किसान संगठनों की लामबंदी

पंजाब विधानसभा के चल रहे मानसून सत्र के पहले दिन ही संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल किसान संगठनों की ओर से चंडीगढ़ में की गई विशाल महा-पंचायत प्रभावशाली रही। चाहे चंडीगढ़ प्रशासन की ओर से इस आयोजन को लेकर पहले तो संशय दिखाया जाता रहा परन्तु बाद में कुछ शर्तों के तहत भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) तथा संयुक्त किसान मोर्चा से संबंधित किसान संगठनों को अपनी मांगों के लिए एकत्रता करने या सीमित संख्या में मार्च करने की इजाज़त दे दी गई। नि:संदेह आज छोटा किसान आर्थिक तंगी से गुज़र रहा है। वह कई तरह के कज़र् के नीचे दबा हुआ है। उसका जीवन अनिश्चित और कठिन है। यही एक बड़ा कारण है कि समय-समय पर मजबूर हुए किसानों की ओर से आत्म-हत्याएं करने के समाचार आते रहते हैं। चाहे पंजाब की तत्कालीन सरकारों ने अपने-अपने ढंग से कृषि के क्षेत्र में दरपेश समस्याओं को हल करने का यत्न ज़रूर किया है परन्तु अभी भी इस ओर बहुत कुछ करना ज़रूरी है।
इसके अतिरिक्त उचित मूल्य न मिलने तथा अन्य कारणों के दृष्टिगत भारी संख्या में किसान कज़र् के मक्कड़जाल में फंसा हुआ है, जहां से निकलने का उसे कोई मार्ग दिखाई नहीं देता। इसी कारण अक्सर यह मांग भी उठती रहती है कि किसानों के कज़र् माफ किए जाएं। इसके साथ ही प्रदेश को गेहूं-धान के दो-फसली चक्र से निकालने की भी बड़ी ज़रूरत महसूस होती है। यह तभी सम्भव हो सकता है, यदि और प्रस्तावित की जाने वाली फसलों के न्यूनतम मूल्य निर्धारित किए जाएं तथा इसके साथ ही उन फसलों का मंडीकरण भी सुनिश्चित किया जाए।
पंजाब को हरित क्रांति का अग्रणी कहा जाता है। उस समय इसने देश की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने में अपना बड़ा योगदान डाला था, परन्तु इस पड़ाव के बाद कृषि क्षेत्र में आई स्थिरता ने कृषि के इस धंधे पर भारी प्रभाव डाला है। लगातार बढ़ते जाते शहरीकरण के साथ भी तथा परिवारों में ज़मीनों के विभाजन होते जाने के कारण भी आज भारी संख्या में किसानों के पास केवल ज़मीनों के छोटे-छोटे टुकड़े ही रह गए हैं, जिसने उनकी आर्थिकता पर भी भारी प्रभाव डाला है तथा उनकी चिन्ता में भी वृद्धि की है। इस संबंध में पंजाब की मौजूदा सरकार ने प्रशासन सम्भालते ही कृषि की दिशा तय करने के लिए नई नीति का प्रारूप तैयार किया था परन्तु उस नीति को अब तक भी क्रियात्मक रूप में पूर्ण नहीं किया जा सका। किसान संगठनों को यह भी शिकवा है कि मौजूदा पंजाब सरकार ने समय-समय पर उनसे किए वायदों को पूरा नहीं किया। संयुक्त किसान मोर्चे की ओर से सरकार को दिए गए अपने ज्ञापन में भी इस बात पर रोष प्रकट किया गया है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पिछले वर्ष किसानों की मांगों को पूरा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। मुख्यमंत्री ने सहकारी बैंकों के कज़र् एक बार में निपटाने की स्वीकृत योजना पर भी क्रियान्वयन नहीं किया। भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) की ओर से भी राज्य के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां को दिए गए ज्ञापन में सभी फसलों के लाभकारी समर्थन मूल्य प्रदान करने तथा किसानों के कज़र् माफ करने सहित कई और मांगें पूरी करने की सरकार से मांग की गई है।
किसान महा-पंचायत में प्रदेश को दरपेश कुछ अन्य गम्भीर मुद्दे भी उठाये गये, जिन्हें हल करना समय की बड़ी ज़रूरत है। इनमें पानी की सम्भाल का बड़ी समस्या भी शामिल है, क्योंकि पिछले दो दशकों में भूमिगत पानी पाताल तक नीचे चला गया है, जिस कारण निकट भविष्य में प्रदेश के समक्ष पानी का बड़ा संकट आ खड़ा होगा। इसके साथ ही नदियों का पानी बेहद प्रदूषित होने ने भी हर एक की चिन्ता में वृद्धि की है। विगत लम्बी अवधि में शहरों में सप्लाई किए जा रहे पानी का उचित प्रयोग करने तथा इसे हर स्थान पर पहुंचाने की योजनाएं ज़रूर बनाई जाती रही हैं परन्तु इन्हें सही अर्थ में क्रियात्मक रूप नहीं दिया जा सका। ऐसे गम्भीर मुद्दे बड़ी चिन्ता का कारण हैं, जिन पर इस महा-पंचायत में गम्भीरता के साथ विचार किया गया है। आगामी समय में इस दिशा में प्रदेश सरकार को, कृषि क्षेत्र के लिए उचित नीति तैयार करके उसे क्रियात्मक रूप में लागू करने के लिए यत्नशील होने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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