दिम़ाग को काबू करने वाली मशीन

जो सबूत अब हमारे पास बचे हैं उस हिसाब से पहले दिमाग की सर्जरी लगभग सात हज़ार वर्ष पूर्व दक्षिणी अमरीका में हुई थी। तब दिमाग की ओर छोटे छेद बना दिये जाते थे और यह सोचा जाता था कि प्रेत-आत्माएं सिर के ऊपर काबू पाती हैं, जो इन छेदों के द्वारा बाहर निकल जाती हैं। इसी आधार पर बहुत सारे मनोरोगियों के आप्रेशन कर दिए गए। इस तथ्य के प्रमाण के तौर पर लगभग एक प्रतिशत पुराने समय की दबी हुई मिली खोपड़ियों के बीच कई प्रकार के छेद किए हुए थे। यह छेद करना आज भी जारी है। लेकिन अब प्रेत-आत्माओं को निकालने के लिए नहीं अपितु अंदर छोटी मशीनों को डालने के लिए। इलैक्ट्रानिक तरंगे निकालने वाली यह मशीन दिमाग के उन हिस्सों के सैलों को चुस्त करती है, जो पहले के मुकाबले काफी सुस्त पड़ चुके होते हैं। इनको दिमाग के आंतरिक भाग की रवानी कहा जाता है। यानि डीप ब्रेन सटियूलेशन (डी.बी.एस.)।सबसे पहले तीव्र पीड़ा को सहन करने के लिए यह उपचार 1960 में किया गया था। अब अमरीका और यूरोप में हिलते-कांपते हाथों के लिए ‘पारकिनसन’ रोग के बीच शरीर की बिना ज़रूरत के घुमावदार हरकतें रोकने के लिए, दौरे के लिए और बार-बार हाथ धोने वाली बीमारी को (ओ.सी.एन.) काबू करने के लिए यह उपचार किया जाता है। यह सभी बीमारियों के मध्य दिमाग के किसी एक हिस्से की अलग हरकत के द्वारा ही होती है। अगर दवाई अपना प्रभाव न दिखा रही हो तो यह आप्रेशन करना ही पड़ता है। अब यह इलाज लगातार शेष बचती कला, एलमीमस बीमारी और नशे की लत के लिए  प्रयोग किया जाता है। जैसे ‘पारकिनसन’  रोग के बीच कुछ हिस्सों में सीमा से अधिक एकदम हरकत के साथ खराबी दिखाई देती है तो इस आप्रेशन के साथ उस हिस्से को काबू में करने का सन्देश लाया जाता है। ऐसी ही बची हुई कला वाले हिस्से को शांत करके दिमाग ठीक किया जाता है। अलजीमर बीमारी में सुस्त हुए हिस्सों को भी चुस्त किया जाता है। मानवीय दिमाग को काबू करके आदेश सुनाने वाले इस आप्रेशन को सफल ढंग से लगभग लाख से अधिक मरीज़ों में किया जा चुका है। अधिकतर मरीज़ पारकिनसन बीमारी से पीड़ित थे। अब तो जागे हुये मरीज़ में भी आप्रेशन के हिस्से वाले स्थान हल्का सुन करके यह मशीन सिर के भीतर फिट कर दी जाती है। इसका लाभ यह होता है कि मशीन फिट करते हुए मानवीय दिमाग के बीच तरंगे, भिन्न-भिन्न हिस्सों के कामकाज के ढंग, मानवीय सोच के बीच उतार-चढ़ाव, भौतिक विचारधारा सहित शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों की हरकत पीड़ा का अहसास, फैसला लेने का ढंग आदि सब कुछ के बारे समझना आसान हो गया है। ऐसा करते हुए प्रत्येक बीमारी के साथ कला या मनोदशा में परिवर्तन के बारे में समझना आसान हो गया है। दिमाग के बीच वह हिस्सा जिनके बारे अभी तक समझा नहीं जा सकता कि कैसे कोई उसी हालात में पीड़ा महसूस न करते हुए और कैसे कोई रो-रो कर बेहाल हो जाता है, ऐसे ही बढ़ी हुई बीमारी को मनोबल के साथ कैसे कम किया जा सकता है, के बारे में भी समझ आने लगी है। इस मशीन के द्वारा गिरा हुआ मनोबल बढ़ा कर दिखाया जा चुका है और शारीरिक हरकत को भी काबू में करके बढ़ाया या कम किया जा सकता है। अब तक भिन्न-भिन्न 700 खोज पत्र सिर्फ इस आप्रेशन संबंधी लिखे जा चुके हैं। 
वर्तमान समय में इस आप्रेशन को जारी रखने के बारे फिर से विचार-विमर्श होने लग पड़ा है। पारकिनसन रोग में बहुत अच्छे परिणाम देखने के बाद अब यह समझ आ चुका है कि दिमाग के कौन-से हिस्से से शरीर में कम्पन पैदा करने वाली तरंगे निकलती हैं। यह बिजली रूपी तरंगे बिल्कुल 25 हज़ार न्यूरोन सैलों में एक समय में निकलती है। कंधों का अकड़ना , चलने में तकलीफ और कंधों में हिल-जुल को काबू करने के लिए इन सभी न्यूरोन सैलों को आप्रेशन के द्वारा सिर के भीतर फिट की गई मशीन काबू में कर लेती है और मरीज़ लगभग ठीक हो जाता है। मशीन के द्वारा सुखे हुए हिस्सों में लगभग तरंगे भेजने के साथ धीरे-धीरे उस में हरकत होकर टूटे सैलों में दोबारा तोड़फोड़ और जोड़ बनने शुरू हो गए हैं। यह बहुत ज्यादा उत्साहजनक आविष्कार है।
इस आविष्कार के द्वारा नया खुल गया है कि अनेक किस्म की दिमागी सोच, दिमाग के किसी हिस्से का सिकुड़ जाने के साथ-साथ  डीजैनेटिव रोगों का भी पूरा इलाज किया जा सकता है। अलजीमर मरीज़ों के एम.आर.आई. स्कैन में जिन हिस्सों में कम खून जाता था और कम काम कर रहे थे, उन हिस्सों में गुलूकोज़ भी कम मात्रा में मिला था। इस मशीन के द्वारा एक महीने के बाद उन हिस्सों में गुलूकोज़ बढ़ता हुआ दिखाई दिया और उन हिस्सों में खून की मात्रा भी बढ़ गई। इसीलिए दिमाग के ब्रैडमैन हिस्से 25 जो उदासी का सैंटर है, में डी.जी.एस. मशीन फिट की गई। कुछ महीनों के बाद उदासी के केन्द्र के बीच हरकत बहुत कम हो गई और मानव का मूड अच्छा हो गया। फिर 200 मरीज़ों पर इसको आजमाया गया। उनमें कई वर्ष बाद उदासी का संकेत नज़र नहीं आया। अब यह मशीन पूरी उम्र के लिए ही सुरक्षित मानी जाने लगी है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में मनुष्य के मन को काबू में किया जा सकता है और अनेक ला-इलाज रोगों को ठीक भी किया जा सकता है।


-फोन. 0175-2216783