आज पुण्यतिथि पर विशेष राष्ट्र के तकनीकी उन्नायक डॉ. अब्दुल कलाम

तमिलनाडु के रामेश्वरम् कस्बे में एक मध्यमवर्गीय परिवार में डॉ. कलाम का जन्म हुआ। उनका पूरा नाम अवुल पकीर जैनुलआबदीन अब्दुल कलाम था। अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व जहां एक ओर हम सबके लिए प्रेरक है, वहीं अद्भुत एवं अलौकिक भी है। छोटे से कस्बे में सीमित संसाधनों में जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखते हुए डॉ. कलाम उच्च शिखर तक पहुंचे। वह भारत के यशस्वी वैज्ञानिक तथा उपग्रह प्रक्षेपण यान और रणनीतिक मिसाइलों के स्वदेशी विकास के वास्तुकार थे। एस.एल.वी.-3, अग्नि और पृथ्वी उनकी नेतृत्व क्षमता के प्रमाण हैं। उनके अथक प्रयासों से ही भारत रक्षा तथा वायु-आकाश प्रणालियों में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुआ। 
‘ज्ञान का दीप जलाए रखूंगा’ नामक कविता में 22 मार्च, 2002 को डॉ. कलाम ने लिखा, संकीर्ण तुच्छ लक्ष्य की लालसा पाप है, दीप जलाए रखूंगा, जिससे मेरा देश महान हो। डॉ. कलाम की ये पंक्तियां आज की युवा पीढ़ी तथा समस्त देशवासियों के लिए प्रेरण का काम करती हैं। जीवन में संघर्ष तथा अभाव व्यक्ति को कुछ नया करने और बड़ा सोचने के लिए जहां एक और मजबूर करते हैं, वहीं अनुकूलता भी प्रदान करते हैं। डॉ. कलाम का दृष्टिकोण स्पष्ट था। उन्होंने लिखा है कि जिसने कभी न ़गर्दिश देखी, जिसने कभी ना फाका किया। वो क्या खोएगा,क्या पाएगा। 15 अक्तूबर, 1931 को जन्मे डॉ. कलाम 27 जुलाई, 2015 को हम सबके बीच से अचानक चले गए। मंच से अपने कर्म का निर्वाह करते हुए, भारत की भावी पीढ़ी को मार्गदर्शन देते हुए, लेकिन उनका जीवन दर्शन और उनके प्रेरक विचार हम सब की पूंजी हैं। उन्होंने यह संदेश दिया कि भारत के कई कोटि जनों को कभी भी छोटा या असहाय महसूस नहीं करना चाहिए। हम सब अपने भीतर दैवीय शक्ति लेकर जन्मे हैं। 
उनका बचपन जिस वातावरण में बीता, वह भी हम सबके लिए प्रेरक है। आज जहां जाति तथा सम्प्रदाय के नाम पर अलगाव का वातावरण है, वहीं कलाम यह संदेश देते हैं, ‘जीवन बना था चुनौती, जिंदगी अमानत। मीलों चलते थे हम,  पहुंचते किरणों से पहले। कभी जाते मंदिर लेने स्वामी से  ज्ञान।  कभी मौलाना के पास लेने अरबी का सबक। बांटे थे अखबार मैंने, चलते-पलते साए में तेरे।’ डॉ. कलाम की ये पंक्तियां हम सबको प्रेरणा देती हैं। उनका एवं उनके माता-पिता का जीवन बहुत ही सहज एवं आडम्बरहीन रहा। उनके पिता और उनके जीजा उनके जीवन आदर्श रहे। माता का स्नेह सदैव उन्हें ऊर्जा देता रहा। स्कूल के गुरुजनों का आशीर्वाद सदैव फलित होता रहा। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था कि विपत्ति हमेशा आत्म विश्लेषण के अवसर प्रदान करती है। जीवन में जो कुछ भी मिले, उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। आज की पीढ़ी के लिए ये पंक्तियां प्रेरक हैं क्योंकि बहुत से लोग संकट सामने आते ही हिम्मत हार जाते हैं, और बहुत ऐसे भी हैं जो खूब  प्राप्त कर लेने के बाद भी कृतज्ञता का भाव नहीं रखते। जीवन में आगे बढ़ने के लिए यह आवश्यक है कि इच्छा, आस्था और उम्मीद विश्वास किया जाए। क्योंकि ये आपकी नियति को बदल सकती हैं। 
कर्म ही पूजा के सिद्धांत को मानते हुए डॉ. कलाम ने अपना सारा जीवन प्रयोगशालाओं में बिता दिया। आरंभ का वह भी दौर था जब गुमनामी में जीवन बीता। मीडिया ने उनका उपहास उड़ाया लेकिन उन्होंने शांत चित्त से प्रार्थना के बल पर अपना मार्ग नहीं छोड़ा। प्रत्येक समस्या पर सामूहिकता से हल निकालने का प्रयास किया और यह संदेश दिया कि गलतियां सीखने की प्रक्रिया का ही एक हिस्सा हैं। छोटे-बड़े सभी को भागीदार बनाकर ही सता प्राप्त की जा सकती है। शीर्ष पर पहुंचने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति बहुत ज़रूरी होती है। समस्याओं को हल करने के लिए जो सृजनात्मक परिवर्तन आते हैं, वही हमें प्रवाह में बनाए रखते हैं। अपनी प्रगति को परखना बड़ा मुश्किल होता है। अपने अनेक अनुभवों से डॉ. कलाम ने यह स्थापित किया कि व्यक्ति की कार्यशैली के कुछ पक्ष हैं। जैसे काम की योजना किस प्रकार बनाई जाए, व्यक्ति का नियंत्रण कैसा है, विकल्प तलाशने का धैर्य उसमें है या नहीं, अपना रास्ता तैयार करने का कौशल उसमें है या नहीं। उन्होंने यह बताया कि नेता क्या-क्या करता है, नेता का दृष्टिकोण प्रधान होता है और सच्चा कर्म योगी वह है जो परवाह नहीं करता कि काम का श्रेय किसे मिले। सफलता के बुनियादी पहलुओं पर विचार करते हुए उन्होंने लिखा कि लक्ष्य निर्धारण, सकारात्मक सोच, स्पष्ट कल्पना और विश्वास सफलता के बुनियादी पहलू हैं।  विश्वास से भरा व्यक्ति किसी के सामने घुटने नहीं टेकता।  आज उनकी पुण्यतिथि पर उनका पुण्य स्मरण करते हुए उनके जीवन  उनके विचारों उनके जीवन सूत्रों को अपनाने की बड़ी आवश्यकता है। 
-असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग
हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
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