कृषि, व्यापार और उद्योगों के लिए बढ़ रही हैं चुनौतियां (2)

(कल से आगे)
उपरोक्त चार समाचार चाहे भिन्न-भिन्न हैं परन्तु इनका पंजाब के आर्थिक और सामाजिक सरोकारों से गहरा संबंध है। इन समाचारों के संदर्भ में पंजाब के किसानों, व्यापारियों, उद्योगपतियों और यहां तक कि पंजाब सरकार को भी अपनी प्राथमिकताओं और अमलों संबंधी खुले मन से विचार करने की आवश्यकता है ताकि पंजाब को भविष्य में बड़े नुकसान से बचाया जा सके।
सबसे पहले किसान आन्दोलन से जुड़े मुद्दों पर बात करते हैं। नि:सन्देह संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व में इकट्ठा हुए 32-33 किसान संगठनों ने केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गये तीन कृषि कानूनों के विरोध में अब तक बड़ी सफलता से आन्दोलन चलाया है एवं इस दौरान अनुशासन और एकजुटता बना कर रखी है। इसमें 500 से अधिक किसानों ने अपना जीवन न्यौछावर किया है तथा बड़े स्तर पर आर्थिक नुकसान भी उठाया है। दिल्ली की सीमाओं के साथ-साथ राज्य में 130-135 स्थानों पर धरने भी सफलतापूर्वक चलाए हैं परन्तु जिस तरह के केन्द्र सरकार के संकेत दिखाई दे रहे हैं, उनसे लगता है कि यह आन्दोलन और भी लम्बा चलेगा। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व को इस आन्दोलन के सकारात्मक और नकारात्मक सभी प्रभावों का खुले दिल से विश्लेषण करना चाहिए ताकि इस आन्दोलन को और भी अधिक समूचे ढंग से चलाया जा सके। नि:सन्देह केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये तीन कृषि कानून किसान एवं कृषि विरोधी हैं और इनका उद्देश्य कृषि एवं कृषि व्यापार कार्पोरेटरों के हवाले करना है। खाद्य सुरक्षा एवं आम उपभोक्ताओं के हितों के लिए ये कानून भी सही नहीं हैं। इनके खिलाफ किसानों द्वारा आन्दोलन करना किसी भी तरह गलत नहीं है, परन्तु ऐसी स्थितियों में किसान आन्दोलन को नई रूप-रेखा देने की बेहद आवश्यकता है, जिससे केन्द्र सरकार पर दबाव भी बना रहे एवं पंजाब के औद्योगिक एवं व्यापारिक हितों को हो रहे भारी नुकसान का भी कोई समाधान निकाला जा सके। यदि बड़े कारोबारी संस्थान पंजाब से बाहर चले जाते हैं और नये पूंजी निवेश हेतु और संस्थान पंजाब में नहीं आते तो आवश्यक तौर पर इससे पंजाब का व्यापार तथा उद्योग प्रभावित होगा और समूचे रूप से राज्य में रोज़गार के अवसर कम होंगे। पहले ही पंजाब में रोज़गार की सम्भावनाएं न होने के कारण व्यापक स्तर पर युवा +2 करने के बाद ही जायज़-नाज़ायज़ ढंग से विदेशों को जाने के लिए विवश हो रहे हैं। इसके साथ ही हमारा पंजाबी समाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। बड़ी कारोबारी कम्पनियों ने राज्य में जो लजिस्ट्रिक्स पार्कों, साइलॉज़ एवं माल्ज़ के रूप में पूंजी निवेश किया हुआ है, उनके कामकाज़ ठप्प होने के कारण उनके कर्मचारी भी बेरोज़गार हो रहे हैं तथा इन कम्पनियों को ऋण लेकर पंजाब के जिन लोगों ने इमारतें बना कर दी हैं, वह भी गहरे संकट में घिरते दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि इन कम्पनियों की ओर से उन्हें किराया नहीं मिल रहा तथा वे आगे बैंकों के ऋणों की किस्तें भरने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। हमारा परामर्श है कि ऐसी कम्पनियों