बरकरार रहनी चाहिए प्रैस की स्वतंत्रता

कलम को तलवार से भी ज्यादा ताकतवर और तलवार की धार से भी ज्यादा प्रभावी इसलिए माना गया है क्योंकि इसी की सजगता की वजह से न केवल भारत में बल्कि अनेक देशों में पिछले कुछ दशकों के भीतर बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हो सका, जिसके चलते बड़े-बड़े उद्योगपतियों, नेताओं तथा विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों को एक ही झटके में अर्श से फर्श पर आना पड़ा। याद करें, जब 1970 के दशक में अमरीका के मशहूर ‘वाटरगेट’ कांड का भंडाफोड़ हुआ था और उसी के चलते अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को पद छोड़ने पर विवश होना पड़ा था। भारत में भी मुख्यमंत्री और मंत्री पदों पर रहे कुछ आला दर्जे के नेता प्रेस की सजगता के ही कारण भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में आज भी जेल की हवा खा रहे हैं। संभवत: यही कारण हैं कि कुछ समय से कलम रूपी इस हथियार को भोथरा बनाने या तोड़ने के कुचक्र हो रहे हैं और विभिन्न अवसरों पर न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में सच की कीमत पत्रकारों को अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ रही है।
प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में आज स्थितियां काफी बदल गई हैं। आज पत्रकारों पर राजनीतिक, अपराधिक और आतंकी समूहों का सर्वाधिक खतरा है और भारत भी इस मामले में अछूता नहीं है। यह विडम्बना ही है कि दुनिया भर के न्यूज रूम्स में सरकारी तथा निजी समूहों की वजह से भय और तनाव में वृद्धि हुई है। चूंकि किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती में प्रेस की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसीलिए एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की स्वतंत्रता को अहम माना जाता रहा है लेकिन विडम्बना है कि विगत कुछ वर्षों से प्रेस स्वतंत्रता के मामले में लगातार कमी देखी जा रही है।
कुछ समय पूर्व अमरीकी वॉचडॉग फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रेस स्वतंत्रता में पिछले करीब डेढ़ दशकों से कमी देखी जा रही है और अब पिछले ही दिनों ‘रिपोर्टर्स विद आउट बॉर्डर्स’ की वार्षिक रिपोर्ट में तो भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर जो तथ्य पेश किए गए, वे बेहद हैरान-परेशान करने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत जहां प्रेस स्वतंत्रता के मामले में 2017 में 136वें स्थान पर और 2018 में 138वें पायदान पर था, वहीं अब दो पायदान और नीचे खिसककर 140वें पायदान पर पहुंच गया है। इस संस्था के अनुसार विश्वभर में पत्रकारों के खिलाफ  घृणा हिंसा में बदल रही है, जिससे दुनियाभर में पत्रकारों में डर बढ़ा है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता में मामले में स्थिति दिनोंदिन कितनी बदतर होती जा रही है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां इस संस्था द्वारा वर्ष 2009 में जारी रिपोर्ट में भारत प्रेस की आजादी के मामले में 109वें पायदान पर था, वहीं एक दशक में वह 31 पायदान लुढ़ककर 140वें स्थान पर जा पहुंचा था। नि:संदेह प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में यह गिरावट स्वस्थ लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। प्रेस की स्वतंत्रता में कमी आने का सीधा और स्पष्ट संकेत यही है कि लोकतंत्र की मूल भावना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो अधिकार निहित है, धीरे-धीरे उसमें कमी आ रही है।
‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष भारत में कम से कम छह पत्रकारों की हत्या कर दी गई। इसके अलावा कई पत्रकारों पर जानलेवा हमले भी हुए तो कई पत्रकारों को सोशल मीडिया पर ‘हेट कैंपेन’ का भी सामना करना पड़ा। हालांकि शायद दुनियाभर में सालभर में 15-20 पत्रकारों की हत्या का आंकड़ा लोगों को इतना नहीं झकझोरता होगा किन्तु अगर मामले की गहराई तक जाकर देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि स्थिति कितनी बदतर है। कुछ समय पहले इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ  जर्नलिस्ट की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि 1990 से लेकर अब तक पिछले करीब ढ़ाई दशकों में 2300 से भी अधिक पत्रकारों की हत्या हुई हैं, जिनमें से सिर्फ  वर्ष 2015 में ही 112 पत्रकारों को मौत की नींद सुला दिया गया। भारत के संबंध में ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति में से एक पत्रकारों के खिलाफ  हिंसा है, जिसमें पुलिस की हिंसा, माओवादियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है। 
हालांकि भारतीय संविधान में प्रेस को अलग से स्वतंत्रता प्रदान नहीं की गई है बल्कि उसकी स्वतंत्रता भी नागरिकों की अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता में ही निहित है और देश की एकता तथा अखण्डता खतरे में पड़ने की स्थिति में इस स्वतंत्रता को बाधित भी किया जा सकता है किन्तु ऐसी कोई स्थिति निर्मित नहीं होने पर भी देश में पत्रकारों की हत्याएं तथा पत्रकारिता का चुनौतीपूर्ण बनते जाना लोकतंत्र के हित में कदापि नहीं है बल्कि यह स्पष्ट रूप से कुछ शक्तियों द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के चौथे स्तंभ को ध्वस्त करने का ही प्रयास माना जा सकता है। 
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