किसान आन्दोलन को नया रूप देने के लिए यत्नशील हैं किसान संगठन

मैं चुप हुआ था कि
टकराव खत्म हो जाये, 
वो मेरे सब्र को
कमज़ोरियां समझने लगे।
इस समय किसान आन्दोलन में आये गतिरोध को दोनों पक्ष ही कुछ इस तरह ब्यान कर रहे हैं कि हम तो सब्र से काम ले रहे हैं परन्तु दूसरा पक्ष हमारी चुप्पी को कमज़ोरी समझ रहा है परन्तु जो ‘सरगोशियां’ हमें सुनाई दे रही हैं, उनके अनुसार अब यह गतिरोध जल्द ही टकराव में बदलने जा रहा है क्योंकि जिस तरह की सूचनाएं हमारे पास हैं, उसके अनुसार केन्द्र सरकार अभी यह देखना चाहती है कि किसान कितनी देर में थकते हैं। परन्तु दूसरी तरफ किसान नेताओं के दिमाग भी यह समझ चुके हैं कि सिर्फ दिल्ली सीमा पर बैठ कर ही वे सरकार को झुकने के लिए मज़बूर नहीं कर सकते। सरकार तो गेंद किसानों के पाले में फैंक कर खामोश बैठी है कि उनकी ओर से तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ वर्ष के लिए स्थगित करने के प्रस्ताव के जवाब में किसान लिखित प्रस्ताव भेज कर बातचीत के लिए आगे आएं। जबकि किसान चाहते हैं कि सरकार ही बातचीत की नई पेशकश से बातचीत का निमंत्रण-पत्र भेजे क्योंकि सरकार के डेढ़ वर्ष वाला प्रस्ताव तो संयुक्त किसान मोर्चा पहले ही रद्द कर चुका है। इस दौरान 26 जनवरी की घटनाओं के आधार पर किसान नेताओं सहित कई व्यक्तिं पर केस दर्ज हो चुके हैं या पहले दर्ज केसों में नये नाम जोड़े जा रहे हैं, कई की ज़मानतें भी हो चुकी हैं। किसानों की हमदर्दी में आवाज़ उठाने वाले नौजवानों को इस तरफ जाने से रोकने के लिए डर का माहौल उत्पन किया जा रहा लगता है परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार किसान संगठन अब इस अवसान से परेशान हो गए हैं और वे आन्दोलन को नया रूप  देने के लिए मन बना चुके हैं। पता लगा है कि किसान मोर्चे की 9 सदस्यीय तालमेल समिति ने मार्च महीने की 6 तारीख से आन्दोलन को तेज़ करने का  निर्णय ले लिया है और इस बारे सार्वजनिक तौर पर घोषणा 27 फरवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद किया जाएगा। किसान नेता अब आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में आए लगते हैं। 
किसान संघर्ष के आगामी कार्यक्रम?
हमारी विशेष जानकारी के अनुसार संघर्ष को तेज़ करने  के लिए 4 नये कार्यक्रम बनाए गए हैं। इनमें 6 मार्च को 4 घंटे के लिए दिल्ली के पूर्ण घेराव का कार्यक्रम है। इसमें दिल्ली की बाहरी रिंग रोड मानी जाती है के.एम.पी. रोड अर्थात् कुंडली, मानेसर, पलवल रोड को 12 से 4 बजे तक पूरी तरह जाम करके ताकत का प्रदर्शन किया जाएगा और 4 घंटे न दिल्ली में कुछ जाने दिया जाएगा और न बाहर आने दिया जाएगा। 8 मार्च को किसान महिला शक्ति दिवस के रूप में मनाएंगे और देश भर में महिलाओं को सरकार विरोधी प्रदर्शन के लिए दिल्ली बुलाए जाने की संभावना है। जबकि 9 मार्च से आन्दोलन नया रूप ले लेगा। इस दिन से एक तरह से ‘जेल भरो’ आन्दोलन की शुरुआत हो जाएगी। इस दिन से प्रतिदिन 100 किसानों का जत्था संसद के घेराव के लिए जाया करेगा क्योंकि उस क्षेत्र में लगी धारा 144 का उल्लंघन करेगा। इसलिए गिरफ्तारियां देने का सिलसिला शुरु हो जाएगा। समझा जाता है कि आन्दोलन का यह दौर सरकार को नई तरह की मुश्किल में डाल सकता है। इसके अतिरिक्त किसान जत्थे पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और अन्य राज्यों जहां अप्रैल 2021 में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, में किसानों को भाजपा के खिलाफ मतदान करने के लिए एकजुट करने के लिए भी भेजे जाएंगे।दूसरी तरफ मिली जानकारी के अनुसार केन्द्र सरकार अभी सिर्फ इन्तज़ार करो और देखो की रणनीति पर ही चल रही है। पता लगा है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं के साथ केन्द्र सरकार की बातचीत शुरू करवाने वाले भाजपा नेताओं हरजीत सिंह ग्रेवाल और पूर्व मंत्री सुरजीत ज्याणी को दिल्ली बुलाया था। ग्रेवाल तो बीमार बताए जा रहे हैं परन्तु पता चला है कि ज्याणी दिल्ली गए हुए हैं। इससे यह प्रभाव अवश्य बना था कि शायद केन्द्र सरकार किसान मोर्चे के लिए कोई ठोस निर्णय लेने के लिए तैयार हो गई है। परन्तु अब पता लगा है कि श्री ज्याणी को सिर्फ यह ही कहा गया है कि इन्तज़ार करें और अभी चुप्प ही रहें। शायद कुछ लोग नहीं समझते कि- 
शोहरत की बुलंदी भी
पल भर का तमाशा है, 
जिस डाल पे बैठे हो
वो टूट भी सकती है।
पंजाब में भाजपा की चुनाव रणनीति?
