नेशनल हेराल्ड : अदालती कार्यवाही का सम्मान करे कांग्रेस 

देश के राजनीतिक गांधी परिवार की पुत्रवधू सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी समेत अन्य के विरुद्ध नेशनल हेराल्ड मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पहला आरोप-पत्र अदालत में दाखिल कर दिया है। इस मामले में कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा और पत्रकार सुमन दुबे भी आरोपी हैं। दुबे राजीव गांधी फाउंडेशन के ट्रस्टी भी हैं। यह आरोप पत्र 9 अप्रैल, 1925 को विशेष जज विशाल गोगने की अदालत में पेश किया गया। अब इस पर अगली सुनवाई 25 अप्रैल को होगी। इसी दिन अदालत में केस डायरी भी प्रस्तुत करनी होगी। ईडी इसी प्रकरण में नेशनल हेराल्ड और एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) से संबंधित 661 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियों पर कब्ज़े की कार्रवाई शुरू कर दी है। ये सम्पत्तियां दिल्ली, मम्बई और लखनऊ में हैं। इस कार्रवाई के बाद देश भर में कांग्रेस ने सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए राष्ट्रपति के नाम कलेक्टर को ज्ञापन भी दिए। कहा गया कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की आड़ में लोकतंत्र को कुचला जा रहा है जबकि याद रहे यह मामला 2012 का है, उस समय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की केंद्र में सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। इस मामले की जांच 2015 से चल रही है। मालूम हो जनहित याचिकाएं दायर करने के बुद्धि विषेशज्ञ डॉ. सुब्रामण्यम स्वामी ने इस प्रकरण से जुड़ी याचिका 2013 में दाखिल की थी। इस समय भी केंद्र में संप्रग की सरकार थी। अतएव कांग्रेस को ईडी और अदालती कार्यवाही का सम्मान करने की ज़रूरत है। नेशनल हेराल्ड नाम के अंग्रेज़ी अखबार की स्थापना 1938 में पंडित नेहरू और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने की थी। इसका स्वामित्व एजेएल के पास था। इसी ने हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज अखबार निकाले थे।
दरअसल दो हज़ार करोड़ रुपये के नेशनल हेराल्ड से संबंधित स्वामित्व व परिसम्पत्तियों के हस्तांतरण से जुड़ा एक मामला निजी इस्तगासे के तहत निचली अदालत में विचाराधीन है। याचिकाकर्ता सुब्रामण्यम स्वामी ने अदालत में दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करके यह दावा किया था कि अखबार का मालिकाना हक रखने वाली कंपनी ‘द एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड’ के स्वामित्व और परिसम्पत्तियों के हस्तांतरण में धोखाधड़ी की गई है। इससे लाभान्वित होने वाले सोनिया गांधी और राहुल गांधी हैं। न्यायालय ने पहली नज़र में इस मामले को सुनने योग्य माना और प्रक्रिया आगे बढ़ा दी। तभी से कांग्रेस राजनीतिक प्रतिशोध के चलते इस मामले को झूठा ठहराने में लगी हुई है। साफ  है, सोनिया, राहुल अपने को फंसता देख जानबूझ कर मामले को सियासी साजिश करार देने में लगे हैं। यहां सोचने की ज़रूरत है कि वाकई न्यायपालिका पर यदि राजनीति का प्रभाव है तो फिर 2013 में जब स्वामी ने अदालत में याचिका दाखिल की थी, तब अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल इस याचिका को खारिज कराने में क्यों नहीं किया? याचिकाएं लगाने में सिद्धहस्त स्वामी ने कोई इकलौती यही याचिका दाखिल नहीं की, वह कई जनहित याचिकाएं लगाकर अपनी कानूनी लड़ाई को परिणाम तक पहुंचाने में सफल हुए हैं। