राजनीतिक पार्टियों के चुनाव एजेंडे से खेलों का मुद्दा गायब क्यों ?

अब पंजाब में विधानसभा चुनावों की गतिविधियां ज़ोरों पर हैं। चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवार लोगों को तरह-तरह के सब्ज़बाग दिखा रहे हैं, अपने-अपने क्षेत्रों के विकास के नाम पर, परन्तु एक बात बहुत ही हैरानीजनक है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई भी उम्मीदवार उस क्षेत्र के खेलों के पक्ष से विकास को लेकर गंम्भीर नहीं दिखाई दे रहा। खेलों के पक्ष से भारत महान का जो स्तर है, वह किसी से छिपा हुआ नहीं परन्तु इसके मुकाबले चीन, रूस, अमरीका, आस्ट्रेलिया आदि देश है, जिनका खेलों के क्षेत्र में दबदबा है। उन देशों की सरकारों की तरह जो देश में खेल क्रांति लाने हेतु हमेशा यत्नशील रहती हैं, अपने बजट का बड़ा भाग वे खेलों के विकास के लिए रखती हैं, हमारे संभावित नेताओं को भी अब इस पक्ष से सचेत एवं गम्भीर होने का आवश्यकता है। केन्द्र में बनने वाली सरकार ही राज्य सरकारों के लिए प्रेरणादायक बन सकती है। हमें तो ऐसे लगता है कि खेल हमारी केन्द्र एवं राज्य सरकार के लिए एक बोझ की तरह हैं, जिनके विकास के लिए न तो चुनाव प्रचार में ही कोई मुद्दा उठाने के लिए तैयार है और न ही इनके प्रति गंभार हैं। जैसे खेल क्षेत्र कौम के प्राथमिक हितों में शुमार करने की परम्परा ही हमारे देश में नहीं। कभी ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाले इस देश की फिज़ा में यही आवाज़ जैसे आती है कि ओलम्पिक पदकों या विश्व कप जीतने से न तो देश की गरीबी दूर होनी है, न लोगों का पेट भरना है। स्वास्थ्य शरीर, स्वास्थ समाज तथा स्वास्थ्य दिमाग एवं अनेक प्रकार के नशों से दूरी खेलों तथा खेल मैदानों की बदौलत ही तो होती है। इस संबंधी जब भारतीय खेल जगत का सुनहरी अक्षरों में नाम लिखवाने वाली कुछ खेल हस्तियों से सम्पर्क किया गया तो वे राजनीतिक नेताओं के खेलों के प्रति रवैये से बहुत नाराज़ नज़र आए। उन्होंने सम्भावित राजनेताओं के खेलों के प्रति भी संजीदा होने का सुझाव दिया। हकीकत यह है कि पंजाब ही नहीं अपितु आज आवश्यकता है कि भिन्न-भिन्न  राज्यों का खिलाड़ी वर्ग राज्य भर में छोटे-छोटे यूनिट बना कर इस संयुक्त मंच पर जुड़े, इकट्ठा हो ताकि वे खेलों के क्षेत्र में हो रहे अन्याय, लापरवाहियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर सके। आओ, खेल जगत से साझ रखने वाले हम सभी अपने-अपने यत्नों से, अपने-अपने क्षेत्रों में एक ऐसा खेल अभियान चलाएं कि विधानसभा चुनावों में खेल भी एक चुनाव मुद्दा बने। राजनीतिक नेताओं तथा चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवार खिलाड़ी वर्ग की शक्ति को पहचानें कि ये भी वक्त आने पर आगामी चुनाव परिणामों को प्रभावित करना जानते हैं।              


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