वक्फ कानून : सरकार के जवाब पर आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला
हाल ही में बने वक्फ (संशोधन) कानून पर सुप्रीम कोर्ट में 16 अप्रैल, 2025 को हुई दो घंटे की चर्चा के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश संजय कुमार व न्यायाधीश के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने जो महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये थे (जैसे क्या सरकार हिन्दू ट्रस्ट्स में मुस्लिमों को शामिल होने की अनुमति देगी, आदि), उनसे स्पष्ट हो गया था कि अदालत इस कानून पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश जारी करने जा रही है, विशेषकर इसलिए कि इस नये कानून के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट को स्पष्टीकरण चाहिए था। स्टे के अंदेशे को मद्देनज़र रखते हुए सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता व वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने अदालत से उनकी बात अगले दिन सुनने का आग्रह किया, जिसे मान लिया गया। अगले दिन यानी 17 अप्रैल, 2025 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ आश्वासन दिए और इस तरह वक्फ कानून पर फिलहाल स्टे नहीं हुआ है। इस कानून के खिलाफ जो 150 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, उनका जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को एक सप्ताह का समय दिया है। अगली सुनवायी 5 मई को होगी। चूंकि मुख्य न्यायाधीश खन्ना 13 मई को रिटायर हो रहे हैं, इसलिए यह देखना होगा कि वह याचिकाओं पर सुनवायी करेंगे या किसी अन्य खंडपीठ को यह काम सौंप देंगे।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया है कि वह सेंट्रल वक्फ काउंसिल व वक्फ बोर्ड्स में कोई नियुक्ति नहीं करेगी और अगर राज्य अगले दो सप्ताह के भीतर कोई नियुक्तियां करते हैं तो वह रिक्त (वोयड) मानी जायेंगी। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि वह ‘वक्फ बाई यूजर’ सम्पत्तियों सहित वक्फ पर यथास्थिति बनाये रखेगी। इसका अर्थ यह है कि इस प्रकार की सम्पत्तियों पर दोबारा गौर नहीं होगा, उन मामलों में भी जिनमें विवाद है कि वह सरकारी सम्पत्ति हैं। दूसरी ओर वक्फ कानून की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह पांच याचिकाओं का चयन लीड याचिकाओं के तौरपर कर लें और एक नोडल वकील का भी चयन कर लें। वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों के प्रथम दृष्टिया अध्ययन के आधार पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्टे लगाने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस स्थिति को बदलने के पक्ष में नहीं है कि संसद कानून बनाये, एग्ज़ीक्यूटिव फैसले ले और न्यायपालिका व्याख्या करे। सुप्रीम कोर्ट का ख्याल यह है कि अतीत या इतिहास को फिर से नहीं लिखा जा सकता और अब पुरानी वक्फ सम्पत्तियों को फिर से नहीं खोला जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह भी सवाल है कि शताब्दियों पुराने वक्फ एसेट्स का सबूत कोई कहां से लेकर आयेगा?
पिछले तीन साल से सेंट्रल वक्फ काउंसिल निष्क्रिय पड़ी है। इसलिए इस आश्वासन का कोई अर्थ नहीं है कि इसमें नियुक्तियां नहीं की जायेंगी। संशोधित कानून में प्रावधान है कि काउंसिल व बोर्ड्स में दो गैर-मुस्लिम नियुक्त किये जायेंगे। याचिकाकर्ता इसे मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप मानते हैं, जो उन्हें अनुच्छेद 26 के तहत प्राप्त हैं। इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया था कि क्या वह हिन्दू ट्रस्टों में मुस्लिमों को सदस्य बनने देगी? इसमें कोई दो राय नहीं कि वक्फ (संशोधन) कानून-2024 की गहन न्यायिक समीक्षा की जानी चाहिए, जोकि सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ही कर सकती है। पहली ही नज़र में ज़ाहिर होता है कि यह कानून अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन करता है, विशेषकर अनुच्छेद 26 का, जो न केवल अपने धर्म का स्वतंत्रता से स्वीकार, पालन व प्रसार की अनुमति देता है बल्कि धार्मिक मामलों के आत्म-प्रबंधन का अधिकार भी देता है।
देश की आज़ादी के पहले दो दशकों के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने रतिलाल गांधी और तिलकायत गोविंदलालजी महाराज मामलों में स्पष्ट कर दिया था कि जो भी कानून धार्मिक संस्थाओं के आत्म-प्रबंधन अधिकार को छीनता है, वह असंवैधानिक है।
अगर पूरा बोर्ड सरकार का ही विस्तार बनकर रह जायेगा तो संस्थागत स्वायत्तता कहां रह पायेगी? संशोधित वक्फ कानून में यह चिंताजनक आशंका है कि वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में से न्यूनतम 3 ही मुस्लिम रह सकते हैं। क्या आप ऐसे हिन्दू मंदिर बोर्ड की कल्पना कर सकते हैं जिसके बहुसंख्य सदस्य गैर-हिन्दू हों? यह अनुच्छेद 26 के तहत उपलब्ध धार्मिक आत्म-प्रबंधन के विचार का घोर उल्लंघन है।
संशोधित वक्फ कानून में वक्फ बोर्ड के सदस्यों को यह अधिकार नहीं है कि वह अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से बोर्ड के अध्यक्ष को हटा सकें। यह आंतरिक लोकतंत्र व संस्थागत जवाबदेही का खुला उल्लंघन है। बिना जवाबदेही के स्वायत्तता बेकार की बात है, लेकिन बिना स्वायत्तता के जवाबदेही तानाशाही है। पहले यह प्रावधान था कि वक्फ बोर्ड का सीईओ मुस्लिम हो और उसका चयन बोर्ड द्वारा सिफारिश किये गये दो नामों में से किया जाये। अब सेक्शन 15 के ज़रिये इन दोनों ज़रूरतों को हटा दिया गया है। इससे चयन में समुदाय की भूमिका समाप्त हो जाती है और राज्य का नियंत्रण निरन्तर बढ़ता चला जाता है। जब ऐसी ही भूमिकाएं अन्य धार्मिक संस्थाओं में समुदाय-केंद्रित और सम्मानित हैं तो फिर एक समुदाय को ही निशाना क्यों बनाया जाये? नये वक्फ संशोधन कानून के प्रावधानों में अनेक कमियां हैं, जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से स्पष्टीकरण की मांग रखी है। अब देखना यह है कि सरकार क्या जवाब देती है और उसी के बाद अदालत तय करेगी कि यह कानून रहेगा या जायेगा या इसमें कुछ और बदलाव होंगे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर