अततः..

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें) 
‘वरना क्या? बताओ! वरना पुलिस में रिपोर्ट करोगी?’ जय बड़ी बेशर्मी से हँसा, ‘अरे भई हमें भी तो पता चले कि ऐसा कौन सा कानून है जो पति को पत्नीके घर आने से रोकेगा’ थोड़ा रुक कर बोला, ‘खैर अभी तो मैं जा रहा हूँ! कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर भी जा रहा हूँ। मगर मेरे लौटने तक फैसलाकर लेना कि मैं यहाँ रहने आऊँ या तुम मेरे पास आ रही हो।’‘अच्छी जबरदस्ती है, मान न मान मैं तेरा मेहमान। तुम यहाँ से दफा हो जाओ और कान खोल कर सुन लो कि न तुम यहाँ आ सकते हो न मैं वहाँ आरही हूँ। तुम जो सोच रहे हो, वैसा कुछ नहीं होने वाला।’ जय बेशर्मी से हँसता हुआ दरवाजे से बाहर निकल गया। द्रौपदी पिछले दरवाजे में खड़ी अपनीमालकिन की बेबसी देख रही थी। वह सोच रही थी कि बेचारी डॉ. रेवा कुछ भी तो नहीं कर सकती। डरती हैं कि शोर होने से लोगों में बदनामी होगी।अगर मेरा आदमी होता तो मैंने अब तक लकड़ी काटने वाले दराट से इसके काट कर टुकड़े-टुकड़े कर दिए होते।यह इज्ज़त भी बहुत बुरी चीज़ है। कोई अपने मन की बात भी किसी से नहीं कह सकता। इससे तो हम गरीब ही अच्छे हैं। कम से कम जो मन में आया कह दिया और छुट्टी, पर यह आदमी राम राम यह कितना बेशरम है। डॉ. रेवा रोज ही इसकी बेइज्जती करती हैं पर इस पर कुछ भी असर नहीं होता। ब्याहता बीवी के होते हुए दो-दो औरतें ब्याह लाया और अब भी रेवा बीबीजी जैसी बड़ी डॉक्टर से रिश्ता निभाने की उम्मीद रखता है। ‘द्रौपदी।’अचानक रेवा की पुकार पर चौंक उठी वह। ‘खाना लगाओ। सुबह दो आप्रेशन हैं और यह कम्बख्त जब-तब आकर मूड ख़राब कर जाता है।’ रेवा बड़बड़ाते हुए डाइनिंग टेबल पर आ बैठी। अब तक जय प्रकाश जा चुका था। रेवा सोच रही थी कि उसने तो पिता जी को दहेज का सामान वापस माँगने से भी मना कर दिया था, ‘अगर उसका पेट भर जाता है तो खा लेने दीजिए।’ कहकर पल्ला झाड़ लिया था। लेकिन यह तो जोंक की तरह चिपक गया है,
किससे कहे रेवा? क्या करे? अब तो डॉ. सूर्यप्रकाश भी नहीं रहे, जिनका उसे सहारा था। ले-देकर एक सुषमा ही तो थी जिससे वह अपने मन की कहसकतीए इसलिए रेवा ने सुषमा को फोन करके अपना मन हल्का किया। इधर सभी डॉक्टरों को और सभी स्टाफ को भी रेवा से हमदर्दी थी, क्योंकि रजनी का आपरेशन तो इसी अस्पताल में हुआ था न? यह तो तय था कि रेवा जय से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहती थी लेकिन जय उचित-अनुचित किसी भी हथियार को प्रयोग करने से बाज़ नहीं आ रहा था। हद यह कि एक दिन वह बच्चे को भी रेवा के क्वार्टर में छोड़ गया कि शायद बच्चे को देखकर उसके दिल में ममता जाग जाए पर उसने तुरन्त ही द्रौपदी के हाथों बच्चा उसकेघर वापस भिजवा दिया।जय कई दिनों बाद शिमला वापस आया था। आते ही नहा-धोकर तैयार होने लगा। ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा हुआ तो उसे याद आया कि यह टेबल भी रेवा ही का तो था। वह बालों में कंघी घुमाते हुए सीटी बजाने लगा। अभी वह जूते पहनने ही जा रहा था कि कॉलबैल बज उठी। बाहर आकर देखा, माँ जिस आदमी को साथ लेकर आ रही थी, वह एक वकील के अलावा कुछ नहीं था। अभी जय कुछ पूछता कि आगंतुक बोल उठा, ‘मिस्टर जय प्रकाश आप ही हैं’ ‘जी हाँए कहिए।’ ‘यह लीजिए! यहाँ साइन कर दीजिए।’उसने कुछ कागज़ जय की ओर बढ़ाए तो जय अचकचाकर बोला, ‘यह क्या है?’‘पढ़ लीजिए, डाइवोर्स पेपर हैं...।’ ‘डॉ. रेवा ने आपके खिलाफ तलाक का केस फाइल किया है।’ ‘अगर मैं उसे तलाक न देना चाहूँ तो,’वह ढिठाई दिखाने लगा। ‘उन्होंने आपके विरुद्ध चरित्रहीनता का आरोप लगाया है।’ ‘कैसे?’
‘उन्होंने आप पर बिना उन्हें तलाक दिए दूसरे विवाह का आरोप लगाया है। प्रमाण के तौर पर उन्होंने अपने अस्पताल में श्रीमती रजनी के पति के रूप में रजनी के केस को साक्षी पेश किया है और इसी आधार पर कोर्ट ने जो आदेश पारित किया है, उसके अनुसार आप वहाँ अब नहीं जा सकते। कोर्ट केआदेश का उल्लंघन करने पर आपके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है। ‘यह कैसे हो सकता है’? उसकी आवाज़ दहाड़ने के बजाए अब मिमियाने वाली सी लग रही थी और वह बरामदे में पड़ी कुर्सी पर धम्म से बैठ गया।

(समाप्त)