वर्षा ऋतु में ज़रूरी है स्वास्थ्य की रक्षा

कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। व्यक्ति थोड़ा-सा भी अपने शरीर का ख्याल करे, ऋतु के अनुसार आहार-विहार का ध्यान रखे तो वह इन ऋतुओं में होने वाले रोगों से बच सकता है। वैसे हमारे यहां ऋतुचर्या पालन की परम्परा वैदिक काल से ही चली आ रही है।जब ऋतु के महीने शुरू हो जाएं और एक ऋतु समाप्त हो रही हो और दूसरी ऋतु प्रारम्भ हो रही हो तो उस काल में व्यक्ति को विशेष रूप से आहार-विहार एवं स्वास्थ्य के प्रति काफी सतर्क रहना चाहिए क्योंकि मौसम परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव स्वास्थ्य एवं त्वचा पर पड़ता है। विशेष रूप से वर्षा ऋतु में व्यक्ति को अत्यधिक सावधान रहना चाहिए क्योंकि वर्षा ऋतु अपने साथ अनगिनत रोगों को लेकर आती है।वर्षा ऋतु में व्यक्ति को सुबह 5 बजे से 6 बजे के बीच अवश्य ही बिस्तर छोड़ देना चाहिए। शौच जाने के पूर्व व्यक्ति को कम से कम आधा लिटर पानी अवश्य पीना चाहिए। इससे पेट अच्छी तरह से साफ हो जाता है और पेट में गैस बनने की संभावना नहीं रह जाती है। सुबह बारिश न हो रही हो और आसमान साफ हो तो कुछ दूर तक तेज कदमों के साथ टहलना चाहिए। साथ ही इस बात का ख्याल रहे कि शरीर बारिश से भीगने न पाये।दांतों की सफाई पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। इसके लिए सदैव  ताजे नीम के दातुन का प्रयोग करें। सुबह नाश्ते में हल्के पदार्थ जैसे चाय दूध, बिस्कुट आदि हल्के आहार के रूप में लिये जा सकते हैं। स्नान करने से पूर्व सरसों के तेल से पूरे शरीर की खूब मालिश करनी चाहिए। इससे शरीर में रक्त संचार बढ़ जाता है एवं शरीर पर पानी का कम असर होता है।इस ऋतु में जितनी भूख हो, उससे कुछ कम ही खाना चाहिए। शुद्ध जल को प्राथमिकता देनी चाहिए तथा भोजन को खुला नहीं रखना चाहिए क्योंकि उस पर मक्खियों आदि के बैठने से बीमारियों की संभावना रहती है। भोजन में रोटी, सब्जी, नींबू, हरी मिर्च, आदि लेना काफी अच्छा होंगी।सावन-भादों के महीने में क्र मश: साग और दही का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए। इससे अनेक बीमारियां हो सकती हैं। वर्षा ऋतु में शाकाहारी भोजन करना चाहिए। मनुष्य को मांसाहारी भोजन से बचना चाहिए क्योंकि इससे पेट में गैस बनती है और खट्टी डकारें आती हैं जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। यदि पेट में गड़बड़ी हो तो एक समय भोजन बंद कर देना चाहिए।  इस ऋतु में पीने के पानी पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए क्योंकि दूषित जल पीने से शरीर में तमाम प्रकार के रोग हो जाते हैं। इसलिए पीने से पहले पानी को पूरी तरह से उबाल कर, ठंडा होने पर पीना चाहिए। दोपहर में खाना खाने के बाद घूमना-टहलना या सोना नहीं चाहिए। केवल आराम करना चाहिए। इस ऋतु में शरीर पर हल्के वस्त्र होने चाहिए। इसके लिए सदैव सूती वस्त्र धारण करें। जब भी घर से बाहर निकलें तो छाता या रेनकोट अवश्य साथ में ले लें तथा पैरों में जूते अवश्य  पहन लेने चाहिए। वर्षा ऋतु में आवश्यक बात यह है कि व्यक्ति को रात में जितनी जल्दी हो सके, खाना खा लेना चाहिए क्योंकि इस ऋतु में तमाम तरह के कीड़े-मकौड़े, मच्छरों एवं चींटियों की संख्या बढ़ जाती है जो अक्सर भोजन करते समय थाली में उड़कर आते जाते हैं जिससे मनुष्य अप्रत्यक्ष रूप से अनेक रोगों का शिकार हो जाता है।यदि बारिश में शरीर भीग जाए तो गीले वस्त्रों को शरीर से तत्काल अलग कर देना चाहिए एवं शरीर को सूखे तौलिये से पोंछकर तुलसी, काली मिर्च तथा अदरक का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए जिससे सर्दी-जुकाम से बचा जा सके। इस प्रकार इस मौसम में व्यक्ति उचित खान-पान, आहार-विहार एवं स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहे तो वह अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ बना सकता है।

(स्वास्थ्य दर्पण)