मोदी का गलवान घाटी दौरा चीन को बड़ा संकेत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गलवान घाटी दौरा चीन को बड़ा संकेत है। इस दौरे का सीधा संकेत है कि भारत किसी भी हालत में सरहदों पर समझौते को तैयार नहीं है। अगर भारत चीन से मोर्चा खोलने को तैयार है तो पाकिस्तान और नेपाल को अपनी हैसियत का अनुमान लगा लेना चाहिए। चीन विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेह दौरा नए भारत का अपने-आप में एक महत्वपूर्ण सन्देश है।लेह में चीन की सीमा से 250 किलोमीटर दूर अपने जांबाज सैनिकों के साथ खड़े होकर मोदी ने यह प्रमाणित कर दिया  कि वह किसी भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव या भरोसे में 1962 सरीखा धोखा देश के साथ नहीं होने देंगे। सीमा पर खड़े होकर देश के पीएम ने कृष्ण की बांसुरी और सुदर्शन चक्र दोनों के उदाहरण से चीन को समझाने की कोशिश की है कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है। मोदी चीन को स्पष्ट शब्दों में चेताया है कि विस्तारवाद का सपना देखने वालों को मुंह की खानी पड़ेगी। इससे कठोर सन्देश और क्या हो सकता है? प्रधानमंत्री मोदी जनाकांक्षाओं को भांपने और परखने में सिद्धहस्त हैं। उन्होंने पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को रूस भेजकर सामरिक कसावट का संदेश दिया, फिर आर्थिक मोर्चे पर चीनी एप्स को प्रतिबंधित किया। अब अग्रिम मोर्चे पर खुद सेना और आइटीबीपी जवानों के बीच खड़े होकर जिस तरह उनका मनोबल बढ़ाया है, उसने एक बार फिर मोदी को जनता के बीच एक भरोसेमंद प्रधानमंत्री के रूप में मान्यता दी है। चीन-भारत विवाद के लिए चीन की आक्रामकता को जिम्मेदार बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लद्दाख यात्रा न केवल तात्कालिक, बल्कि एक ऐसे दीर्घकालिक संदेश की तरह है, जिसकी गूंज दुनिया में कुछ समय तक बनी रहेगी। विशेषज्ञ भी यह मान रहे हैं कि जो वह दिल्ली में बैठकर नहीं कर पा रहे थे, उसे उन्होंने लेह-लद्दाख पहुंचकर कर दिखाया। उन्होंने मोर्चे पर सैनिकों के बीच जाकर जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही, उसकी प्रासंगिकता अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में सबसे ज्यादा है। भले उन्होंने चीन का नाम न लिया, पर दो टूक कहा कि विस्तारवाद का दौर समाप्त हो चुका है, यह विकास का दौर है। वाकई उनका यह कहना चीन की नीतियों और दुस्साहस पर एक प्रतिकूल टिप्पणी है। भारत के संयम और भावनाओं के पक्ष में दुनिया की शक्तियां खुलकर सामने आने लगी हैं। अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान इत्यादि अनेक सशक्त देश हैं, जो भारत के साथ खड़े हैं और चीन की निंदा का ग्राफ धीरे-धीरे बढ़ रहा है। चीनी एप पर लगाए गए प्रतिबंध इत्यादि को अगर हम सांकेतिक भी मानें, तब भी दुनिया के कोने-कोने तक भारत की नाराज़गी पहुंची है। उम्मीद करनी चाहिए और बहुत हद तक संभव है कि भारतीय प्रधानमंत्री के लद्दाख पहुंचने से पड़ोसी देश भारत की नाराज़गी को साफ  तौर पर समझ सकेगा। बेशक, तनाव के दिनों में किसी प्रधानमंत्री का मोर्चे पर जाना और सेना के आला अधिकारियों के लगातार दौरे यह साबित करते हैं कि हम अपनी जमीन और जवानों के मनोबल के साथ हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान और थाईलैंड की महत्वपूर्ण यात्रा भी चीन को बेहद चुभी है। चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के मुख पत्र पीपुल्स डेली ने इस यात्रा को विशेष रूप से अहमियत देते हुए सलाह दी कि जापान के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग करना मुसीबतों को आमंत्रित करना है। वहीं जापान के राजनेताओं को उसने ‘तुच्छ चोर’ तक की संज्ञा दे डाली। चीन जापान को लेकर सदैव बेहद परेशान रहता है।