देश के लिए घातक होगा आर्थिक असमानता का बढ़ना

उठो मेरी दुनिया के ़गरीबों को जगा दो,
जिस खेत से दहकां को मयस्सर नहीं रोज़ी,
उस खेत के हर ़गोशा-ए-गंदुम को जला दो।
शायर-ए-मशरक डॉ. अल्लामा इकबाल की नज़्म के उपरोक्त शे’अर मुझे भारत में बढ़ते अमीरी तथा गरीबी के अन्तराल के बारे में सोचते हुए आज भी सार्थक लगते हैं, परन्तु इस इस अन्तराल के बारे विस्तार में जाने से पहले एक बात का ज़िक्र करना भी ज़रूरी प्रतीत होता है कि इन चुनावों में जीत-हार किसकी होती है, इसका असली पता तो 4 जून को ही चलेगा, परन्तु एक बात स्पष्ट है कि जिस प्रकार प्रत्येक चुनाव चरण (पड़ाव) के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा एक के बाद एक मुद्दा उभार कर स्थिति को बदलने की कोशिश कर रहे हैं, वह भाजपा में बढ़ती घबराहट को तो स्पष्ट रूप में दर्शा ही रहा है। 
यह वास्तविकता है कि कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में अमीरी तथा गरीबी के अंतर को ध्यान में रखते हुए सम्पत्ति के विभाजन की बात की है, परन्तु जिस प्रकार का वृत्तांत इस बारे भाजपा तथा आरएसएस सृजित करने की कोशिश कर रहे हैं, वह ठीक नहीं कि कांग्रेस ने किसी एक धर्म के लोगों का धन छीन कर दूसरे धर्म के लोगों में बांट देगी। ऐसा इतिहास के किसी दौर में नहीं हुआ और अब लोकतंत्र में तो हो सकना लगभग असम्भव है। ऐसे वृत्तांत का सृजन करना बेशक कुछ सीमा तक वोटों को प्रभावित कर सकता हो, परन्तु यह देश-हित में ठीक नहीं। यह साम्प्रदायिक असहनशीलता को बढ़ाने का कार्य करेगा। वास्तविकता यह है कि देश से बाहर भारतीयों का काला धन बढ़ रही है। भारतीय काला धन पहले सिर्फ स्विस बैंकों में जमा होता था। इस समय दर्जनों अन्य ऐसे देश हैं जो काले धन वालों के लिए ‘स्वर्ग’ कहे जाते हैं, परन्तु स्विस बैंकों में अब भी काले धन की मात्रा बढ़ी है, कम नहीं हुई। 2020 में स्विस बैंकों में भारतीयों का कुल 700 करोड़ रुपया जमा था जो 2021 में 30500 करोड़ हो गया है। एक अनुमान के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक भारत के जीडीपी का 50 प्रतिशत काला धन है, जबकि सी.बी.आई. की रिपोर्ट के अनुसार यह 28 लाख करोड़ रुपये के लगभग है। इस बीच विदेशी धन देश में वापिस लाने का अभियान चलाने वाले बाबा राम देव क्या कर रहे हैं, इसका ज़िक्र भी ज़रूरी प्रतीत होता है कि उनके 14 उत्पादों पर पाबंदी लगा दी गई है और गलत तथा भ्रामक विज्ञापनबाज़ी के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट में माफी तक मांगनी पड़ी है। इससे भारतीय राजनीतिज्ञों, अमीरों के दोहरे मापदंड की ही प्रकटावा होता है। 
परन्तु बात कर रहे थे भारत में आर्थिक असमानता की। मौजूदा सरकार पर बड़े धनाढ्यों के पक्ष में होने के आरोप तथ्यों पर दृष्टिपात करने से ठीक ही प्रतीत होते हैं, परन्तु ये बिल्कुल नहीं कि बड़े कार्पोरेट घरानों की मदद करने का काम सिर्फ मोदी सरकार में हुआ है। वास्तव में यह डॉ. मनमोहन सिंह की आर्थिक उदारीकरण की 1991 में लागू की गई नीति से शुरू हुआ था। चाहे उस समय इसकी ज़रूरत भी थी क्योंकि भारत उस समय आर्थिक दीवालियापन के कगार पर खड़ा था, परन्तु जिस प्रकार मौजूदा सरकार में अमीरी-गरीबी में अंतर बढ़ रहा है, यह बहुत ही खतरनाक रुझान है। यह ठीक है कि अब हिन्दू-मुस्लिम विवाद को हवा देकर लोगों का इस आर्थिक असमानता से ध्यान हटाया जा रहा है, परन्तु जब यह अंतर और अधिक बढ़ा तो लोग धर्म को दरकिनार करके भी विरोध पर उतर आएंगे। हम समझते हैं कि देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन तथा अन्य सब्सिडियां देकर एक प्रकार से इस विरोध को लटकाने का काम अवश्य किया जा रहा है, परन्तु यह सब कुछ बहुत लम्बा समय कारगर नहीं रहेगा। 
आज भारत की आर्थिक असमानता की स्थिति पर दृष्टिपात करें तो यह आश्चर्यजनक है। देश के सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास 60 वर्षों में सबसे अधिक सम्पत्ति जमा हो चुकी है, जो लगभग 40 प्रतिशत है जबकि देश के 30 प्रतिशत लोगों के पास देश की 90 प्रतिशत सम्पत्ति है, 10 प्रतिशत के पास 72 प्रतिशत तथा 5 प्रतिशत के पास देश की 62 प्रतिशत सम्पत्ति है। इसके विपरीत देश की आधी जनता अर्थात 50 प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल सम्पत्ति का 3 प्रतिशत से भी कम हिस्सा है। 
