सफल नेत्रहीन खिलाड़ी दीपक कुमार रावत
दीपक कुमार रावत को जन्म से ही कम दिखाई देता था इसलिए तो माता-पिता ने उसे देहरादून के नेत्रहीन स्कूल एन.आई.वी.एच. में दाखिल करवा दिया ताकि बेटा कुछ पढ़-लिख कर रोजी-रोटी कमाने के काबिल हो जाए। इससे पूर्व अगर उसके परिवार की बात की जाए तो उसका जन्म उत्तराखंड की पवित्र धरती के पवित्र शहर ज़िला उत्तराकासी के गांव किमदार में पिता प्रहृलाद सिंह और माता किसनी देवी के घर हुआ और वह छह भाई-बहनों में से एक हैं तथा वह परिवार में नाममात्र हैं जिनको बहुत ही कम दिखाई देता है और इस श्रेणी को पार्सल ब्लाइंड भी कह सकते हैं। देहरादून के नेत्रहीन स्कूल की ग्राऊंड में एक दिन वह दूसरे नेत्रहीन खिलाड़ियों के साथ खेल रहा था तो उस पर खेलों के कोच नरेश सिंह नयाल की नज़र पड़ी। उन्हें दीपक कुमार के भीतर खेल भावना का ज़ुनून नज़र आया तथा उन्होंने दीपक कुमार को उसी दिन से खेलों में तराशना शुरू कर दिया। दीपक कुमार ने महज़ 9वीं कक्षा से खेलना आरम्भ किया और उसका खेल स़फर निरन्तर जारी है। वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में उसने उत्तराखंड की प्रदेश ट्राफी अर्थात् नागेस ट्राफी दो बार खेल कर अपने स्कूल और राज्य का नाम ऊंचा किया। वह बी.एच.आई. टूर्नामैंट में भी एक दौड़ाक के रूप में दौड़ चुका है। दीपक कुमार रावत अब तक क्रिकेट, फुटबॉल और एक दौड़ाक के रूप में खेलता आ रहा है और उसने ब्लाइंड क्रिकेट में चंडीगढ़ में खेलते हुए शतक भी लगाया है। दीपक कुमार अपने इस विद्यार्थी जीवन में खेलों के क्षेत्र में भी नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है और उसका स्वप्न है कि वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल कर अपने देश के लिए स्वर्ण पदक लेकर आए तथा शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी अपने कोच नरेश सिंह नयाल के नेतृत्व में दिन-प्रतिदिन मेहनत करके आगे बढ़ रहा है एवं उसकी मेहनत से लगता है कि वह एक दिन अपनी उस मंज़िल पर ज़रूर पहुंचेगा जिसके लिए उसने अपने भीतर हौसले और नई उड़ान का स्वप्न संजोये रखा है। मेरी शुभकामनाएं दीपक कुमार रावत के साथ हैं।
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