कब होगी रोज़गार और महंगाई पर ‘मन की बात’

प्रधानमंत्री जब  हर महीने रेडियो कार्यक्रम ‘‘मन की बात’’  पेश करते हैं तो देश के राज्यों के मामलों से बेहद व्यथित नजर आते हैं। वह अकेले ही बहुतायत मुद्दों के संबंध में आम आदमी की पीड़ाओं को दूर करते नजर आते हैं। प्रधानमंत्री का ‘मन की बात’ का 73वां संस्करण भी उनकी देश प्रेम की भावनाओं से ओत-प्रोत नजर आया है लेकिन लगातार जनता से जनता की बात को मन के माध्यम से करने वाले प्रधानमंत्री देश में सुलग रही बेरोजगारी और महंगाई जैसी आग को लेकर फिलहाल मन की बात का कोई ऐसा संस्करण लेकर सामने नहीं आ रहे जिससे देश की 80 प्रतिशत आबादी को कुछ राहत मिल सके। क्या केन्द्र सरकार इस बात को नकार सकती है कि देश में महंगाई का निर्धारण सवा करोड़ केन्द्रीय और राज्यों के लगभग पांच करोड़ राज्य कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन के आधार पर हो रहा है। ऐसे में देश की अस्सी प्रतिशत वह आबादी जो या तो ठेका पट्टी,रेहड़ी, मजदूरी या किसी अन्य माध्यम से पांच से दस हजार के बीच माहवारी कमाने वालों को इस महंगाई की मार कितना असहाय बनाए है, उसके बारे में प्रधानमंत्री मन की बात में चर्चा कब करेगें। अब अगर बात करें बेरोजगारी की तो इस बॉत से सरकार भी अनजान नहीं है। यह सच है कि कोई सरकार आ जाए, देश में समुचित तौर पर बेरोजगारी को खत्म नही, किया जा सकता लेकिन अगर सरकार दृढ़ इच्छा-शक्ति दिखाये तो देश में विस्फोटक  रूप लेने जा रही बेरोजगारी को कफी हद तक सम्हाला जा सकता है।  
वर्ष 2015 से 2020 के बीच देश ने कई संक्रमण काल देखे लेकिन नोटबंदी और कोरोना काल ने तो बेरोजगारी की दशा और दिशा दोनों को बदल दिया। वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार के 360 चपरासियों की नौकरी के लिए 23 लाख लोगों ने आवेदन दिया। उसी दौरान  मुंबई नगरपालिका के सौ पदों के लिए भी लाखों आवेदन हुए थे। ऐसे में वर्तमान में ‘बैंक मुसीबत में हैं और जीडीपी भी। महंगाई इतनी ज्यादा कभी नहीं थी, ना ही बेरोजगारी। जनता का मनोबल टूट रहा है। गैस और पेट्रोल के कीमतों में की गई भारी भरकम वृद्धि ने पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता की कमर तोड़ कर रख दी है। सब्जी हो या दाल या तेल, आम आदमी की जरूरत के सामान की कीमत कब आसमान छूने लगेगी, कोई भरोसा नहीं, मानो देश में मूल्य नियंत्रण लगभग समाप्त हो गया है। 
आम आदमी को अपने जीवन यापन में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। उद्योग धंधे ठप्प हो रहे हैं, व्यापारी तबाह हैं। केंद्र सरकार ने सरकारी संस्थाओं का निजीकरण करना शुरू कर दिया है। साल की शुरुआत में आए आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की समस्या भयंकर रूप ले चुकी है। भारत में थोक महंगाई दर नवंबर के महीने में पिछले नौ महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई। मन की बात के 73 वें संस्करण में पीएम मोदी कहते हैं कि  हर क्षेत्र में लगातार बढ़ रही है महिलाओं की भागीदारी। इस बार 26 जनवरी की परेड में भारतीय वायुसेना की दो महिला ऑफिसर ने नया इतिहास रच दिया। क्षेत्र कोई भी हो, देश की महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। लेकिन, अकसर हम देखते हैं, कि देश के गांवों में हो रहे इसी तरह के बदलाव की उतनी चर्चा नहीं हो पाती है। 
दिल्ली में 26 जनवरी को तिरंगे का अपमान देख देश बहुत दुखी हुआ। हमें आने वाले समय को नई आशा और नवीनता से भरना है। हमने पिछले साल असाधारण संयम और साहस का परिचय दिया। इस साल भी हमें कड़ी मेहनत करके अपने संकल्पों को सिद्ध करना है।  इसके अलावा भी प्रधानमंत्री ने कई पहलुओं को छुआ और इस बात का आभास कराया कि उनकी चिन्ता सर्वसमाज के प्रति एक समान है। वह चाहते हैं कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचे। लोगों को बेहतर माहौल और सुविधाएं मिलें। सबको आवास मिले, यातायात सुगम हो। देश की जनता मन की बात में बढ़ती अनियंत्रित होती बेरोजगारी पर विस्तार से चर्चा की अपेक्षा कर रही है। महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे देश में भुखमरी जैसी समस्या पैदा कर सकते हैं। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि केंद्र की राजग सरकार वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है। आज देश में असहमति का मतलब राष्ट्रद्रोह माना जाने लगा है।  देश में जो हो रहा है, उसको लेकर लोग बहुत चिंतित हैं। देश में मुद्रास्फीति और बेरोजगारी है । बेरोजगारी से कानून और व्यवस्था का संकट भी खड़ा हो सकता है। जब युवाओं को रोजगार नहीं मिलेगा तो क्या होगा ... चुनौतियां दूसरी भी हैं।’ 
ऐसे में निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री को मन की बात के संस्करण में इस बात पर विस्तार से चर्चा करनी होगी कि बेरोजगारी और महंगाई पर केन्द्र या उनकी अगली ठोस योजना क्या है। आत्म निर्भर,स्व-रोजगार और स्किल्ड इण्डिया, पीएम किसान सम्मान निधि योजना, मनरेगा रोजगार, उज्जवला योजना जैसे दर्जनों फार्मूले यथार्थ के धरातल पर खरे नहीं उतर रहे हैं।