क्या दाऊद की पहेली भी सुलझेगी ?
मुम्बई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा का भारत को अमरीका का प्रत्यर्पण और तेरह हजार करोड़ रुपये के बैंक घोटाले के केन्द्र बिन्दु मेहुल चोकसी की गिरफ्तारी के बाद से सोशल मीडिया और गली-नुक्कड़ की बहसों का केन्द्र फिर से भारत के लिए पहेली बना दाउद इब्राहिम बन गया है। तहव्वुर राणा का भारत को प्रत्यर्पण ऐसे समय में हुआ है जब पूरी दुनिया राजनीतिक-आर्थिक उथल-पुथल से गुजर रही है।
दाउद की गिरफ्तारी और उसका भारत लाया जाना एक ऐसा मुद्दा है जिस पर उसकी फ रारी के बाद से ही लगातार बात होती रही है। जब कभी यह मुद्दा ज्यादा ज़ोर पकड़ता है तो पाकिस्तान से एक अफवाह उड़ती है कि दाउद बहुत बीमार है, दाउद को उसके विरोधियों ने ज़हर दे दिया, दाउद की मौत हो चुकी है और उसका गिरोह किसी और के द्वारा चलाया जा रहा है, दाउद पाकिस्तान से दुबई भाग गया है आदि-आदि। अब जब तहव्वुर राणा भारत की जेल में भारतीय अधिकारियों के सामने अपराधी की तरह बैठकर भी अपना अपराध स्वीकार नहीं कर रहा है तथा अपने आका का नाम नहीं बता रहा है तब दाउद की आतंकी गतिविधियों के शिकार लोगों के परिवारों के साथ ही विपक्षी भी यह कह रहे हैं कि क्या अमरीका दबाब बनाकर भारत को दाउद दिलावाएगा या फिर तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण महज एक राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक बनकर रह जाएगा?
दाउद इब्राहिम पूरी दुनिया के लिए एक पहेली बना हुआ है। उसका संरक्षक पाकिस्तान इसे सुलझने नहीं देना चाहता। इस हालात में भारत की बढ़ती ताकत और अमरीकी राष्ट्रपति की दुनिया के खास देशों के बीच तनातनी में दाउद के प्रत्यर्पण की मांग को तीन नज़रिए से देखना होगा। पहला यह कि टैरिफ युद्ध अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का ऐसा दांव है जिसमें वह खुद ही घिर गए हैं और उससे उबरने के लिए वह रोज़ नए दांव चल रहे हैं। चूंकि ट्रम्प जानते हैं कि भारत इस समय आर्थिक-राजनीतिक दृष्टिकोण से ही नहीं हर तरह से इतना मज़बूत हो गया है कि उसके बिना अब कोई भी देश खुद को संशय में घिरा पाता है। ऐसी स्थिति में भारत को अपने पक्ष में करने के लिए तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण एक दांव हो सकता है जो ट्रम्प को भारत के अधिक नज़दीक लाए, वह भी ऐसी स्थिति में जिसमें चीन या दूसरे अमरीका विरोधी देश भारत को आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं। भारत के लिए यह अवसर एक ऐसा मौका हो सकता है जिसमें वह ट्रम्प पर दबाव बनाए कि वह पाकिस्तान को दाउद को भारत को सौंपने के लिए कहें। वैसे ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल में कह चुके हैं कि वह भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत में मध्यस्थ बनने को तैयार हैं। हालांकि दाउद भारत को तभी सौंपा जा सकता है जब भारत-पाकिस्तान के बीच प्रत्यर्पण संधि हो और पाकिस्तान यह स्वीकार करे कि दाउद उसकी पनाह में है। लगता नहीं है कि पाकिस्तान यह स्वीकार करेगा।
दाउद के प्रत्यर्पण का दूसरा पहलू यह है कि भारत में इस समय औरंगजेब की वक्फ तथा यूसीसी के मामले में उलझा हुआ है। बंगाल में ताज़ा हिंसा ने इसे और बढ़ाया है। तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोई ऐसा दांव चलें जिससे अमरीका पाकिस्तान को कहे कि वह दाउद के मामले में स्पष्ट करे कि वह कहां है और उसे भारत के हवाले करेगा या नहीं? विदेश मामलों के जानकार तथा राजनीतिक विशलेषक तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को एक राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक मान रहे हैं। राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक में विरोधियों पर सटीक और प्रभावी तरीके से हमला होता है जिससे स्ट्राइक करने वाले को अधिकतम लाभ मिलता है। नि:संदेह राणा का प्रत्यर्पण भाजपा और मोदी के लिए एक ऐसी ही स्ट्राइक है। विपक्ष भले ही यह गिनाए कि यह उसके प्रयासों का परिणाम है लेकिन सर्वविदित है कि मोदी और ट्रम्प की जब साझा प्रैस कांफ्रैंस हुई थी तो उसमें श्री मोदी ने यह अपील की थी कि आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए मुम्बई हमले के आरोपी को भारत को प्रत्यर्पित किया जाना चाहिए। ट्रम्प की सहमति के बाद इस बात पर अलम हो सका। इन परिस्थितियों में भारत को और अधिक अपने नज़दीक लाने के लिए ट्रम्प कोई ऐसा दांव चलेंगे या फिर पाकिस्तान, जो इस समय अपनी समस्याओं से जूझ रहा है, वह भारत को कोई संतोषजनक उत्तर देगा।
दाउद का भारत आना तभी पक्का हो सकता है जब यह तय हो जाए कि वह पाकिस्तान में है या फिर दुबई चला गया है या कहीं और है? दाउद का रहस्य कितना गहरा है कि इसका अंदाज़ा इसी से लग सकता है कि आज तक उसका मीडिया में कोई नया फोटो नहीं आया है जिससे स्पष्ट हो सके कि यह दाउद ही है। जब हम उसका फोटो तक नहीं पा सके हैं तो यह कह पाना सरल नहीं है कि वह कराची में है या लाहौर में या फिर कनाडा या उसके जैसे किसी देश में चला गया है जहां से वह अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा है। इन हालात में दाउद नामक पहेली सुलझना उतना ही मुश्किल नज़र आ रहा है जितना कि यह कह पाना कि भारत से भागे आर्थिक-सामाजिक-अपराधिक आरोपी भारत कब लाए जाएंगे। यदि दाउद पाकिस्तान में है तो वह उसे कभी भी भारत को सौंपना नहीं चाहेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर