चीन ने बदली आबादी घटाने की पुरानी नीति

चीन द्वारा अपने दम्पतियों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति जिस ढंग से विश्व भर की मीडिया की सुर्खियां बनी, वह स्वाभाविक ही है। भारत में जहां पिछले काफी समय से जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग ज़ोर पकड़ चुकी है, उसमें इस खबर ने आम लोगों को चौंकाया होगा। इस कानून की मांग करने वाले ज्यादातर लोगों का तर्क था कि चीन की एक बच्चे की नीति की तर्ज पर हमारे यहां भी कानून बने। इन लोगों को वर्तमान नीति जारी करते समय चीन द्वारा दिए गए अपने जनगणना के आंकड़ों के साथ नीति बदलने के लिए बताए गए कारणों पर अवश्य गौर करना जाहिए। हालांकि जो लोग चीन और संपूर्ण दुनिया में जनसंख्या को लेकर बदलती प्रवृत्ति पर नज़र रख रहे थे, उनके लिए इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। एक समय जनसंख्या वृद्धि समस्या थी लेकिन आज चीन सहित विकसित दुनिया के ज्यादातर देश जनसंख्या वृद्धि की घटती दर, युवाओं की घटती तथा बुजुर्गों की बढ़ती संख्या से चिंतित हैं और अलग-अलग तरीके से जनसंख्या बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। 
सातवीं राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार चीन की जनसंख्या 1.41178 अरब हो गई है जो 2010 की तुलना में 5.8 प्रतिशत यानी 7.2 करोड़ ज्यादा है। इसमें हांगकांग और मकाउ की जनसंख्या शामिल नहीं है। इसके अनुसार चीन की आबादी में 2019 की लगभग 1.4 अरब की तुलना में 0.53 प्रतिशत वृद्धि हुई है। सामान्य तौर पर देखने से 1.41 अरब की  संख्या काफी बड़ी है और चीन का सबसे ज्यादा आबादी वाले देश का दर्जा कायम है, लेकिन 1950 के दशक के बाद से यह जनसंख्या वृद्धि की सबसे धीमी दर है।  आबादी का यह अनुपात चीन ही नहीं, किसी देश के लिए चिंता का विषय होगा। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक चीन की लगभग 44 करोड़ आबादी 60 की उम्र में होगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जून 2019 में जारी एक रिपोर्ट कहती है कि चीन में आबादी में कमी आएगी और भारत  2027 तक दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश हो जाएगा।
चीन पहले से इसे लेकर सतर्क हो गया था और उसने 2013 में ढील दी और 2015 में एक बच्चे की नीति ही खत्म कर दी लेकिन 2013 में इसके लिए शर्त तय कर दी गई थी। दम्पति में से कोई एक अपने मां-बाप की एकमात्र संतान हो, तभी वे दूसरे बच्चे को जन्म दे सकते हैं। दूसरे बच्चे की अनुमति के लिए आवेदन करना पड़ रहा था। इसे भी खत्म किया गया लेकिन जनसंख्या बढ़ाने में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। जनसंख्या वद्धि को रोकने के लिए चीन ने 1979 में एक बच्चे की नीति लागू की थी। इसके तहत ज्यादातर शहरी पति-पत्नी को एक बच्चा और ज्यादातर ग्रामीण को दो बच्चे जन्म देने का अधिकार दिया गया। पहली संतान लड़की होने पर दूसरे बच्चे को जन्म देने की स्वीकृति दी गई थी। चीन का कहना है कि एक बच्चों की नीति लागू होने के बाद से वह करीब 40 करोड़ बच्चे के जन्म को रोक पाया।  एक समय जनसंख्या नियंत्रण उसके लिए लाभकारी था, पर अब यह बड़ी समस्या बन गई है। वास्तव में ज्यादा युवाओं का मतलब काम करने के ज्यादा हाथ और ज्यादा बुजुर्ग अर्थात देश पर ज्यादा बोझ। चीन की यह चिंता स्वाभाविक है कि अगर काम करने के आयु वर्ग के लोगों की पर्याप्त संख्या नहीं रही तो फिर देश हर स्तर पर प्रगति के सोपान से पीछे चला जाएगा।
आज बुजुर्गों की बढ़ती आबादी से अनेक देश मुक्ति चाहते हैं और इसके लिए कई तरह की नीतियां अपना रहे हैं। पूरे यूरोप में जन्मदर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। कई देशों में प्रति महिला जन्मदर उस सामान्य 2.1 प्रतिशत से काफी नीचे आ गई है जो मौजूदा जनसंख्या को ही बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। उदाहरण के लिए डेनमार्क में जन्म दर 1.7 पर पहुंच गई है और वहां इसे बढ़ाने के लिए कुछ सालों से विभिन्न अभियान चल रहे हैं। दम्पतियों की छुट्टी के दिन बड़ी संख्या में गर्भधारण के मामलों को देखते हुए सरकार ने विज्ञापन अभियान के जरिए पति-पत्नी को एक दिन की छुट्टी लेने को भी प्रोत्साहित किया। 
इटली की सरकार तीसरा बच्चा पैदा करने वाले दम्पती को कृषि योग्य ज़मीन  देने की घोषणा कर चुकी है। 2017 के आंकड़ों के अनुसार जापान की जनसंख्या 12.68 करोड़ थी। अनुमान है कि घटती जन्मदर के कारण 2050 तक देश की जनसंख्या 10 करोड़ से नीचे आ जाएगी। वहां ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए कई तरह के प्रोत्साहन दिए गए हैं।
 भारत की ओर आएं तो 2011 की जनगणना के अनुसार 25 वर्ष तक की आयु वाले युवा कुल जनसंख्या के 50 प्रतिशत तक, 35 वर्ष तक वाले 65 प्रतिशत थी। इन आंकड़ों से साबित होता है कि भारत एक युवा देश है। भारत की औसत आयु भी कई देशों से कम है। इसका सीधा अर्थ है कि दुनिया की विकसित महाशक्तियां जहां ढलान और बुजुर्गियत की ओर हैं वहीं भारत युवा हो रहा है। भारत को भविष्य की महाशक्ति मानने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का तर्क यही रहा है कि इसकी युवा आबादी 2035 तक चीन से ज्यादा रहेगी और यह विकास में उसे पीछे छोड़ देगा। लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2050 तक बुजुर्गों की संख्या आज की तुलना में तीन गुना अधिक हो जाएगी। उस जनगणना के अनुसार करीब दस करोड़ लोग 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के थे। हर वर्ष इसमें करीब 3 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।
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