रोगों का सृजनात्मक समाधान ध्यान

तनाव आधुनिक युग का अभिशाप बन गया है। इसकी प्रकृति धीमे जहर के समान है। अधिकांश लोग इसके उपचार के लिए महंगी व हानिकारक दवाइयों पर निर्भर रहने की भूल करते हैं जबकि कोई भी दवा तनाव से उत्पन्न बीमारियों को पूरी तरह ठीक करने में सफल नहीं हो सकती। इनका प्रभावी उपचार तो ध्यान क्रि या द्वारा ही संभव है जिसे आज बहुतायत में लोग अपनाने व नियमित सफलतापूर्वक करने का प्रयास कर रहें हैं। इस कुचक्र  में फंसकर उसका शारीरिक और मानसिक संतुलन गड़बड़ाने लगा है जिसके कारण तथाकथित अति समृद्धों एवं धन-सम्पन्नों के हिस्से में सिर्फ तनाव एवं अन्य बीमारियाँ ही आई हैं। इन दिनों 95 प्रतिशत से अधिक रोगी तनाव की प्रतिक्रि या स्वरूप रोगग्रस्त पाए जाते हैं।लगातार सिर दर्द,चक्कर आना,आँखें लाल रहना, आलस्य, स्मृतिहृस,लकवा आदि रोगों का आक्र मण हो जाना,ये सभी अत्यधिक तनाव के ही दुष्परिणाम हैं। इसके अतिरिक्त हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह, दमा, आर्थराइटिस, कोलाइटिस आदि रोग भी तनाव से पैदा होते हैं। 
इस महाव्याधि से छुटकारा कैसे पाएं
अब प्रश्न उठता है कि इस महाव्याधि से छुटकारा कैसे पाया जाये? विशेषज्ञों का कहना है कि जब इस रोग का मूल कारण शरीर नहीं, मन है तो इलाज भी मन का ही करना उचित होगा। प्रख्यात मनोवैज्ञानिक पादरी नार्मन विन्सेंट पील का कहना है कि ’मेडिटेट‘ एवं ’मेडीडेट‘ दोनों शब्दों का उदगम एक ही है अर्थात दवा करना एवं ध्यान करना दोनों के मूल स्रोत एक ही हैं। इतने पर भी दवा की पहुंच शरीर के विभिन्न अंग-अवयवों एवं प्रक्रि याओं तक ही सीमित है। मन सूक्ष्म है, जहां तक ’ध्यान‘ के द्वारा ही पहुंचा जा सकता है और इससे संबंधित बीमारियों को समूल नष्ट किया जा सकता है।
समग्र स्वास्थ्य का वरदान  
ध्यान साधना से रक्त में लेक्टेट की मात्रा में स्पष्ट कमी होती है। रक्त में लेक्टेट की वृद्धि उद्विग्नता,उच्च रक्तचाप को सूचित करती है जबकि कमी होने से व्यक्ति के अंदर उत्साह,उमंग और स्फूर्ति की,नवीन चेतना की लहरें हिलोरे लेने लगती है। ध्यान योग से मष्तिष्कीय तरंगों का बिखराव रूकता है। आज पूरी दुनियां ध्यान साधना के लाभों को जान चुकी है और इस क्रि या के चिकित्सकीय प्रमाण भी मिलने लगे हैं। एक ताजा शोध में यह बात सामने आई है कि जो स्त्रियां नियमित रूप से ध्यान योग करती हैं, उनका प्रतिरोधी तंत्र अत्यंत विकसित हो जाता है। 

(स्वास्थ्य दर्पण)