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ी याचिका भी स्वामी ने शीर्श न्यायालय में लगाई थी। 1.76 हज़ार करोड़ के इस घोटाले की याचिका लगाने के समय भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और सोनिया सर्वेसर्वा थीं। बावजूद पुख्ता दस्तावेजी साक्ष्य होने के कारण कांग्रेस के सहयोगी दल के नेताओं को जेल के सींखचों में जाना पड़ा था। यदि न्यायालय राजनेताओं के दिशा-निर्देशन के अनुसार वाकई चलती हैं, तो माननीय सोनिया गांधी संप्रग सरकार की भद् पिटवाने वाली इस कार्यवाही को क्यों नहीं रोक पाईं? गोया, पूरा देश जानता है कि अदालतों का राजनीतिक हस्तक्षेप से कोई वास्ता नहीं है। न्यायालयीन प्रक्रिया स्वतंत्र रूप से कानूनी दायरे में गतिशील रहते हुए अंतिम परिणाम तक पहुंचती है। इस लिहाज से कांग्रेस द्वारा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को दोषी ठहराना उचित नहीं है। 
नेशनल हेराल्ड से जुड़ा मामला बेहद गंभीर है। प्रथम दृश्टया दस्तावेजी साक्ष्यों की पड़ताल करने से ही यह साफ हो जाता है कि दाल में कुछ काला है। दरअसल एजेएल नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कम्पनी है। कांग्रेस ने एजेएल को 90 करोड़ का कज़र् दिया। इसके बाद 5 लाख रुपये की अंश पूंजी से यंग इंडियन कम्पनी बनाई गई, जिसमें सोनिया व राहुल की 38-38 फीसदी भागीदारी तय की गई। शेष बची 24 प्रतिषत की हिस्सेदारी कांग्रेस नेता और पार्टी के कोशाध्यक्ष मोतीलाल बोरा और ऑस्कर फर्नाडीज को दी गई। अब दोनों नेता दिवंगत हो चुके हैं। इसके बाद एजेएल के 10-10 रुपये के नौ करोड़ शेयर यंग इंडियन को दे दिए गए। इसके बदले यंग इंडियन को कांग्रेस का कज़र् भी चुकाना था। 9 करोड़ शेयर के साथ यंग इंडियन का एजेएल की 99 फीसदी हिस्सेदारी मिल गई। इसके बाद उदारता दिखाते हुए कांग्रेस ने 90 करोड़ जैसी बड़ी धनराशि का ऋण भी माफ  कर दिया। मसलन कागज़ों में एक कम्पनी का कृत्रिम वजूद खड़ा करके एजेएल का स्वामित्व बड़ी आसानी से हस्तांतरित कर दिया गया। स्वामी ने अदालत में अपनी दलील पेश करते हुए इस प्रकरण में हवाला करोबार को अंजाम देने का संदेह भी जताया था। ज़ाहिर है, मामला बेहद गंभीर है।
अब 2000 करोड़ रुपये से अधिक की सम्पत्ति यंग इंडियन को गलत तरीके से स्थानांतरित की गई थी। आरोप है कि संपत्तियों का उपयोग करके फर्जी लेन-देन के जरिए लाखों-करोड़ों की रकम जुटाई गई। फर्जीदान, फर्जी अग्रिम किराया और फर्जी विज्ञापन के रूप में अवैध आय अर्जित की गई। जांच में पाए गए ऐसे ही दस्तावेज़ी साक्ष्यों के आधार पर अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया है। याद रहे ईडी ने 2021 से इस मामले की जांच कर रही है। ईडी ने जून 2022 में राहुल गांधी से पांच दिन में पचास घंटे और जुलाई 2022 में सोनिया गांधी से तीन दिन में करीब 12 घंटे पूछताछ की थी। इस मामले में मां-बेटे दिसंबर 2019 से ज़मानत पर हैं। वास्तव में अब जरूरत तो यह है कि एक जिम्मेदार और अनुभवी राजनीतिक दल होने के नाते सोनिया और राहुल समेत सभी आरोपियों को अपने निर्दोष होने के साक्ष्यों के साथ अदालत में अपना पक्ष रखना चाहिए। केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराने और संसद से सड़क तक हंगामे की बजाय कानूनी प्रक्रिया के अनुरूप व्यवहार जताने की आवश्यकता है। अदालती कार्यवाही पर भी उंगली उठाना, सर्वथा अनुचित आचरण का प्रतीक है। 
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