हिम्मत-ए-मर्दां, मदद-ए-़खुदा!

कई वर्षों से मैं सरकार के ’पी.पी.पी. मॉडल’ के अंतर्गत कौशल विकास प्रोजैक्ट में कार्यरत हूं। अध्यापन का तो अपना विशेष स्थान है, अपना विशेष अनुभव भी। शुरू के कुछ महीने तो सब कुछ कुशल रहा पर जैसे-जैसे वक्त बीतता गया दिन डगमगाते गये। महीने बाद मिलने वाला वेतन कभी 7 दिन बाद कभी 17 दिन बाद और अब तो 70-75 दिन की देरी आम सी बात हो गई है। देरी का कारण पूछो तो अधिकारियों का दो टूक जवाब होता है, ‘नौकरी छोड़ दो!’ या कभी सरकारी कमियों का रोना रो देते हैं। शायद यही कारण है कि अब आए दिन अध्यापकों की चौंक पर चौंकड़ी लगना आम सी बात हो गई है।  
महीनों बाद वेतन मिलता है तो उसका आंनद एक पर्वतारोही जैसा होता है जो पहाड़ों की ऊंचाइयां मापता हुआ किसी ग्लेशियर की खूबसूरत आकृति को निहार ही रहा होता है कि अचानक हुए हिमस्खलन से वह दृश्य भयानक रूप ले लेता है और लग जाता है उस दृश्य को ग्रहण। ग्रहण और ग्रहों की स्थितियों का ज्योतिष में अपना विशेष स्थान है। कुछ मान्यताएं ये भी है अगर किसी काम में रुकावट आ रही है, जिंदगी में परेशानी बढ़ रही है तो उसका सारा ठीकरा ग्रहों को ही लेना पड़ता है। इस कोरोना काल के दौरान ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने खूब साथ निभाया। धारावाहिक देखते यह ख्याल हमेशा रहा कि परेशानियां मानव जीवन में ‘एंटी बैक्टीरियल टेबलेट’ की तरह होती हैं। परेशानियों का सामना तो इन देव पुरुषों को भी करना पड़ा। भक्त सुदामा के जीवन में मुश्किलें सरकारी लीज़ की तरह पांव जमाए बैठी थीं। भागवद गीता ने तो हमेशा कर्मशील होने के लिए कहा है लेकिन अब क्या हो रहा है। रोज़ कितने नारियल, कपड़े, अन्य सामान सफलता के साधन के रूप में नदियों-नहरों में बहाए जा रहे हैं। 
अपने ग्रह उतारे जा रहे हैं और नदियों की निर्मलता को ग्रहण लगाया जा रहा है।  इन पवित्र स्रोतों को दूषित कर परेशानियां कैसे दूर हो सकती हैं? ये प्राकृतिक स्रोत युगों-युगों से नि:स्वार्थ जीव पोषण करते आ रहे हैं। बदले में हम क्या दे रहे हैं?
 भारत की पहली महिला अरुणिमा सिन्हा जिन्होंने अपने कृत्रिम पांव के सहारे माउंट ऐवरेस्ट पर विजय ध्वज फहराया।  वर्ष 2011 में जब वह पद्मावती एक्सप्रेस में लखनऊ से दिल्ली  सी.आई. एस.एफ.. में शामिल होने के लिए प्रवेश परीक्षा देने जा रही थीं तो रेल में अचानक हुई लूट के विरोध के दौरान लुटेरों ने उन्हें चलती रेल से नीचे फैंक दिया था और दूसरे ट्रैक से आ रही रेल से उनका पांव कट गया था। अरुणिमा सिन्हा ने ‘बॉर्न अगेन ऑन माउन्टेन’ किताब भी लिखी है और पदमश्री व अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित हैं। पटियाला के घग्ग गांव की सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली कुलविंद्र कौर के दोनों हाथ बचपन में ही कट गए थे। कुलविंद्र दर्दनाक दुर्घटना की शिकार हो गई थी और उनके हाथ चारा काटने वाली मशीन में आ गए थे। न्यायाधीश बनने का सपना कुलविंद्र ने बचपन में ही देखा था और अपने बाजुओं के सहारे लिखना सीखा और पंजाब सिविल सर्विस एग्ज़ाम को पास किया और अब पंजाब में बतौर न्यायधीश अपनी सेवाएं दे रही हैं। 
प्रांजल पाटिल ने नेत्रहीन होने के बावजूद भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा पास की व अब बतौर उप-जिला अधिकारी अपनी सेवाएं दे रही हैं। प्रांजल पाटिल की आंखों की रोशनी बचपन में ही चली गई थी जब खेल खेल में उनकी आंखों में पेंसिल लग गई थी। वह भारत की पहली दृष्टिबाधित महिला आई.ए.एस. अधिकारी हैं।  
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