1991 में सिर्फ एक भारतीय था जिसके पास 100 करोड़ डालर से अधिक सम्पत्ति थी, अब लगभग 200 ऐसे व्यक्ति हैं। यहां नोट करने वाली बात है कि कार्पोरेट टैक्स 2019 में 30 प्रतिशत से कम करके 22 प्रतिशत किया गया जबकि नई कम्पनियों को 15 प्रतिशत से भी कम टैक्स देना पड़ा। इस प्रकार देश को 1.84 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जिसकी पूर्ति के लिए पैट्रोल, डीज़ल जैसी चीज़ों पर उत्पादन कर तथा जीएसटी बढ़ाया गया अर्थात कार्पोरेटों को सुविधा गरीब तथा आम लोगों की जेब में से दी गई। सिर्फ 2020-21 में ही कार्पोरेटों को उत्साहित करने के लिए एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की छूट दी गई चाहे बहुत गर्व की बात है कि भारत इस समय विश्व की 5वीं सबसे बड़ी आर्थिकता है, परन्तु 2024 के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार भारत का प्रति सदस्य जीडीपी 119 देशों से नीचे है। वर्ल्ड ओ मीटर के आंकड़ों के अनुसार जीडीपी में भारत विश्व में 120वें स्थान पर है। उल्लेखनीय है कि सिंगापुर की प्रति व्यक्ति जीडीपी 127565 अमरीकी डालर है जबकि भारत की 8379 अमरीकी डालर है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में 2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत 197 देशों में 142वें स्थान पर था। 8 जनवरी, 2023 की टाईम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस समय प्रति व्यक्ति आय सिर्फ दो हज़ार डालर के करीब वार्षिक है जो लगभग  एक लाख 65 हज़ार रुपये बनती है और यह अमीर से अमीर तथा गरीब से गरीब को मिला कर है जबकि छोटे से देश सिंगापुर की परकैपिटा (प्रति व्यक्ति) आय 91730 डालर अर्थात 76 लाख रुपये प्रति वर्ष है। हां, हम खुश हो सकते हैं कि हमारे मुकाबले पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय इसी समय 1474 अमरीकी डालर वार्षिक है। भारत के नैशनल स्टेटिस्टीकल आफिस के सर्वे के अनुसार शीर्ष 10 प्रतिशत शहरी परिवारों के पास औसत 1.5 करोड़ रुयये की सम्पत्ति है परन्तु निचले वर्ग के परिवारों के पास केवल 2000 रुपये की सम्पत्ति ही है। इस स्थिति में अरशद शाद का यह शे’अर समय के शासकों के लिए सुनना बहुत ज़रूरी है : 
नये हर रोज़ होते हादसे अच्छे नहीं लगते।
बहुत हालात भी सहमे हुये अच्छे नहीं लगते।
अमीरी और ़गरीबी देख कर ये फैसले करना,
अमीर-ए-शहर तेरे फैसले अच्छे नहीं लगते। 
पंजाब के उम्मीदवारों को वोट डालने की कसौटी
अब जब एक-दो सीटों को छोड़ कर अधिकतर सीटों से पंजाब की लगभग सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है और चुनाव प्रचार तेज़ होने लग पड़ा है। उम्मीदवारों ने गांव-गांव, वार्ड-वार्ड चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है तो एक सवाल उठता है कि उम्मीदवारों को वोट देते समय मतदाता किस कसौटी पर परखें। इसमें एक प्रभाव यह तो बन ही रहा है कि  रातो-रात पार्टी बदलने सभी उम्मीदवारों को वोट नहीं देना चाहिए, परन्तु मतदान करने के लिए पंजाब के लोगों की कसौटी क्या हो? हम समझते हैं कि लोगों को मुखर होना चाहिए कि वे अपने गांवों, कस्बों या वार्डों में चुनाव प्रचार करने आए उम्मीदवारों से पूछें कि जीत के बाद वे उनका प्रतिनिधित्व कैसे करेंगे? मतदाता इस बात को देख कर ही मतदान करने का फैसला करें कि कौन सी पार्टी और कौन सा उम्मीदवार लोकसभा में पंजाब के मामलों के प्रति क्या समझ रखता है और उसका पंजाब के मामलों के प्रति क्या दृष्टिकोण होगा। जो उम्मीदवार पंजाब के मामलों बारे सही और स्पष्ट दृष्टिकोण बारे स्पष्ट स्टैंड लेता है और उसकी पहली कारगुज़ारी विश्वसनीय है, पंजाब के मतदाताओं को सिर्फ उसी उम्मीदवार को ही चुनना चाहिए चाहे वह किसी भी पार्टी का क्यों न हो। जो लोग संसद में पंजाब की आवाज़ नहीं उठा सकते, जो लोग पंजाब तथा पंजाबियों के प्रति समझ से वंचित हैं, ऐसे लोगों को नकार देना चाहिए। हम उम्मीदवारों को भी साकिब जलाली के इस शे’अर के माध्यम से झिंझोड़ना चाहते हैं, क्योंकि इस समय पंजाब के मामलों पर बहुत-से उम्मीदवार तो बुझ चुके अंगार ही दिखाई देते हैं। 
कहां गया वो तुम्हारा बुलंदियों का जुनून,
बुझे बुझे से शरारो कोई तो बात करो। 
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना-141401
-मो. 92168-60000