किसान आन्दोलन के चलते पंजाब विधानसभा के 2022 में होने वाले चुनावों में भाजपा को अछूत हो जाने की स्थिति से बचाने और चुनावों में अच्छी कारगुज़ारी दिखाने के लिए भाजपा की संभावित रणनीति सामने आने लगी है। प्रभाव यह बन रहा है कि यदि किसान मोर्चा किसी स्वीकृत समझौते  पर न पहुंचा तो भाजपा 2022 के चुनावों में पंजाब में किसी सिख चेहरे को आगे करने की अपेक्षा हिन्दू और दलित गठबंधन बनाने को प्राथमिकता देगी। यही कारण माना जा रहा है कि 26 जनवरी की घटनाओं के बाद ‘टूलकिट’ मामले को तूल देकर खालिस्तान के साथ जोड़ने का अभियान हिन्दू वोटों को यकमुश्त भाजपा के पक्ष करने का प्रयास है। इसके साथ ही पंजाब भाजपा के दोनों गुटों के दलित नेताओं को विशेष महत्व दिया जाने लगा है। सोम प्रकाश तो पहले ही केन्द्रीय मंत्री हैं। अब पूर्व केन्दीय मंत्री विजय सांपला जो खन्ना, ग्रेवाल-सांपला गुट से संबंधित रहे हैं, को भी राष्ट्रीय कमीशन फार शैड्यूल्ड कास्ट का चेयरमैन बना कर विशेष महत्व दिया गया है। एक और चर्चा भी सुनाई दे रही है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह बंगाल चुनावों के बाद पंजाब की बागडोर भी स्वयं ही संभाल लेंगे और यदि आवश्यकता पड़ी तो दलित-हिन्दू वोटों को इकट्ठा करने के लिए बसपा से समझौता भी किया जा सकता है परन्तु यदि समय रहते किसान संगठनों के साथ कोई ऐसा समझौता हो गया, जिससे किसान भाजपा से खुश हो जाएं तो यह रणनीति बदल भी सकती है। फिर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भाजपा कोई सिख चेहरा आगे ले आए?
सिद्धू बनाम कैप्टन बनाम हाई कमान
साकी ये खामशी भी 
तो कुछ गौरतलब है, 
साकी तेरे मै-खवार
बड़ी देर से चुप्प हैं।
नवजीत सिंह सिद्धू की खामोशी के कितने अर्थ हैं, कोई नहीं जानता। कभी-कभी तो ऐसे लगता है कहीं यह लम्बी खामोशी स्वयं सिद्धू को ही किसी गुमनामी के अंधेरे में न धकेल दे परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है क्योंकि कांग्रेस हाईकमान सिद्धू को गंवाने के लिए तैयार नहीं। चाहे पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत के बयान कि सिद्धू  को कैप्टन के नेतृत्व में ही चलना पड़ेगा, ने एक बार यह प्रभाव दिया है कि जैसे सिद्धू  के पास अब कोई और विकल्प नहीं बचा। परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार वास्तविकता अभी भी इसके विपरीत है। नि:संदेह कौंसिल चुनावों में बड़ी जीत प्राप्त करके मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह कांग्रेस हाईकमान को संकेत दे रहे हैं कि वह अकेले ही 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने के समर्थ हैं, परन्तु फिर भी कांग्रेस में सिद्धू की प्रासंगिकता अभी समाप्त नहीं हुई। वास्तव में पता चला है कि कांग्रेस हाईकमान अब नवजोत सिंह सिद्धू  को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। स्वयं सिद्धू भी शायद अब मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होना चाहते होंगे क्योंकि अब मंत्री के रूप में कार्य करने के सिर्फ लगभग 5 माह भी शेष हैं। अगस्त में तो सभी विधायक आगामी चुनावों के तैयारी में व्यस्त हो जाएंगे। इतने कम समय में सिद्धू यदि उप-मुख्यमंत्री भी बन जाएं तो भी कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकेंगे। इसीलिए वह पंजाब कांग्रेस की अध्यक्षता को ही प्राथमिकता देंगे। दूसरी तरफ सुनील जाखड़ द्वारा हाईकमान को पूछे बिना भी ‘कैप्टन फार 2022’ की घोषणा कर देना भी यही प्रभाव देता है कि वह अपनी अध्यक्षता बचाने के लिए कैप्टन का समर्थन सुनिश्चित करना चाहते हैं। इस दौरान कैप्टन की ओर से सिद्धू के मिलने भेजे गए प्रतिनिधि भी सिद्धू के बढ़ते महत्व के सूचक हैं परन्तु सिद्धू की खामोशी जारी रहनी यही संकेत देती है कि अब वह शायद ही पहले वाला विभाग लेकर भी मंत्रिमंडल में लौटने के लिए सहमत हों। 

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