नये अध्यक्ष से आशाएं

इस बार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के वार्षिक महा-अधिवेशन में एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी को भारी बहुमत के साथ अध्यक्ष चुन लिया गया है। इसके साथ ही अंतरिम कमेटी के विभिन्न पदों के लिए अन्य सदस्य भी चुन लिये गये हैं। विगत एक वर्ष से बीबी जगीर कौर शिरोमणि कमेटी की अध्यक्ष रहीं। उनका इस बार का समय संस्था के लिए बहुत बढ़िया कहा जा सकता है। बीबी जी ने इस समय के दौरान अत्यधिक सक्रियता दिखाई तथा पूरी समर्पित भावना के साथ वह इसके कार्यों में व्यस्त रहीं। नि:सन्देह वह इस संस्था को और भी सजीव बनाने में सहायक हुई हैं क्योंकि विगत लम्बी अवधि से वह धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में अपना भारी योगदान डालती आई हैं। अब उन्हें आगामी विदानसभा चुनावों में भी उतारा जा रहा है जिस कारण उनकी चुनावी गतिविधियां भी अतीव व्यस्ततापूर्ण हो जाएंगी। जहां तक एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी का संबंध है, वह एक सूझबूझपूर्ण एवं नेक शख्सियत के तौर पर जाने जाते हैं। दशकों से उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में अपना योगदान डाला है। 1984 में जब अत्यधिक नाज़ुक समय था, उस समय के उनके श्रेष्ठ योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता। वह भी एक ईमानदार एवं समर्पित शख्सियत के रूप में जाने जाते हैं। 
लगभग 100 वर्ष पूर्व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अस्तित्व में आने से लेकर कौम की कई उच्च शख्सियतें इस पद विराजमान रही हैं। बाबा खड़क सिंह, मास्टर तारा सिंह, मोहन सिंह नागोके, उधम सिंह नागोके, ईशर सिंह मझैल, गुरचरण सिंह टोहरा तथा सिख विद्वान स. कृपाल सिंह बडूंगर आदि व्यक्तियों ने समय-समय पर इस पद पर रहते हुये अपना भारी योगदान डाला है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी सिखों की एक ऐसी अहम संस्था है जिसकी ओर सिख समुदाय की नज़रें लगी रहती हैं तथा इससे बड़ी आशाएं भी लगाई जाती हैं। इसीलिए जब इस संस्था के कामकाज में न्यूनताएं खटकने लगती हैं तो इसे आलोचना का निशाना बनाया जाता रहा है। विशेष रूप से धार्मिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में इससे बड़ी आशाएं रखी जाती हैं। मुख्य रूप में इस संस्था की ज़िम्मेदारी ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिबान की सार-सम्भाल की थी। इसके साथ समय-समय पर पेश होती रही चुनौतियों के समकक्ष होने के लिए इसका कार्य क्षेत्र भी बढ़ाया जाता रहा। आज इस संस्था के अन्तर्गत 100 से अधिक शैक्षणिक संस्थान चल रहे हैं जिनमें कालेज, विश्वविद्यालय एवं स्कूल आदि शामिल हैं। इससे यह आशा की जाती है कि यह कौम के हितों की पूर्ति करती रहे तथा अपनी पुरातन परम्पराओं एवं सभ्याचार की भी रक्षा करे। अपने धर्म के मूल सिद्धांतों की भी पहरेदारी करे तथा कौम के सामने आदर्श लक्ष्य भी रखे। इससे यह आशा भी की जाती है कि जन-कल्याण के क्षेत्र में भी यह ऐसे अनुकरणीय कार्य करे जो अन्यों के लिए अच्छे उदाहरण बन सकने के समर्थ हों। अपने इतिहास को सम्भालना एवं निर्धारित आदर्शों के प्रति भाईचारे को सचेत करना भी इसकी अहम ज़िम्मेदारियों में शामिल है परन्तु इसके साथ ही इस महान संस्था में राजनीतिक  मिश्रण ने इसकी प्रतिभा को अवश्य कम किया है। 
अक्सर इस राजनीतिक गलबे के कारण यह अपनी दिशा में उतनी उपलब्धियां हासिल करने में असमर्थ रही है जितनी कि इससे आशा की जाती थी। धार्मिक क्षेत्र में निरन्तर उत्पन्न हुये शून्य के कारण भी इस पर उंगलियां उठती रही हैं परन्तु विगत लम्बी अवधि से शिरोमणि कमेटी के निश्चित समय पर चुनाव न होने के कारण और प्रत्येक वर्ष अध्यक्षता के पद का चुनाव होने के कारण तथा अधिकतर सदस्यों में प्रतिबद्धता की कमी होने के दृष्टिगत इसकी छवि अवश्य धूमिल पड़ती रही है। इसके पदाधिकारियों से ईमानदाराना सोच एवं कार्यों की आशा की जाती रही है। हम नये चुने गये अध्यक्ष से आशा करते हैं कि वह समर्पित भावना के साथ इस पद पर कार्य करेंगे ताकि इसकी आन, शान एवं विश्वसनीयता को बनाये रखा जा सके तथा यह भाईचारे की उम्मीदों पर पूरा उतरने के समर्थ हो सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द