानक बीमारियों के लिए औषधियों के अलावा टीके का आविष्कार लगभग सवा दो वर्ष पहले हो गया था जब एडवर्ड जैनर नामक वैज्ञानिक ने वर्ष 1796 में चेचक के लिए टीके (वैक्सीन) का आविष्कार किया था। उसके बाद अन्य बीमारियों के लिए भिन्न-भिन्न टीकों का आविष्कार 20वीं सदी के मध्य में भी हुआ। इसके बाद इस तकनीक को अधिकतर बच्चों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा। काली खांसी के टीके का आविष्कार 1914 में कर लिया गया था तथा गला घोंटू रोग का टीका 1926 में तैयार किया गया था। इसके साथ ही 1936 में टेटनस का टीका भी बना लिया गया था। पोलियो जैसी बीमारी का टीका भी 1955 में जॉन्स साल्क नामक वैज्ञानिक ने आविष्कार किया था। उस समय इस वैज्ञानिक की विश्व भर में बड़ी चर्चा हुई थी। इसके बाद खसरा, कनपेड़े (रूह्वद्वश्चह्य)  तथा रुबेला (छोटा खसरा) के टीके का आविष्कार 1969 में हुआ था। 1985 में स्वाइन फ्लू के टीके का आविष्कार भी कर लिया गया था। अभी तक एड्स के लिए टीका तो आविष्कृत नहीं हुआ, परन्तु इसके लिए भी प्रभावशाली औषधियां अवश्य तैयार की जा चुकी हैं। कोरोना महामारी को रोकने के लिए टीके के संबंध में तो इस वर्ष के शुरू में ही यत्न किये जाने लगे थे परन्तु सबसे पहले मई मास में अमरीका  की मोड्रेना कम्पनी ने अपने बनाये टीके के मानवीय परीक्षण के सफल होने की घोषणा की थी तथा यह भी दावा किया था कि यह टीका सुरक्षित भी है तथा सहनीय भी। मई के महीने में दूसरा ट्रायल करने के बाद कम्पनी ने यह दावा किया है कि जुलाई के महीने में इसका तीसरा परीक्षण भी शुरू कर दिया जाएगा। इंग्लैंड में आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी टीके के  परीक्षण में तीसरा पड़ाव पार कर चुकी है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने पिछले सप्ताह ही यह दावा किया था कि उसकी ओर से अतिरिक्त जैनरिक कम्पनी के सहयोग के साथ बनाये गये टीके के अच्छे प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। दक्षिणी अफ्रीका तथा ब्राज़ील में भी ऐसे टीके का परीक्षण हो चुका है। जून के पहले सप्ताह अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी यह दावा किया था कि सरकार ने जॉनसन एंड जॉनसन कम्पनी की ओर से बनाये गये टीके के संबंध में करार कर लिया है तथा जुलाई के मध्य में यह अमरीकी कम्पनी मानवीय परीक्षण शुरू कर देगी। इस समय विश्व भर में न्यूनतम 10 कम्पनियां इस उद्देश्य के लिए लगी हुई हैं। दो सप्ताह पहले इम्पीरियल कालेज लंदन के टीका विभाग के वैज्ञानिकों ने अपना तैयार किया टीका जानवरों पर सफल होने का दावा किया है। इन सभी अनुसंधानों के अध्ययन से यह बात सुनिश्चित होना शुरू हो गई है कि शीघ्र ही इस महामारी से निजात दिलाने वाला टीका तैयार कर लिया जाएगा जो संकट में फंसी दुनिया को निजात दिलाने वाला सिद्ध होगा। इसकी सफलता के संबंध में किसी प्रकार का कोई प्रश्न-चिन्ह इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि पिछले दशकों में भी वैज्ञानिकों ने भयानक बीमारियों के संबंध में औषधियों एवं टीकों के आविष्कार में सफलता हासिल की थी। दशकों से देश में विकलांगों की बड़ी संख्या जीवन व्यतीत करती रही है परन्तु अब भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया जाना एक बहुत बड़ा एवं सफल दावा कहा जा सकता है। नि:सन्देह कोरोना वायरस की बीमारी ने एक बार तो विश्व भर को बदल कर रख दिया है तथा इससे उपजे प्रभाव आने वाली लम्बी अवधि तक बने रहने की सम्भावना है। इसकी कोई औषधि न होने के बावजूद अब तक के भिन्न-भिन्न ढंगों से किये गये इलाज के साथ लाखों लोगों के इस बीमारी से राहत पाने एवं इसके टीके का आविष्कार होने से निकट भविष्य में अधिक आशा उत्पन्न होने की सम्भावना अवश्य बन गई है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द