से किसान आन्दोलन के नेतृत्व द्वारा कोई संवाद रचाया जाना चाहिए। यदि वे फार्म बना कर कृषि करें या कांट्रैक्ट कृषि करने के अमल से दूर रहने की गारंटी देती हैं एवं कृषि उत्पादन समर्थन मूल्य पर खरीदने की किसानों की मांग का सैद्धांतिक रूप से समर्थन करती हैं तो ऐसी कम्पनियों के विरुद्ध केन्द्रित आन्दोलन संबंधी पुन: विचार किया जाना चाहिए। नि:सन्देह कृषि देश की अनाज सुरक्षा एवं पंजाब के हितों के लिए बड़ा महत्त्व रखती है परन्तु हम सभी को यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र की आर्थिकता कृषि से शुरू होकर व्यापार एवं औद्योगीकरण तक आगे विकसित होती है। इससे ही आर्थिकता का चक्कर पूरा होता है।  कोई भी क्षेत्र या समाज स्वयं को सिर्फ कृषि तक सीमित नहीं रख सकता तथा न ही ऐसा करके रोज़गार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। इसलिए राज्य में किसानों एवं कृषि के हित भी सुरक्षित रहने चाहिएं तथा साथ ही इसके व्यापार एवं औद्योगिक हित भी सुरक्षित रहने चाहिएं।
जहां तक पंजाब के भूमिगत जल स्तर में लगातार आ रही गिरावट का संबंध है, इस पर भी संयुक्त किसान मोर्चे का नेतृत्व, उद्योगपतियों एवं राज्य में और ढंग-तरीकों से पानी का उपयोग कर रहे संस्थानों एवं यहां तक कि अपने-अपने घरों में पानी का उपयोग कर रहे आम लोगों को भी गम्भीरता से विचार करने की ज़रूरत है। भविष्य में हमें प्रत्येक क्षेत्र में पानी  के समूचे उपयोग करने के ढंग-तरीके ढूंढने पड़ेंगे। वर्षा के पानी की एक-एक बूंद सम्भालने तथा उसे धरती में पहुंचाने के लिए आधुनिक ढंग एवं पारम्परिक ढंग-तरीके दोनों का ही प्रयोग करना पड़ेगा। इसके साथ ही धान जैसी फसलों का विकल्प ढूंढना बेहद आवश्यक है। यदि भविष्य में भी इसी प्रकार धान की कृषि की जाती है तो इस प्रकार जानकारी मिल रही है कि राज्यों को भयानक पानी के संकट का सामना करना पड़ेगा। पानी के ऐसे संकट के कारण न कृषि हो सकेगी, न उद्योग एवं अन्य कारोबार चल सकेंगे तथा न ही प्रदेश की धरती पर मानवीय जीवन बरकरार रह सकेगा। एक तरह से पंजाब पूरी तरह तबाह हो जाएगा। ऐसी सम्भावनाओं  के संबंध में सोचने से ही मन में गहरी चिंता पैदा हो जाती है। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि कृषि के साथ-साथ उद्योगों, अन्य कारोबारी संस्थानों एवं यहां तक कि घरों में पानी के हो रहे उपयोग संबंधी गम्भीरता से विचार किया जाए एवं पानी के  सख्ती से समुचित उपयोग के लिए नियम और कानून बनाए जाएं तथा राज्य के सभी वर्गों के लोगों द्वारा इन पर अमल किया जाए। इस तरह के बहु-पक्षीय प्रयासों एवं सहयोग से ही हम अपने प्यारे पंजाब को अपनी भावी पीढ़ियों के लिए खुशहाल रख सकते हैं।
अंत में हम यह बात पुन: दोहराना चाहते हैं कि वर्तमान किसान आन्दोलन को प्राप्त जन-समर्थन को बरकरार रखने एवं इसमें और वृद्धि करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व को उपरोक्त वास्तविकताओं की रोशनी में गहन विचार करके उचित फैसले लेने चाहिएं ताकि यह आन्दोलन सरकार पर अपना दबाव तो बनाए रखे परन्तु इस कारण जो पंजाब के व्यापार एवं उद्योगों को नुकसान हो रहा है, उसे अधिक से अधिक सीमा तक कम किया जा सके तथा प्रदेश में पूंजी निवेश की सम्भावनाएं भी बनी रहें। (समाप्त)